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बारिश का पैटर्न जानने के लिए 115 साल के डेटा पर हुआ रिसर्च, 2030 तक भारत में आएगी गिरावट

अध्ययन में दावा किया गया है कि 2030 के लिए बारिश की भविष्यवाणी में भारत की समग्र वर्षा में लगभग 15 फीसदी की गिरावट की आशंका है साथ ही 2035 तक और भी गिरावट आने की आशंका है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Tue, 30 Jun 2020 09:59 PM (IST)Updated: Tue, 30 Jun 2020 09:59 PM (IST)
बारिश का पैटर्न जानने के लिए 115 साल के डेटा पर हुआ रिसर्च, 2030 तक भारत में आएगी गिरावट
बारिश का पैटर्न जानने के लिए 115 साल के डेटा पर हुआ रिसर्च, 2030 तक भारत में आएगी गिरावट

नई दिल्ली [राहुल मानव]। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, आईआईटी इंदौर और पश्चिम बंगाल के मालदा स्थित गौर बांगा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक संयुक्त टीम ने ‘गैर-पैरामीट्रीकल, मशीन प्रशिक्षण दृष्टिकोणों का उपयोग करके भारत में वर्षा के बदलाव की प्रवृत्ति और पूर्वानुमान का विश्लेषण शीर्षक पर एक अध्ययन किया है। इसमें भारत में बारिश के बदलते स्वरूप पर अनुसंधान किया गया है। नेचर ग्रुप की प्रतिष्ठित पत्रिका, साइंटिफिक रिपोर्ट्स में इस शोध पत्र को ऑनलाइन जारी किया गया है। इस अध्ययन में दावा किया गया है कि 2030 के लिए बारिश की भविष्यवाणी में भारत की समग्र वर्षा में लगभग 15 फीसदी की गिरावट की आशंका है साथ ही 2035 तक और भी गिरावट आने की आशंका है।

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115 साल के डेटा पर पेश किया रिसर्च

इस अध्ययन में 115 साल के डेटा (1901 से 2015) का उपयोग करके पूरे देश में वर्षा में दीर्घकालिक-अस्थायी परिवर्तन का विश्लेषण और पूर्वानुमान पेश किया गया है। इसमें वर्ष 2035 तक देश में वर्षा के स्वरूप में संभावित बदलाव की भविष्यवाणी करने के साथ ही, पूरे भारत में वर्षा के पैटर्न में परिवर्तनों, कारणों का गहराई से अध्ययन किया गया है।

स्‍टडी के लिए किया नवीन पद्धति का उपयोग

टीम ने भारतीय मौसम विभाग के देश के चौंतीस मौसम संबंधी सब-डिविजनों में मौसमी वर्षा (सर्दी, गर्मी, मानसून और पोस्ट मानसून) की प्रवृत्ति की गणना के लिए एक नवीन पद्धति का उपयोग किया है। भारत भर में वर्षा के पैटर्न की भविष्वाणी के लिए द आर्टिफिश्ल न्यूरल नेटवर्क-मल्टीलेअर परस्पट्रान (एनन-एमएलपी) का इस्तेमाल किया गया है। एनन-एमएलपी एक कंप्यूटर आधारित मॉडल है, जिसके जरिये अध्ययन किया गया है।

1951 के बाद वर्षा में दिखी गिरावट

रिसर्च पेपर के सह लेखक, जामिया के भूगोल विभाग के प्रो अतीकुर्रहमान ने बताया कि वर्तमान अध्ययन में 1901-1950 के दौरान रही वर्षा की प्रवृत्ति में वृद्धि देखी गई, लेकिन 1951 के बाद वर्षा में काफी गिरावट आई। मानसून के मौसम के दौरान भारत के अधिकांश मौसम खंडों में वर्षा में काफी गिरावट हुई। पश्चिमी भारत सब-डिविजनों में वर्षा के समग्र वार्षिक और मौसमी बदलाव सबसे ज्यादा थे, जबकि सबसे कम परिवर्तनशीलता पूर्वी और उत्तर भारत में पाई गई थी।

1970 के बाद आया बड़ा बदलाव

लगभग सभी सब-डिविजनों में 1970 के बाद वर्षा पैटर्न में नकारात्मकता का बड़ा बदलाव आया है। उत्तर-पूर्व, दक्षिण और पूर्वी भारत के सब-डिविजनों में समग्र वार्षिक और मौसमी वर्षा में बड़ी नकारात्मक प्रवृत्ति देखने को मिली है, जबकि सब-हिमालयी बंगाल, गंगीय बंगाल, जम्मू-कश्मीर, कोंकण और गोवा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और मराठवाड़ा ने सकारात्मक रुझान दर्ज किया है।

पानी के प्रबंधन होगी जरूरत

प्रो अतीकुर्रहमान ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के वर्तमान युग में यह अध्ययन काफी महत्वपूर्ण है, जहां भारत सहित पूरी दुनिया के वर्षा पैटर्न में बदलाव आ रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि पर निर्भर है, और हमारा कृषि क्षेत्र, वर्षा पर निर्भर करता है। इसलिए, पानी की कम होती जा रही उपलब्धता और भविष्य की पानी की मांग में वृद्धि को देखते हुए यह अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है। इसके मद्देनजर भविष्य में हमें पानी के बेहतर प्रबंधन की आ‌वश्यकता पड़ेगी।


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