रेणु लूथरा का एक ख्याल बदल रहा नौनिहालों की जिंदगी,अब तो बनता जा रहा है कारवां
रेणु लूथरा ने ऐसे बच्चों को पढ़ाई-लिखाई से जोड़ने का एक अभियान सा छेड़ दिया है जो या तो मार्गदर्शन या फिर संसाधन के अभाव में विद्यालय से दूर हैं। अब ताे कई लोग इनके अभियान से जुड़कर इनका साथ देते हैं।
नई दिल्ली [गौतम कुमार मिश्र]। पढ़ाई लिखाई से दूर कई बच्चे यूं ही बेवजह इलाके में यहां-वहां घूमते नजर आ जाते हैं। अधिकांश लोग ऐसे बच्चों की अनदेखी कर देते हैं, लेकिन पश्चिम विहार निवासी रेणु लूथरा ऐसे बच्चों की अनदेखी नहीं करती हैं। आखिर वे पढ़ाई लिखाई से दूर क्यों हैं? इसकी पूरी जानकारी जुटाती हैं और फिर ऐसे बच्चों को पढ़ाई लिखाई से जोड़ने का प्रयास करती हैं। अब तक इनकी कोशिश से कई बच्चे पढ़ाई-लिखाई से जुड़ चुके हैं। अब तो रेणु लूथरा ने ऐसे बच्चों को पढ़ाई-लिखाई से जोड़ने का एक अभियान सा छेड़ दिया है जो या तो मार्गदर्शन या फिर संसाधन के अभाव में विद्यालय से दूर हैं। अब ताे कई लोग इनके अभियान से जुड़कर इनका साथ देते हैं। अब तो मदद करने वालों का एक कारवां सा बन गया है।
ख्याल आया और शुरू हो गया नेक काम
रेणु लूथरा की मानें तो इस नेक काम की शुरुआत मादीपुर स्थित मंदिर के सामने अक्सर दिन भर यूं ही बैठे रहने वाले बच्चों से हुई। ये ऐसे बच्चे थे जिनके माता- पिता मजदूरी करते थे और दिन भर घर से बाहर रहते थे। माता- पिता की गैर मौजूदगी में ये बच्चे मंदिर के पास यूं ही घूमते रहते थे। पढ़ाई लिखाई से इनका कोई वास्ता नहीं था। यह बात करीब सात वर्ष पहले की है। पांच बच्चे जो इन्हें अक्सर मंदिर के आसपास नजर आते थे, उनके घर का पता किया गया। घर का पता करने के बाद रेणु इन बच्चों के अभिभावकों से मिली। तब कई बार समझाने बुझाने के बाद ये अभिभावकों को इस बात के लिए राजी कर सकीं कि वे इन बच्चों को पढ़ा सकती हैं। फिर धीरे धीरे और भी बच्चे जुट गए।
बच्चों के परिवार की मदद भी करती हैं रेणु
रेणु की कोशिशों से जब बच्चे जुट गए तो रेणु इनके अभिभावकों के भी संपर्क में आ गई। सभी की अपनी अपनी परेशानियां थी। अधिकांश की परेशानी आर्थिक संसाधन के अभाव के कारण थी। अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर रेणु इन लोग की हरसंभव मदद करने लगीं। जिसकी नौकरी कहीं छूट जाती थी, उसे नौकरी उपलब्ध कराना।
रेणु बच्चों के परिवार के साथ भावनात्मक रूप से भी जुड़ गई हैं। इसी तरह कभी बीमार पड़ने पर उनके लिए दवाई आदि का प्रबंध करना। कभी कभार राशन का प्रबंध ये उनके लिए सीमित स्तर पर करती थी। जब इन कार्यों के लिए इनकी खुद की बुटीक से होने वाली आमदनी कम पड़ने लगी तब रेणु का साथ इनके पति भी देने लगे। आज रेणु न सिर्फ शिक्षा बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी लोग की मदद करती हैं। लॉकडाउन के दौरान मुसीबत में फंसे परिवारों की इन्होंने भरपूर मदद की।
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