एक साथ कभी नहीं चल सकते लालफीताशाही, सियासत और जनकल्याण, पढ़ें क्या है इसके पीछे कारण
दिल्ली में राशन वितरण को लेकर जो समस्याएं सामने आ रही हैं वे इसीलिए आ रही हैं क्योंकि उन्हें लेकर गंभीरता से सोचा नहीं गया। बगैर सोचे समझे निर्णय ले लिया घोषणा भी कर दी जाती है लेकिन क्रियान्वयन के समय सारी परेशानी जनता को झेलनी पड़ जाती है।
नई दिल्ली, [संजीव गुप्ता]। लालफीताशाही, सियासत और जन कल्याण एक साथ कभी नहीं चल सकते। जहां बात लाखों लोगों के हितों से जुड़ी हो, अच्छे से विचार विमर्श करके और सभी व्यावहारिक- अव्यावहारिक पहलुओं को ध्यान में रखकर ही निर्णय लिया जाना चाहिए। वर्तमान में दिल्ली में राशन वितरण को लेकर जो समस्याएं सामने आ रही हैं, वे भी इसीलिए आ रही हैं, क्योंकि उन्हें लेकर गंभीरता से विचार नहीं किया गया। बगैर सोचे समङो ही कोई निर्णय ले लिया जाता है, घोषणा भी कर दी जाती है, लेकिन क्रियान्वयन के समय सारी परेशानी जनता को ङोलनी पड़ जाती है।
पिछले साल लाकडाउन के दौरान और इस साल भी कोरोना काल में दिल्ली सरकार राशन वितरण की कोई कारगर व्यवस्था नहीं बना पाई। ऐसा इसलिए क्योंकि घोषणा करने से पहले पुख्ता प्लानिंग नहीं की गई। जो प्लान बनाया गया, उसकी निगरानी के लिए कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई और सबसे बड़ी बात यह कि इसके लिए किसी की जवाबदेही तय नहीं की गई। यही वजह रही नान पीडीएस यानी ऐसे लोग जिनके पास राशन कार्ड नहीं है, उन्हें राशन बांटने में सबसे ज्यादा दिक्कत आई।
कहने के लिए हर विधायक को दो से ढाई हजार कूपन जारी कर दिए गए, लेकिन सवाल यह उठता है कि ऐसे संक्रमण काल में कोई भी विधायक कहां तक गरीबों को ढूंढेगा और कहां गरीब लोग विधायक तक पहुंच पाएंगे। उससे भी बढ़कर इसकी क्या गारंटी है कि ये कूपन किसी जरूरतमंद तक ही पहुंचेंगे पार्टी कार्यकर्ता के पास नहीं जाएंगे। कहने का मतलब यह कि कारगर व्यवस्था न होने से जरूरतमंदों को राशन नहीं मिल पाया और राशन सड़कर खराब हो गया है।
जनहित के मुद्दों पर छोड़नी होगी राजनीति
जनहित के मुद्दे पर सरकार को सियासत भी छोड़नी पड़ेगी। मसलन, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मिलने वाला राशन सरकारी दुकानों से ही वितरित किया जाना है। कोई भी राज्य सरकार इसके साथ छेड़छाड़ करके इसका स्वरूप नहीं बदल सकती। लेकिन दिल्ली सरकार जबरदस्ती यहां घर घर राशन योजना लागू करने पर अड़ी हुई है। बिना सोचे समङो घरों में पहुंचाने के लिए किट भी बनवा ली गई और टेंडर भी निकाल दिए गए। अब जनता का पैसा और राशन दोनों ही खराब हो रहे हैं और दूसरी तरफ जनता तक सरकारी राशन का लाभ पहुंचना टेढ़ी खीर हो रहा है।
मजबूत निगरानी और जवाबदेही से ही बनेगी बात
निगरानी तंत्र न होने से नान पीडीएस राशन वितरण केंद्रों का हाल भी भगवान भरोसे है। करीब 10 दिन पहले दिल्ली सरकार की ओर से राजधानी में 280 स्कूलों में बनाए गए नान-पीडीएस केंद्रों से राशन का वितरण शुरू किया गया। ऐसे में कुछ केंद्रों पर तो शारीरिक दूरी के नियमों का पालन देखने को मिला लेकिन ज्यादातर केंद्रों पर लोग कोविड नियमों की धज्जियां उड़ाते दिखे। दिल्ली सरकार को अपने राशन दुकानदारों पर भी भरोसा नहीं है। तभी तो हर जगह कार्यकर्ताओं को फिट करने की सोच रहती है। इस वजह से भी सभी योजनाएं अव्यवस्था का शिकार हो जाती हैं। इस मामले में सरकार को अड़ियल रवैया छोड़कर व्यावहारिक नीतियां बनानी चाहिए। पुख्ता प्लानिंग हो, मजबूत निगरानी हो और सख्त एवं पारदर्शी जवाबदेही हो। ऐसी सूरत में सरकार को नाकामी का मुंह नहीं देखना पड़ेगा ।
एक साल में राशन कार्ड तक नहीं बना
इस साल भी कमोबेश वही स्थिति बन रही है। सरकार इस एक साल में जरूरतमंदों के राशन कार्ड भी नहीं बना पाई। फिर से बिना कार्ड धारकों को राशन के लिए स्कूलों के बाहर लंबी लाइनें लगानी पड़ रही हैं। न कहीं कोविड नियमों का पालन हो रहा है और न सभी तक राशन ही पहुंच पा रहा है। सही योजना के अभाव में दिल्ली सरकार का वह अनाज तो सड़ ही गया जो उसने बीते साल केंद्र सरकार से सब्सिडाइज्ड रेट पर खरीदा था, प्रवासी कामगारों के लिए केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत जो राशन भेजा था, वह भी खराब हो रहा है। दिल्ली सरकार अभी तक इस अनाज का वितरण सुनिश्चित नहीं करा पाई।
(शिव कुमार गर्ग, अध्यक्ष, दिल्ली सरकारी राशन डीलर संघ।)