दिल्ली-एनसीआर में मॉर्निंग वॉक खतरनाक, प्रदूषण में पार्टिकुलेट मैटर ने तोड़ा 4 साल का रिकॉर्ड
दिल्ली विश्वविद्यालय जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली ने दीपावली से पहले और उसके बाद सेंसर आधारित नेटवर्क से मिले वायु गुणवत्ता संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसके नतीजे खतरनाक स्थिति की ओर इशारा करते हैं।
नई दिल्ली [ संजीव गुप्ता]। मौसमी उतार-चढ़ाव के बीच पिछले एक महीने के दौरान दिल्ली- एनसीआर के प्रदूषण में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 1, 2.5 और 10) के स्तर ने पिछले चार साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। इस दौरान हवा की गुणवत्ता न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई, जिसकी वजह से आपात स्थिति जैसे हालात बन गए। गौैरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली ने दीपावली से पहले और उसके बाद सेंसर आधारित नेटवर्क से मिले वायु गुणवत्ता संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण किया है। यह नेटवर्क दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में लगाए गए सेंसर आधारित वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों के संजाल का एक हिस्सा है। जो दिल्ली के 150 से 200 किलोमीटर के दायरे में पीएम 1, 2.5 और 10 के स्तरों का अनुमान उपलब्ध कराते हैं।
इस विश्लेषण के अनुसार, अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में पीएम 2.5 का सबसे ज्यादा स्तर देखा गया और यह 250 से 500 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया। 5 से 8 नवंबर के बीच यह 600 से 700 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और 10 नवंबर को 1000 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के स्तर को पार कर गया।
पंजाब और हरियाणा में जलाई जा रही पराली बनी मुसीबत
इस चरणबद्ध वृद्धि का बड़ा कारण पंजाब तथा हरियाणा में पराली जलाया जाना रहा। पीएम 10 के स्तर का भी ऐसा ही हाल रहा और यह पीएम 2.5 के मुकाबले 10 गुना ज्यादा रहा। मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर के बीच पीएम 10 के प्रदूषक कण 200 से 300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर जैसी अत्यधिक मात्रा में मौजूद रहे। हालांकि सितंबर में यह 100 से भी कम रहा। 6 से 10 नवंबर के बीच हर दिन चौबीसों घंटे किए गए पर्यवेक्षण के दौरान हवा में पीएम 2.5 और पीएम 1 का स्तर बहुत ऊंचा पाया गया।
सुबह का समय ज्यादा खतरनाक
सुबह के समय हवा में पीएम 1, पीएम 2.5 और पीएम 10 की मौजूदगी का स्तर काफी ज्यादा होता है। सूर्योदय के बाद और भी ज्यादा बढ़ जाता है। माना जाता है कि सुबह की धुंध का संबंध पत्तियों, घास तथा जमीन पर गिरी ओस के वाष्प रूप में उठकर हवा में घुलने से है। इसके अलावा दिल्ली तथा एनसीआर के इलाकों में पराली जलाए जाने से हालात और बदतर हो जाते हैं। जब सूरज की किरणें जमीन पर गिरती हैं तब वाष्पीकरण शुरू हो जाता है। 2.5 से 3 माइक्रोग्राम से भी छोटे कण जोकि हवा में प्रचुर मात्रा में मौजूद होते हैं, आपस में मिलकर 2.5 से 3 माइक्रोग्राम और ज्यादा बड़े कण बनाते हैं। पीएम 2.5 का स्तर पहले से ही काफी ज्यादा (80 0 से 1000 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) हो चुका है।
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