पढ़िए- अब तक इतिहास में दफ्न कमल कुंवरी की अनकही स्टोरी, अंग्रेजों से लिया था लोहा
बुलंदशहर के गुठावली गांव में गुर्जर महिलाएं अंग्रेज सेना से भाला और कुल्हाड़ी लेकर भिड़ गई थीं। महिलाओं की अगुवाई शहीद विजय सिंह पथिक की मां कमल कुंवरी कर रही थीं।
नोएडा [धर्मेंद्र चंदेल]। कौन कहता है अबला है आधी आबादी। हर दौर में उन्होंने अपनी क्षमता और साहस का परिचय बखूबी दिया है। 1857 के स्वाधीनता संग्राम में भी उन्होंने पुरुषों के समान अंग्रेजों को टक्कर दे उनके होश उड़ा दिए थे। आजादी की इस जंग में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं ने अदम्य साहस का परिचय दिया था। दादरी, बुलंदशहर, लोनी व गाजियाबाद आदि कई जगहों पर महिलाएं अंग्रेज सेना से भिड़ गईं थीं। वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती थीं।
रात में पहरा देती थीं महिलाएं
बुलंदशहर के गुठावली गांव में गुर्जर महिलाएं अंग्रेज सेना से भाला और कुल्हाड़ी लेकर भिड़ गई थीं। महिलाओं की अगुवाई शहीद विजय सिंह पथिक की मां कमल कुंवरी कर रही थीं। विजय सिंह पथिक ने अपनी आत्मकथा में मां कमल कुंवरी के हवाले से इसका जिक्र किया है। हालांकि, 1857 के स्वाधीनता संग्राम की चिंगारी मेरठ से उठी थी। मेरठ के कोतवाल धनसिंह गुर्जर ने आसपास के गांवों के लोगों को जोड़कर अंग्रेज सेना के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा दिया था। मेरठ से उठी चिंगारी से दादरी भी धधक उठा था। दादरी रियासत के जमींदार राव दरगाही सिंह के परिवार के साथ धनसिंह कोतवाल के गहरे रिश्ते थे। दरगाही सिंह ने गाजियाबाद, बुलंदशहर, लोनी व फरीदाबाद के गुर्जरों के साथ मिलकर अंग्रेजों के पसीने छुड़ा दिए थे। उस समय नोएडा, ग्रेटर नोएडा व दादरी बुलंदशहर का हिस्सा हुआ करता था। दरगाही सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे राव रोशन सिंह और बाद में भतीजे राव उमराव सिंह ने दादरी रियास की कमान संभाली। इस दौरान क्रांतिकारियों ने बुलंदशहर के गुठावली में अंग्रेज सेना से नब्बे घोड़े छीन लिए। सिकंद्राबाद में उनका खजाना लूट लिया गया। दादरी से लेकर फरीदाबाद तक के गांव बागी हो चुके थे। गांवों के पुरुष मोर्चे पर लड़ाई लड़ने जाते थे, जबकि महिलाएं गांवों में अपने परिवार और बच्चों की देखभाल करती थीं। रात के समय पहरा देने का काम भी महिलाएं करती थीं। ग्रामीणों के बागी तेवर की वजह से अंग्रेज सेना ने इन गांवों में अत्याचार शुरू कर दिए थे।
कुल्हाड़ी और भाला लेकर भिड़ गईं
गुठावली गांव में एक दिन अंग्रेज सेना की एक टुकड़ी पहुंची। उस समय शहीद विजय सिंह पथिक की मां कमल कुंवरी दो अन्य महिलाओं के साथ गांव की बाहरी गलियों में पहरा दे रही थीं। अंग्रेज सेना ने तीनों को पकड़ना चाहा, लेकिन तीनों महिलाएं कुल्हाड़ी और भाला लेकर उनसे भिड़ गईं। शहीद विजय सिंह पथिक अपनी आत्म कथा में लिखते हैं कि अंग्रेज सेना महिलाओं को गोली नहीं मारना चाहती थी। तीनों को सिर्फ हिरासत में लेना चाहती थी। एक महिला ने बहादुरी दिखाते हुए जवान की नाक पर घुसा मार दिया। बहादुरी के इस तरह के किस्से अकेले सिर्फ कमल कुंवारी के ही नहीं हैं, बल्कि दादरी, बुलंदशहर, गाजियाबाद, लोनी व फरीदाबाद क्षेत्र में भी महिलाओं ने बहादुरी का परिचय देते हुए पुरुषों के साथ मिलकर अंग्रेज सेना के खिलाफ विद्रोह के सुर ऊंचे किए।
दादरी और फरीदाबाद के बीच था गहरा रिश्ता
आजादी की जंग में दादरी और फरीदाबाद के वीर क्रांतिकारियों ने मिलकर अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी थी। फरीदाबाद व बुलंदशहर के बीच मालागढ़ के नवाब वलीदाद खां की राव उमराव सिंह के साथ गहरी दोस्ती थी। वलीदाद खां को दिल्ली और मुगलों के अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर का करीबी माना जाता था। उन्होंने दादरी और बुलंदशहर के क्रांतिकारियों के साथ मिलकर दोनों जगह अंग्रेज सेना को खदेड़ कर आधिपत्य कायम कर लिया।
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