UP-बिहार के इस व्यंजन की बहार है, एक बार खाकर कोई नहीं भूल पाएगा इसका स्वाद
सर्दियों में लिट्टी बनाने के लिए जीरा, काली मिर्च, साबुत धनिया, सरसों का तेल और गरम मसाले का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं गर्मियों में प्याज और गरम मसाले की मात्रा घटा दी जाती है।
गाजियाबाद [गौरव शशि नारायण]। पूस-माघ की ठिठुरन में शरीर की अकड़न और जकड़न गर्मा गरम लिट्टी-चोखा से ही मिट सकती है। इंडक्शन और गैस के चूल्हे पर पके खाने पेट की भूख तो मिटा सकते हैं पर स्वाद ग्रंथियों की बैचेनी तो कुछ लजीज सुस्वाद ही मिटा सकता है। वही सुस्वाद जो धीमी-धीमी कोयले की आंच पर सिकती लिट्टी और बगल में मटकी में पकते मटन रूपी चोखे की लजीज सुगंध में मिलता है। घी में तर बतर होकर लिट्टी जब और जायकेदार हो जाएगी तो बेसब्र सी भूख को बड़ी शांति से मिटाएगी।
ऊंची-ऊंची अटारियों में भले रह लीजिए
लेकिन परंपरागत जायके की सोंधी-सोंधी खुशबू के पीछे आपके गाम (कदम) खुद-ब-खुद हो लेते हैं। पूर्वांचल और बिहार का यही ठाठी जायका आपके आसपास उसी खालिस अंदाज में मौजूद है। चाहे बैंगन और आलू वाले उसी देशी चोखे के साथ लें या हांडी मटन के साथ बनारसी तासीर में। नेशनल हाइवे-9 (24) पर जैसे ही दिल्ली की सीमा छोड़कर उत्तर प्रदेश की सीमा यानी यूपी बॉर्डर में प्रवेश करते कुछ आगे बढ़ने पर बाईं तरफ ही इंदिरापुरम की ओर जाती एक रोड आपको जयपुरिया मॉल ले जाएगी और यहीं नजदीक में आपको अपना बनारसी ठाठ जमाए लिट्टी-चोखा वाला भी नजर आ जाएगा। अब बढ़ती भूख का यहां सिकती लिट्टी और हांडी में पकते मटन को देख और बैचेन हो जाना स्वाभाविक है। यूं ही थोड़ी चंद माह पहले खुली दुकान बेमिसाल हो गई। ट्रांस हिंडन, दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद तक से लोग यहां फुर्सत में बाकायदा इसका सुस्वाद लेने आते हैं।
स्वाद के लिए कैमूर रिटर्न सत्तू
अब आप यदि यहां पहली बार सुस्वाद लेंगे तो सोचेंगे कि आखिर ये गांव वाला सा जायका यहां...? दरअसल उसी परंपरागत सुस्वाद को आप ऊंची अटारियों में रहने वालों तक पहुंचाने के लिए खास तौर पर बिहार के कैमूर (भभुआ) जिले से सत्तू मंगाया जाता है। इस सत्तू की खासियत यह है कि चने को आधा भिगो दिया जाता है और आधा सूखा रखा जाता है ताकि इसमें सूखापन बना रहे। इस सत्तू में मसालों का भी बहुत कम प्रयोग किया जाता है, जिससे इसकी वास्तविक तासीर बनी रहती है।
देसी स्वाद से बनी पहचान
दुकान के संचालक मनीष बताते हैं कि उनके पास हांडी- मटन, लिट्टी-चोखा, देसी घी लिट्टी-चोखा, मटन लाल मिर्च लिट्टी, हांडी चिकन लिट्टी सब उपलब्ध हैं। सभी खुद बनाता हूं। आंच पर सिक रहे बैंगन को पलटते हुए एक अलग ही मुस्कान के साथ कहते हैं चोखा में यूं तो आलू, बैंगन, टमाटर, बारीक कटा हुआ प्याज, बारीक कटा हुआ हरा धनिया, मिर्ची, अदरक नींबू सभी डालते हैं फिर भी आप एक बार चखिए और यहां के अलग सुस्वाद की अनुभूति कीजिए। वहीं लिट्टी बनाने के लिए चने के सत्तू में अजवाइन, कलौंजी, प्याज, लहसुन, अदरक, नींबू, हरा धनिया, हरी मिर्च, नमक और सरसों का तेल डालकर अच्छी तरह मिलाया जाता है, ताकि लिट्टी में लजीजियत आ जाए।
बनारसी घी बढ़ा देता है स्वाद
इस दुकान की एक खासियत और है कि यहां लिट्टी-चोखा बनाते समय मौसम का विशेष ध्यान रखा जाता है। सर्दियों में लिट्टी बनाने के लिए जीरा, काली मिर्च, साबुत धनिया, सरसों का तेल और गरम मसाले का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं गर्मियों में प्याज और गरम मसाले की मात्रा घटा दी जाती है। अब आपके जेहन में ये देशी घी में लिपटी लिट्टी भी सवाल पैदा कर रही होगी। तो बता दूं ये बनारसी घी है, जिसे वहीं से विशेष तौर पर मंगाया जाता है। मनीष कहते हैं कि अब जब दुकान चल पड़ी है तो आगे सोच रहा हूं कि क्यों न एक झोपड़ी भी लगा ली जाए और उसमें वही देसी अंदाज में बैठने के लिए पीढ़ा लगाया जाए और तब लिट्टी-चोखा के जायके का दोगुना मजा लिया जाए। छुट्टी के दिन और शुक्रवार, शनिवार व रविवार को खास तौर पर खाने के शौकीन यहां जुटते हैं। अगर यहां नहीं आ सकते तो फूडपांडा के जरिए फ्री होम डिलवरी की भी सुविधा है।
ग्रिल वाली लिट्टी और हांडी का मटन
सुस्वादिष्ट भोजन की एक ही अहम विशेषता मंदी आंच पर उसका पकना। चाहे लकड़ी कोयला और कंडे पर हो या, या फिर अंगीठी और तंदूर पर। उस सुस्वाद का कोई सानी नहीं। यहां बनारसी जायका पर आपको वो जायका मिलेगा बशर्ते इस आंच और लिट्टी के बीच आधुनिक पन की ग्रिल लगा दी है, ताकि लिट्टी और मटन को आंच भी मिले और उसमें लकड़ी और राख की गंध न आए।
परंपरागत स्वाद
इंदिरापुरम जैसे पॉश इलाके में घनी इमारतों के बीच जब लिट्टी-चोखा की दुकान खोली तो तब मन में एक डर था, शंका थी कि पता नहीं यहां मन माफिक दुकान चलेगी या नहीं। लेकिन लिट्टी की गमक सभी को खींच लाई, तब एहसास हुआ कि यहां इस परंपरागत सुस्वाद के इतने दीवाने इस फ्लैट वाली दुनिया में बसते हैं। यहां मटन हांडी को दम देकर पकाया जाता है, जिसमें हांडी के ढक्कन पर गीले आटे से इसे सील कर दिया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में मिट्टी की हांडी में दम लगाकर पकवान बनाने का खासा प्रचलन है। इससे मीट की खुशबू और स्वाद बढ़ जाता है। साथ ही वह अधिक गलता भी नहीं है।
यहां मिलेगा चंपारण वाली लिट्टी का स्वाद
लट्टी-मटन के शौकीनों के लिए इंदिरापुरम में ही एक और ठौर चंपारण स्वाद की है। यहां का नॉनवेज अपने बेहतरीन स्वाद के कारण लोगों के दिलों पर राज करता है। पटना की रहने वाली प्रियंका सिंह बीते दो साल से इस रेस्त्रां को चला रही हैं। चंपारण मीट की सबसे खास बात यह है कि इसे मिट्टी की हांडी में अच्छी तरह पैक कर लकड़ी से बने कोयले की आंच पर पकाया जाता है। यह इसलिए भी खास है, क्योंकि यह अधिक स्वादिष्ट व पौष्टिक होने के साथ ही यह सुपाच्य भी है।
केरल के मसाले और तोतई का तेल
चंपारण हांडी मटन व लिट्टी बनाने के लिए देसी मसालों का इस्तेमाल होता है, जो खासतौर पर केरल से मंगाए जाते हैं। इसमें लौंग, इलायची, बड़ी इलायची, काली मिर्च, धनिया, लाल मिर्च, सूखा धनिया और अन्य मसाले होते हैं। वहीं गढ़मुक्तेश्वर स्थित तोतई गांव से सरसों का तेल लाया जाता है, जो मटन और लिट्टी-चोखे के स्वाद को बढ़ा देता है।
हर जायका लाजवाब
हांडी मटन, हांडी चिकन लिटिल, लिट्टी-चोखा और मुगलई पराठा इस रेस्त्रां की पहचान है। खुशबू और स्वाद ऐसा कि जी ललचा जाए।