Move to Jagran APP

शौर्य गाथाः कैप्टन सुमित ने बिना हथियार दिया था अदम्य साहस का परिचय

आपरेशन विजय के दौरान दुश्मनों पर भारतीय सेना नजर रख रही थी। पीक 4700 पर दुश्मन मौजूद थे। यह बात सेना के अधिकारियों को भी मालूम थी। जैसे ही यह बात मेजर सुमित राय को पता चली तो वे बिना बंदूक के ही अपने साथियों के साथ पीक पर गए।

By Mangal YadavEdited By: Published: Mon, 02 Aug 2021 06:04 PM (IST)Updated: Mon, 02 Aug 2021 06:04 PM (IST)
शौर्य गाथाः कैप्टन सुमित ने बिना हथियार दिया था अदम्य साहस का परिचय
कारगिल युद्ध में आपरेशन विजय के तहत पीक 4700 पर फतह हासिल कर प्राप्त किया वीर चक्र

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। कारगिल युद्ध में आपरेशन विजय के तहत पीक 4700 पर फतह हासिल कर वीर चक्र प्राप्त करने वाले शहीद कैप्टन सुमित राय ने अदम्य साहस का परिचय दिया था। हालांकि 4 जुलाई 1999 को वह दुश्मनों द्वारा किए गए अचानक बम विस्फोट की चपेट में आ गए और शहीद हो गए। उस समय वह द्रास इलाके में मौजूद थे। मात्र 21 साल की उम्र में सुमित ने पीक 4700 और 5140 पर दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए।

prime article banner

आपरेशन विजय के दौरान दुश्मनों पर भारतीय सेना नजर रख रही थी। पीक 4700 पर दुश्मन मौजूद थे। यह बात सेना के अधिकारियों को भी मालूम थी। जैसे ही यह बात मेजर सुमित राय को पता चली तो वे बिना बंदूक के ही अपने साथियों के साथ पीक पर गए। वहां पर दो पाकिस्तानी सैनिक उनको दिखे। पास में बंदूक नहीं होने के कारण वे सभी संभल-संभल कर कदम बढ़ा रहे थे। जब वे पीक के काफी नजदीक थे, तब दुश्मनों से खुद की रक्षा के साथ एक चुनौती यह भी थी कि उनका एक गलत कदम उन्हें 100 मीटर नीचे धकेल सकता था।

टीम के मार्गदर्शन की जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर थी। मेजर सुमित ने अचानक दुश्मनों पर हमला कर दिया। उनको इतना मौका नहीं दिया कि दुश्मन अपनी बंदूक उठा सकें। मेजर सुमित राय व उनके साथियों ने दोनों को पीटते-पीटते मौत के घाट उतार दिया। जैसे इस बात का संदेश नीचे बैठे उनके सीनियर को मिला, हर तरफ जश्न का माहौल कायम हो गया।

उसी दौरान कैप्टन सुमित का नाम वीर चक्र के लिए अंकित कर दिया गया था। 18 गढ़वाल राइफल रेजिमेंट में तैनात सुमित अपने रेजिमेंट में सबसे छोटे थे, लेकिन उनकी टीम लीडरशिप की चर्चा आज भी जवानों की जुबान पर है। उन्हीं की याद में पालम स्थित एक सरकारी स्कूल का नाम शहीद कैप्टन सुमित राय रखा गया था।

कैप्टन सुमित राय की मां सपना राय ने कहा ‘चार जुलाई 1999 की वह सुबह मुझे आज भी याद है आठ बजे फोन की घंटी बजी और सूचना मिली कि कैप्टन सुमित राय अब इस दुनिया में नहीं रहे। उस समय मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया, सुमित घर में सबसे छोटा था। मैंने सबको कहा कि कल शाम ही तो मेरी सुमित से बात हुई थी। दो दिन बाद जब सुमित का शव घर आया तो लोगों ने कहा कि यह गर्व की बात है कि सुमित देश की रक्षा करते हुए शहीद हुआ है, लेकिन एक मां के लिए वह उसका बेटा है जो अब इस दुनिया में नहीं रहा।

सुमित के शहीद होने के बाद उसके द्वारा लिखे कई खत मिले, जिसमें उसने अपने शौर्य का जिक्र किया था। अपने बेटे की इस दिलेरी को आज भी जब मैं याद करती हूं तो काफी गौरवान्वित महसूस करती हूं। हिमाचल स्थित कसौली छावनी क्षेत्र में जन्मे सुमित अपने आसपास रहने वाले सैन्यकर्मियों से काफी प्रभावित थे और बचपन से ही वे सेना का हिस्सा बनना चाहते थे ताकि वे देश के लिए कुछ कर सके।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.