1999 Kargil War: पढ़िए- कैसे पाकिस्तानी सैनिकों से अकेले ही किया था नायक राम सिंह बोरा ने मुकाबला
शौर्य गाथा नायक राम सिंह बोरा के अदम्य साहस व वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत मैन्सन इन डिस्पैच के वीरता पुरस्कार से नवाजा गया। इस दौरान शहीद की पत्नी जानकी बोरा गर्भवती थीं।
नई दिल्ली [मनीषा गर्ग]। 'मैं जला हुआ राख नहीं, अमर दीप हूं। जो मिट गया वतन पर, मैं वो शहीद हूं।' 1999 में हुए कारगिल वार में दुश्मन की ओर से लगातार हो रही गोलीबारी के कारण भारतीय सेना को दुश्मनों के दांत खट्टे करने में काफी मुश्किलें आ रही थीं। उस समय उत्तराखंड के बागेश्वर में ग्राम भगरतोला निवासी व 10 पैरा रेजीमेंट में तैनात नायक राम सिंह बोरा को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी। 10 पैरा रेजीमेंट के मारक दस्ते को पैराड्राप कर नाला जंक्शन नंबर-2243 के समीप उतारकर पाकिस्तान के कब्जे वाली चोटी 5203 को मुक्त कराने की रणनीति बनाई गई थी। पहाड़ों पर पले-बड़े होने तथा उत्कृष्ट कमांडो होने के कारण नायक राम सिंह बोरा ने दुश्मन को घेरने की रणनीति बनाई। वह अकेले ही दुश्मन के बंकर के पास पहुंच गए। मोर्चे पर तैनात दुश्मनों का सफाया कर उन्होंने एक बंकर पर कब्जा कर लिया। इसी बीच सामने की पहाड़ी से दुश्मन ने फायरिंग का रुख पाइंट 5203 की तरफ कर दिया। नायक राम सिंह बोरा के अन्य साथी चोटी पर चढ़ नहीं पाए थे तथा राम सिंह अकेले ही दुश्मन से मोर्चा ले रहे थे। इस दौरान लड़ते-लड़ते वे शहीद हो गए।
उनके अदम्य साहस व वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत मैन्सन इन डिस्पैच के वीरता पुरस्कार से नवाजा गया। इस दौरान नायक राम सिंह बोरा की पत्नी जानकी बोरा गर्भवती थी। पति की शहादत पर एक तरफ जहां उन्हें गौरव महसूस हो रहा था, तो दूसरी तरफ उन्हें अपने बच्चे की भविष्य की भी चिंता थी। पर बिना कदम डगमगाए वे निरंतर आगे बढ़ती रही। पति के बाद अब उन्होंने अपने बेटे विजय प्रताप सिंह बोरा को भी देश की रक्षा के लिए सुपुर्द करने का मन बनाया लिया है।
बेटे के सवालों ने बढ़ाई चुनौती
जानकी बोरा बताती हैं कि पति की शहादत के बाद आंखों के सामने सिवाए अंधेरे के कुछ नहीं था। उस मुश्किल घड़ी में गर्भ में पल रहा मेरा बच्चा मेरे लिए उम्मीद की किरण था। बच्चे के जन्म के बाद दुख कम हुआ और ऐसा लगा कि पति की शहादत के बाद उन्हीं के रूप में भगवान ने मुझे बेटा दिया है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया तो बेटे के मन में पिता को लेकर कई तरह के सवाल उठने लगे। उन सवालों का जवाब देना मेरे लिए वाकई में काफी चुनौतीपूर्ण था। मैं उसे जैसे-जैसे बहलाती थी। वो कहता था, सबके पापा छुट्टी में आते हैं, मेरे क्यों नहीं आते? पापा मुझे स्कूल लेने क्यों नहीं आते? जब वह बातों को समझने लगा तो उसका एक ही सवाल होता था, पापा मेरे आने पर खुश तो थे न? दो साल पहले ही बेटे की पढ़ाई के चलते हम दोनों दिल्ली शिफ्ट हुए है। फिलहाल वह श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में बीकॉम द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहा है। उसमें भी पिता की भांति अदम्य साहस है और पिता की कहानियां उसे काफी प्रेरित करती है। उसकी आंखों में नजर आता है कि वह भी फौज में जाकर अपने शौर्य काे प्रदर्शित करेगा।