एम्स ट्रामा सेंटर में हादसा पीड़ितों का इलाज शुरू करने के लिए आरडीए ने उठाई आवाज
एम्स के रेजिडेंट डाक्टर्स एसोसिएशन ने अपने पत्र में कहा है कि पिछले साल 28 मार्च को ट्रामा सेवाओं को मुख्य अस्पताल की ओपीडी में स्थानांतरित किया गया था। ताकि ट्रामा सेंटर में कोरोना का इलाज हो सके।
नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। एम्स ट्रामा सेंटर पिछले करीब डेढ़ साल से कोरोना के अस्पताल में तब्दील है। इस वजह से ट्रामा सेंटर में कोरोना का ही इलाज होता रहा है। इसमें हादसा पीड़ितों का इलाज बंद है। एम्स के रेजिडेंट डाक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) ने अब ट्रामा सेंटर में दोबारा हादसा पीड़ितों के इलाज की सुविधा शुरू करने के लिए आवाज उठाई है। इस बाबत आरडीए ने एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया को पत्र लिखकर ट्रामा सेंटर में पहले की तरह हादसा पीड़ितों के इलाज की सुविधा शुरू करने व किसी दूसरे सेंटर में कोरोना के इलाज की व्यवस्था करने की मांग की है। क्योंकि हादसा पीड़ितों का इलाज प्रभावित हो रहा है।
आरडीए ने अपने पत्र में कहा है कि पिछले साल 28 मार्च को ट्रामा सेवाओं को मुख्य अस्पताल की ओपीडी में स्थानांतरित किया गया था। ताकि ट्रामा सेंटर में कोरोना का इलाज हो सके। शुरुआत में लाकडाउन के कारण मुख्य अस्पताल में चल रहे ट्रामा इमरजेंसी वार्ड में मरीजों का ज्यादा दबाव नहीं था, लेकिन अब हादसा पीड़ितों का दबाव बढ़ गया है। इससे इलाज प्रभावित हो रहा है। स्थिति यह है कि ट्रामा सेंटर इमरजेंसी विभाग में पहले की तुलना में 20 से 30 फीसद मरीज कम देखे जा रहे हैं।
इसका कारण यह है कि हादसा पीड़ितों के इलाज के लिए संसाधन कम हो गए हैं। ट्रामा सेंटर में 264 बेड है। जिसमें 71 आइसीयू बेड शामिल है। जबकि अभी मुख्य एम्स में चल रहे ट्रामा इमरजेंसी वार्ड में महज 95 बेड की व्यवस्था। जिसमें 18 आइसीयू बेड है। सर्जरी के लिए आपरेशन थियेटर भी कम मिले हैं। इस वजह से सर्जरी कम हो गई है। लिहाजा सर्जरी की वेटिंग बढ़ गई है। साथ ही रेजिडेंट डाक्टरों का प्रशिक्षण भी प्रभावित हो रहा है।
डाक्टर कहते हैं कि ज्यादातर मरीजों को दूसरे अस्पतालों में स्थानांतरित करना पड़ता है। वहीं ट्रामा सेंटर में पिछले करीब एक माह से कोरोना के 25 से 35 मरीज भर्ती रहते हैं। बाकी बेड खाली रहता है। एम्स ट्रामा सेंटर देश में अपने तरह का अग्रणी सेंटर है। इससे दिल्ली-एनसीआर में हादसा पीड़ितों के इलाज की सुविधा बेहतर हुई। इसके साथ ही देश में कई अन्य ट्रामा सेंटर विकसित करने में मददगार बना। इसलिए ट्रामा सेंटर में हादसा पीड़ितों के इलाज की सुविधा दोबारा शुरू होनी चाहिए। वहीं किसी दूसरे केंद्र में कोरोना के इलाज के लिए स्थायी व्यवस्था होनी चाहिए। संस्थान के एक वरिष्ठ डाक्टर ने कहा कि प्लास्टिक व बर्न सेंटर खाली पड़ा है। दूसरी लहर के दौरान उसमें कोरोना के कुछ मरीज भर्ती भी किए गए थे। उसमें कोरोना के इलाज की व्यवस्था की जा सकती है।