'रामधारी सिंह दिनकर की कविताएं जीवन संघर्ष से जुड़ी हैं और सच की राह दिखलाती हैं'
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि चर्चित गायक एवं सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि दिनकर मूलतः समन्वय की संस्कृति में विश्वास रखने वाले रचनाकार है। दिनकर की कविताएं जीवन संघर्ष की राह आलोकित करती है। दिनकर को याद करना अपने पुरुखों की समृद्ध विरासत को याद करना है।
नई दिल्ली, जेएनएन। स्वयंसेवी संस्था रिस्पेक्ट इंडिया ने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 'राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति व्याख्यान 2020' का आयोजन किया। रिस्पेक्ट इंडिया हर वर्ष दिनकर स्मृति व्याख्यान का आयोजन करता है। इस वर्ष सच्चिदानंद जोशी (सदस्य सचिव, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र ) ने छठा व्याख्यान दिया। इससे पूर्व बीपी सिंह (पूर्व राज्यपाल, सिक्किम, पुरुषोत्तम अग्रवाल (आलोचक ), डीपी त्रिपाठी (राजनेता एवं सांसद), प्रकाश जावेड़कर ( केंद्रीय मंत्री) आदि ने दिनकर स्मृति व्याख्यान दिया है। कार्यक्रम का आरम्भ रिस्पेक्ट इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं शिक्षाविद निर्मल गहलोत के स्वागत भाषण से हुआ। उन्होंने कहा कि दिनकर ओज, उत्साह के साथ- साथ प्रेम और पीड़ा की घनीभूत अनुभूतियों को सम्प्रेषित करने वाली कविताएं भी लिखी हैं, जो अपनी मार्मिकता से अभिभूत करती हैं।
कार्यक्रम के उद्घाटनकर्ता झारखंड सरकार के अवर महधिवक्ता राजीव सिंह ने कहा कि दिनकर मेरे प्रिय कवि हैं। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए हम सब बड़े हुए है। भारतीय संस्कृति के गौरव राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर मूलतः संघर्ष और पौरुष के सफल गायक है। दिनकर विचारों के कवि है । आज हम सब सच कहने का साहस खोते जा रहे हैं। कवि का कर्तव्य होता हैं सच की राह दिखलाना, जिसे दिनकर ने बखूबी निभाया। दिनकर का परिचयात्मक वक्तव्य देते हुए लोकप्रिय कथाकार एवं कवि नीलोत्पल मृणाल ने कहा कि नयी पीढ़ी दिनकर को अधूरे रूप से जानती है, दिनकर को समग्रता मे जानना अपने समय और समाज की चुनौतियों को जानना है।
'परम्परा और संस्कृति ' विषय पर सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों को उद्घाटित करता है, जो उस समाज के कार्य व्यवहार सोचने, विचारने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि में परिलक्षित होती है। संस्कृति का वर्तमान रूप किसी समाज के दीर्घ काल तक अपनायी गयी पद्धतियों का परिणाम होता है । हमारी परम्पराएं संस्कृति का एक जटिल अंग हैं, जिन्हें हम अपने परिवारों या पूर्वजों द्वारा प्राप्त करते हैं। परन्तु संस्कृति एक बड़ी छतरी है जिसके अंदर वर्षों से चली आ रही हमारी सभ्यताएं योगदान देती हैं। परंपरा और संस्कृति पर बल देते हुए कहा कि नयी शिक्षा नीति नयी पीढ़ियों को हमारी समृद्ध परम्परा और संस्कृति से जोड़ने का काम करेगी। इस से हमारी भारतीय अस्मिता और सशक्त होगी।
उन्होंने कहा कि लार्ड मैकाले अपनी शिक्षा नीति से हमें अपनी जड़ों से काटने का काम किया था और आजादी के सत्तर वर्षो बाद भी लगभग वैसी ही शिक्षा नीति जारी रही तथा संस्कृति को बहुत सीमित कर दिया गया। रसोई घर में चकुला और बेलन के बीच सामंजस्य नहीं होने और बेलन से रोटी बनाती स्त्री के चुड़ियों की खनक से जो मोहक संगीत पैदा होता है, वह भी संस्कृति का अभिन्न अंग है। नयी पीढ़ी की परम्परा और संस्कृति से विमुखता दुखद है। सुबह मे प्रकृति की मनोहर छवि और चिड़ियों के कलरव का संगीत छोड़कर हम एयर फोन लगाकर कृत्रिम जीवन जीते है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि चर्चित गायक एवं सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि दिनकर मूलतः समन्वय की संस्कृति में विश्वास रखने वाले रचनाकार है। दिनकर की कविताएं जीवन संघर्ष की राह आलोकित करती है। दिनकर को याद करना अपने पुरुखों की समृद्ध विरासत को याद करना है। कार्यक्रम के अध्यक्ष डीएम मुले, सदस्य मानवाधिकार आयोग ने कहा कि भारतीय परंपरा और संस्कृति का जितना सूक्ष्म और गहरा दर्शन दिनकर के संस्कृति के चार अध्याय मे दीखता है, उतना ही उनकी कविताओं मे भी अभिव्यक्त होता है। दिनकर अभिजन और लोक को जोड़ने वाले रचनाकार है। दिनकर सामासिक संस्कृति के अनन्य आराधक तथा सभी संप्रदायों के प्रति समादर भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे।
कार्यक्रम मे पूर्व विधायक सुरेंद्रपाल सिंह बिट्टू, पार्षद मनीष चौधरी, राजा इकबाल सिंह, रिस्पेक्ट इंडिया के संरक्षक डॉ प्रमोद कुमार द्विवेदी, विनयमणि त्रिपाठी, उपाध्यक्ष शम्भू झा, डॉ नेहा मिश्रा, राहुल कुमार झा, कुणाल सिंह, पंकज कुमार ठाकुर आदि ने भाग लिया। रिस्पेक्ट इंडिया के महासचिव डॉ मनीष के चौधरी ने कहा कि इस वैश्विक आपदा के बीच इतनी बड़ी संख्या मैं सभी की भागेदारी दिनकर के प्रति तथा हमारी परम्परा और संस्कृति के प्रति लोगो के प्रेम को दर्शाती है।
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