राम मंदिर भूमिपूजन को लेकर कारसेवकों में खुशी, कहा- यह ऐतिहासिक दिन होगा
Ram Mandir लंबा संघर्ष और सुखद परिणति देख रामकृष्ण जैसे कारसेवकों की आंखों में खुशी की चमक है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। 500 साल के संघर्ष के इतिहास समेटे राम मंदिर के भूमि पूजन को लेकर देश भर के लोगों में खुशी है। खुशी उन चेहरों पर साफ तौर पर देखी जा सकती है जिन्होंने राममंदिर आंदोलन में भाग लिया। पांच अगस्त को इसका नया अध्याय शुरू होगा। विश्व के सबसे बड़े आंदोलनों में से एक राममंदिर आंदोलन और लंबी चली कोर्ट की लड़ाई। आखिरकार तपस्या पूरी हुई और अयोध्या में भूमि पूजन का दिन नजदीक आ रहा है। अब गिने चुने चंद दिन ही शेष रह गए हैं। लंबा संघर्ष और सुखद परिणति देख रामकृष्ण जैसे कारसेवकों की आंखों में खुशी की चमक है।
यह ऐतिहासिक दिन होगा
एक कारसेवक रामकृष्ण श्रीवास्तव कहते हैं कि सैकड़ों सालों के संघर्ष और हजारों लोग के बलिदान के बाद यह ऐतिहासिक दिन सामने आया है। इसलिए यह भावुक पल है। अगर सामान्य दिन होता तो वह भी भूमि पूजन का गवाह बनने जाते, पर कोरोना के कारण वह घर से ही टीवी पर इस दृश्य को देखेंगे।
इटावा से बचते-बचाते अयोध्या तक पहुंचे थे रामकृष्ण
न्यू अशोक नगर निवासी व विहिप दिल्ली के पूर्व महामंत्री व पंजाब के पूर्व संगठन मंत्री रामकृष्ण श्रीवास्तव उन दिनों को याद करते हुए कहा कि कैसे उन्होंने अन्य कारसेवकों के साथ वर्ष 1990 व वर्ष 1992 के राममंदिर आंदोलन में भाग लिया? कैसे, वह इटावा से बचते-बचाते अयोध्या तक पहुंचे थे। वर्ष 1990 के आंदोलन में उन्हें कारसेवकों को जगह-जगह रात्रि विश्राम के लिए जगह की व्यवस्था करने के साथ भोजन व्यवस्था की जिम्मेदारी दी गई थी। छोटी टोली बनाकर वह निकले थे। अपने गृह जिले इटावा तक तो किसी प्रकार पहुंच गए, पर आगे मामला संवेदनशील था।
हर जगह थी पुलिस की पहरेदारी
पुलिस की पहरेदारी हर जगह थी। हर आने-जाने वाले वाहनों की तलाशी हो रही थी। यहां तक की ट्रेनों की तलाशी में संदिग्ध पाए जाने पर कारसेवकों को गिरफ्तार कर लिया जाता था। उस समय मुलायम सिंह यादव की उत्तर प्रदेश में सरकार थी और उन्होंने अयोध्या और उस तक जाने वाले सभी रास्तों को छावनी में तब्दील कर दिया था। उनके साथ छह कारसेवक थे। इटावा के आगे वह गांव के रास्ते आगे बढ़े। गांवों में लोग उनकी मदद करते थे। रास्ता बताते थे।
गांव वाले देते थे खाना
भोजन की व्यवस्था व रात्रि विश्राम के लिए जगह देते थे। हालांकि, लोग में डर था। फिर भी श्रद्धाभाव इतना था कि मदद के लिए आगे बढ़ते। यहां तक की एक मुस्लिम इक्का वाले ने उन लोग को कई किलोमीटर तक एक नहर के रास्ते आगे जाकर छोड़ा। फिर भी रास्ते में दो लोग बिछड़ गए। वे तीन लोग के साथ ही अयोध्या पहुंच पाएं। अयोध्या पहुंचे ही थे कि सरकार ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। वहां लाशें बिछ गई। इसके बाद भी जो बच गए उनकी धर-पकड़ तेज हो गई। वह भी किसी प्रकार बचते-बचाते वहां से निकले और घर जाने की जगह मध्य प्रदेश में अपने एक रिश्तेदार के यहां 15 दिनों के लिए आश्रय लिया।