वेतन घोटाले का पैसा रेलवे को मिला वापस, पौने तीन करोड़ का हुआ था भुगतान
लेखा विभाग की जांच में गड़बड़ी सामने आने के बात मामला सतर्कता विभाग को सौंप दी गई। जांच में पता चला कि दो वर्षों से 11 फर्जी लोगों के नाम पर वेतन व भत्तों का भुगतान किया जा रहा है।
नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। उत्तर रेलवे के केंद्रीय अस्पताल में फर्जी डाक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों के नाम पर हड़पी गई राशि रेलवे को वापस मिल गई है। अस्पताल में तैनात सीनियर क्लर्क ने संविदा पर काम करने वाले डाक्टर व स्वास्थ्य कर्मियों के साथ ही अपने रिश्तेदारों व मित्रों के खाते में लगभग पौने तीन करोड़ रुपये का भुगतान किया था। दो वर्षों से ज्यादा समय तक यह भुगतान होता रहा था और रेलवे अधिकारियों को इसकी भनक तक नहीं लगी थी। मई, 2018 में लेखा विभाग के कुछ कर्मचारियों को शक होने पर जांच पड़ताल शुरू हुई तो मामला सामने आयाा।
लेखा विभाग की जांच में गड़बड़ी सामने आने के बात मामला सतर्कता विभाग को सौंप दी गई। जांच में पता चला कि दो वर्षों से 11 फर्जी लोगों के नाम पर वेतन व भत्तों का भुगतान किया जा रहा है। इस मामले में अस्पताल में तैनात सीनियर क्लर्क भरत धूपड़ को निलंबित कर मामले की शिकायत पहाड़गंज थाने में की गई थी। धूपड़ कर्मचारी नेता था इसलिए इस मामले को शुरू में दबाने की भी कोशिश की गई थी। पहाड़गंज पुलिस ने सब इंस्पेक्टर पवन यादव को इस मामले की जांच सौंपी।
मामले की जांच करके पुलिस ने धूपड़, उसके मित्र की पत्नी सोनिया डिसूजा और केंद्रीय अस्पताल में तैनात अस्थायी कर्मचारी गोपाल को गिरफ्तार कर पूछताछ शुरू की। पूछताछ से उन सभी लोगों का पता चल सका जिनके बैंक खातों में पैसे डाले गए थे। मामला सामने आने के बाद अस्पताल में तैनात अनिकेत नाम के अस्थायी डाक्टर ने पैसे रेलवे को वापस लौटा दिए थे। वहीं, अन्य ने अदालत के आदेश पर पैसे वापस किए।
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि फर्जी डाक्टरों के नाम पर लगभग 2.80 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ था। अदालत के माध्यम से अब पैसे रेलवे के खजाने में जमा हो गया है। सभी आरोपित जमानत पर हैं। धूपड़ को नौकरी से हटा दिया गया है।
उत्तर रेलने में फर्जी वेतन भुगतान का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले जनवरी, 2018 में फर्जी कर्मचारियों के नाम पर वेतन भुगतान का मामला सामने आया था। इस घटना के बाद रेलवे बोर्ड ने सभी मंडलों को दो वर्षों के वेतन भुगतान की जांच करने का आदेश दिया गया था। अधिकारियों का कहना है कि कर्मचारियों का वेतन आइ-पास नाम के साफ्टवेयर में दर्ज होता है जिससे रिकार्ड की जांच करने में आसानी होती है। वेतन में गड़बड़ी पकड़ने की जिम्मेदारी वरिष्ठ कार्मिक प्रबंधक की होती है।