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भारतीय नजरिये से लिखा जाए भारत का इतिहास : प्रोफेसर मक्खन लाल

प्रो. मक्खन लाल ने कहा कि इतिहासकार के रूप में हमें यह स्वीकारना चाहिए कि एक राष्ट्र का इतिहास अलग अलग संस्कृतियों से बनता है। आज भारत के इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से लिखे जाने की आवश्यकता है।

By Jp YadavEdited By: Published: Sat, 01 Jan 2022 09:10 AM (IST)Updated: Sat, 01 Jan 2022 09:10 AM (IST)
भारतीय नजरिये से लिखा जाए भारत का इतिहास : प्रोफेसर मक्खन लाल
भारतीय नजरिये से लिखा जाए भारत का इतिहास : प्रोफेसर मक्खन लाल

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। आइआइएमसी में ‘शुक्रवार संवाद’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में इतिहासकार प्रो. मक्खन लाल ने भारत को एक प्राचीन राष्ट्र बताया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी शासन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद देश का जो इतिहास लिखा गया, उसमें कुछ अहम पक्षों को नजरअंदाज कर दिया गया। इतिहासकार के रूप में हमें यह स्वीकारना चाहिए कि एक राष्ट्र का इतिहास अलग-अलग संस्कृतियों से बनता है। आज भारत के इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से लिखे जाने की आवश्यकता है।

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आजादी का अमृत महोत्सव और हमारा इतिहास बोध विषय पर अपने विचार रखते हुए प्रो. मक्खन लाल ने कहा कि हम जीवन में हर दिन किसी-न-किसी तरह से इतिहास का इस्तेमाल करते हैं। हम अपने अतीत को कैसा महत्व देते हैं, इसी के आधार पर आपके भविष्य का निर्माण होता है। अक्सर यह प्रश्न उठता है कि भारत एक राष्ट्र है या नहीं। अगर भारत एक राष्ट्र नहीं था, तो वास्कोडिगामा और कोलंबस किसे ढूंढ़ने निकले थे। यूरोप, रोमन और ग्रीस के साथ कौन व्यापार कर रहा था।

प्रो. मक्खन लाल के अनुसार देश की वर्तमान पीढ़ी तथ्यों से परिचित नहीं है। भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जिसका निर्माण विविध भाषा, संस्कृति, धर्म और सांस्कृतिक विकास के समृद्ध इतिहास द्वारा हुआ है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भारत में स्कूल एवं कालेजों की शिक्षा सरकारों पर आश्रित रही। इस कारण किताबें भी सरकार की सुविधा के अनुसार लिखी गईं। आजादी से पहले भारत की शिक्षा व्यवस्था समाज द्वारा पोषित थी। विद्यार्थियों से शिक्षा के लिए कोई फीस नहीं ली जाती थी। जब मैकाले ने भारत की शिक्षा पद्धति को उलट दिया, तब शिक्षा का व्यवसायीकरण होना शुरू हुआ।

प्रो. मक्खन लाल ने कहा कि भारत की शिक्षा प्रणाली बेहद प्राचीन है। वर्ष 1834 से 1850 के बीच किए गए एक सर्वे के दौरान यह तथ्य सामने आया कि बिहार और बंगाल में उस वक्त एक लाख से ज्यादा स्कूल थे। इस समय में भारत की 87 प्रतिशत आबादी साक्षर थी, जबकि इंग्लैंड की 17 प्रतिशत आबादी पढ़ी-लिखी थी। लेकिन, जब ब्रिटिश भारत से गए, तब भारत की साक्षरता दर घटकर 17 प्रतिशत रह गई। कार्यक्रम का संचालन प्रो. प्रमोद कुमार ने किया एवं स्वागत भाषण संस्थान के डीन अकादमिक प्रो. गोविंद सिंह ने दिया। 


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