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प्रणब मुखर्जी ने खोली संवाद की नई राह तो इसकी गूंज दूर तक जाएगी

महात्मा गांधी, राम मनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश,नीलम संजीव रेड्डी सरीखे नेताओं को संघ ने संवाद के लिए आमंत्रित किया था।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 12 Jun 2018 10:24 AM (IST)Updated: Tue, 12 Jun 2018 10:24 AM (IST)
प्रणब मुखर्जी ने खोली संवाद की नई राह तो इसकी गूंज दूर तक जाएगी
प्रणब मुखर्जी ने खोली संवाद की नई राह तो इसकी गूंज दूर तक जाएगी

नोएडा (सिद्धार्थ)। आज के दौर में संवादहीनता की स्थिति है। समाज से लेकर राजनीति तक में आपसी बातचीत के अवसर हाल के वर्षों में धीरे-धीरे कम हुए हैं। ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा देश के पूर्व राष्ट्रपति व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता को अपने प्रांगण में वक्ता के रूप में आमंत्रित करना संवाद का एक नया रास्ता खोलता है। पूर्व राष्ट्रपति ने उस आमंत्रण को स्वीकार किया और संघ मुख्यालय पहुंचकर इस जड़ता को तोड़ने की सार्थक पहल की है। भारतीय राजनीति में इस पहल के दूरगामी परिणाम सामने आएंगे। एक ऐसे दौर में जब आपसी विश्वास छीज रहा हो, यह पहल सार्थक है। यह बातें जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मणीन्द्र नाथ ठाकुर ने दैनिक जागरण द्वारा आयोजित ‘’ कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता कही।

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‘प्रणब मुखर्जी के नागपुर जाने का मतलब’ विषय पर केंद्रित संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन दैनिक जागरण दिल्ली-एनसीआर के वरिष्ठ समाचार संपादक मनोज झा ने किया। उन्होंने संघ की वैचारिक जमीन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संघ मुख्यालय में पहले भी दूसरी विचारधारा के नेता और चिंतक पहुंचे हैं। महात्मा गांधी, राम मनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश,नीलम संजीव रेड्डी सरीखे नेताओं को संघ ने संवाद के लिए आमंत्रित किया था।

उन्होंने कहा कि पहले देश में राजनीतिक-सामाजिक सहिष्णुता ऐसी थी कि विपरीत खेमे के चिंतक का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय जाना चर्चा का इतना बड़ा विषय नहीं बना। वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में जब संघ ने पूर्व राष्ट्रपति एवं वरिष्ठ कांग्रेसी नेता को अपने मुख्यालय आने का निमंत्रण भेजा तो देशभर में यह कौतूहल का विषय हो गया? प्रणब दा के नागपुर पहुंचने के अलग-अलग राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं।

मुख्य वक्ता प्रोफेसर मणीन्द्र नाथ ठाकुर ने भारतीय चिंतन परंपरा के ‘न्याय दर्शन’ से चर्चा शुरू की। उन्होंने कहा कि ‘न्याय दर्शन’ हमेशा पूर्व पक्ष और उत्तर पक्ष को एक साथ देखता है और संवाद के आधार पर ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है। कुछ दशकों से देश के राजनीतिक हालात ऐसे हैं जिसमें हम सही विश्लेषण नहीं कर पा रहे। राजनीतिक दल अपनी विचारधारा में इस कदर कैद हो गए हैं कि उनमें आपस में संवाद की कोई गुंजाइश ही नहीं दिखती।

प्रोफेसर ठाकुर ने कहा कि किसी भी देश, समाज और राजनीति में संवाद का खत्म हो जाना बेहद खतरनाक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा पूर्व राष्ट्रपति को आमंत्रित करना इस जड़ता को तोड़ने का कदम है और प्रणब मुखर्जी का वहां जाना संवाद में भरोसा जगाने वाला है। प्रणब मुखर्जी ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित का संदेश दिया है।

पूर्व राष्ट्रपति के नागपुर जाने के राजनीतिक कारण क्या हो सकते हैं? इस सवाल के जवाब में प्रोफेसर ठाकुर ने कहा कि इसके पीछे दलगत राजनीतिक लाभ देखना उचित नहीं है। प्रणब मुखर्जी न तो व्यक्तिगत लाभ की आकांक्षा से नागपुर गए और न ही उनके वहां पहुंचने से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी को कोई फायदा मिलेगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी विचारधारा के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त है।शायद यही वजह है कि संघ ने किसी दूसरी विचारधारा से प्रेरित राजनीतिक शख्सियत को भी आमंत्रित करने से परहेज नहीं किया।

प्रोफेसर ठाकुर ने कहा कि किसी दूसरे राजनीतिक चिंतन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिंतन में मौलिक अंतर यह है कि संघ मानव ‘मस्तिष्क’ के साथ ही ‘भावना’ से काम करता है। दूसरे राजनीतिक चिंतन में इस ‘भावना’ की ही कमी है। प्रणब मुखर्जी ने इस ‘भावना’ को समझा। मौजूदा राजनीतिक संदर्भ में यह ‘संवाद’ नई बहस की नींव रखता है। इसकी गूंज दूर तक जाएगी।


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