Move to Jagran APP

आखिर कैसे इन बच्‍चों ने अपनी जिद से जीता यह राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार

इस साल के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुस्कार प्राप्त बच्चे (कुल 29) इन दिनों चर्चा में हैं। इन होनहारों ने साबित किया कि अपनी क्षमताओं पर भरोसा करके हम न केवल बड़ी जीत की ओर बढ़ सकते हैं बल्कि इससे दूसरों को ऐसा करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 29 Jan 2022 05:49 PM (IST)Updated: Sat, 29 Jan 2022 05:50 PM (IST)
आखिर कैसे इन बच्‍चों ने अपनी जिद से जीता यह राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार
आखिर कैसे उन्होंने अपनी जिद की बदौलत छोटी उम्र में बड़ी मिसाल कायम कर दी...

नई दिल्‍ली, सीमा झा। ‘हर हाल में अपने कर्तव्या पर डटे रहने में यकीन रखता हूं। पढ़ाई कर रहा हूं पर आर्थिक मुश्किलों से भी जूझ रहा हूं। खुद पर भरोसा है कि शिक्षित होकर इस पर भी जीत हासिल कर लूंगा।‘ कहते हैं पश्चिमी चंपारण, बिहार के धीरज गुप्ता।। उन्हें भी दूसरे बच्चों के साथ इस वर्ष राष्ट्रीय बाल पुरस्कार दिया गया है।

loksabha election banner

दोस्तों, धीरज ने बड़ी ही बहादूरी से अपने छोटे भाई को मगरमच्छ के हमले से बचाया। उसी बहादूरी से अपने जीवन में भी आगे बढ़ रहे हैं। आर्थिक कमी की तरह और भी बहुत प्रकार की मुश्किलें हमारे सामने आ सकती हैं। ज्यादातर लोग इनसे डर जाते हैं पर जिन्हें अपने ऊपर भरोसा होता है वे संयम के साथ मुश्किलों से मुकाबला करने का साहस जुटा लेते हैं और अपने कमाल के कारनामों से हर किसी को अचंभित कर देते हैं। हमारे देश में ऐसे बच्चों और किशोरों की कमी नहीं है जो दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं।

डरता तो लड़ता कैसे : पश्चिमी चंपारण (बिहार) के धीरज कुमार गुप्ता की उम्र महज 14 साल है। उन्हें बहादुरी श्रेणी में इस साल के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। अपने कारनामे के बारे में वह बताते हैं, ‘भैंस धोने गया था उस दिन। मेरे साथ में मेरा छोटा भाई भी था।अचानक देखा कि एक मगरमच्छ ने मेरे छोटे भाई पर हमला कर दिया है। उस समय मुझे कुछ नहीं सूझा, पर मैं मगरमच्छ से भिड गया। इस भिड़ंत में मैं घायल हो गया था लेकिन खुशी इस बात की थी कि मेरा भाई मेरे साथ सकुशल घर लौट आया।

वह बताते हैं कि प्रधानमंत्री ने मुझसे पूछा था कि बड़े होकर क्या बनना चाहते हो तो मेरे पास एक ही जवाब था कि मैं फौजी बनकर देश की सेवा करूंगा। मैंअपने भीतर ऐसा साहस पाता हूं। हालांकि मेरा परिवार बहुत सक्षम नहीं है। चार भाई बहन हैं। पिता खेती- बाड़ी करते हैं किसी तरह गुजारा होता है। घर में बिजली भी नहीं है। पुरस्कार से जो पैसे मिले हैं उससे घर की हालत ठीक करना चाहता हूं। युवा दोस्तों से कहना चाहता हूं कियदि मैं उस दिन डर गया होता तो आज यह सब संभव नहीं होता। उस वक्त मुझे केवल मेरा छोटा भाई नजर आ रहा था। अपनी चिंता बिलकुल नहीं थी। चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं यदि हम अपने काम पर एकाग्र रहें और साहस से आगे बढ़ते रहें तो मुश्किलों पर जीत हासिल करसकते हैं।

भरोसा रखें आप भी हैं हुनरमंद : अजमेर (राजस्थान) की गौरी माहेश्वरी की उम्र 13 साल है। उन्हें कला-संस्कृति श्रेणी में कैलीग्राफी के लिए पुरस्कृत किया गया है। इस बारे में गौरी बताती हैं कैलीग्राफी में मुझे रंगों से खेलना बहुत पसंद है। कैलीग्राफी क्या होती है,मैं जब दूसरी कक्षा में थी तभी इसके बारे में जान गई थी। पर बड़े लोगों को भरोसा ही नहीं था कि मैं इतनी छोटी उम्र में कैलीग्राफी सीख सकती हूं। दरअसल, जब मैंने देखा कि रंग विरंगी सुंदरलिखावट मुझे आकर्षित करती है तो इस कला को सीखने की धुन सवार हो गई। मैंने दूसरी कक्षा में मम्मी से जिद की कि मुझे समर कैंप में कैलीग्राफी कोर्स में दाखिला दिला दें। मम्मी ने जब समर कैंप में टीचर से कहा तो उन्होंने मेरी छोटी उम्र का वास्ता देकर मना कर दिया। पर मैंने जिद की तो सबको झुकना पड़ा।

कक्षा में दूसरे ही दिन मेरी लिखावट को पूरी कक्षा को दिखाया गया। उसके बाद से ही मेरी कैलीग्राफी कीयात्रा शुरू हो गयी। अब मुझे कैलीग्राफी की एक सौ पचास शैलियों के बारे में जानकारी है। साथ ही 1500 से अधिक लोगों को इसका प्रशिक्षणभी दे चुकी हूं। गौरी ने कहा कि वह खुद का एक एप बनाना चाहती हैं जहां बच्चे आकर अपना टैलेंट दिखा सकें और इसी तरह पुरस्कार से सम्मानित हो सकें। भारत हुनर की धरती है पर उनके बारे में हमें पता नहीं होता। मैं अपने युवा दोस्तों से कहना चाहती हूं कि यकीन करें कि आपके भीतर भी एक नायाब हुनर है। उसे छिपाएं नहीं बल्कि पहचानें और सामने लाएं। यदि छिपा लिया तो एक समय बाद वह हुनर खत्म होजाएगा।

जज्बे से सीख सकते हैं सबकुछ : सिरसा (हरियाणा) की तनिष सेठी(14 साल को इनोवेशन श्रेणी में पुरस्कृत किया गया है। सम्मानित होने के बाद उनका कहना है, ‘इन दिनों मेरे पास बहुत सारे फोन आ रहे हैं। लोग मेरी सफलता के बारे में पूछते हैं, कहानियां जानते हैं, गर्व करते हैं तो काफी अच्छा लगता है। पर सच कहूं तो मुझे इसका कभी भान नहीं था कि मेरे शौक के लिए मुझे प्रधानमंत्री से पुरस्कार मिलेगा और उनसे बात करने का अवसर भी।सबसे दिलचस्प यह है कि मुझे इससे पहले कोई पुरस्कार नहीं मिला।

पहला पुरस्कार ही राष्ट्रीय है। एप डेवलप करने में मेरी रुचि तब पैदा हुई जबसे मेरे पास स्मार्ट फोन आया। मैं कोडिंग सीखता और नई तकनीकों पर नजर रखता। इसके बाद जब पहली बार लाकडाउन लगा तो मैंने अपने मां-पिताजी (जो कि शिक्षक हैं) की सुविधा के लिए एक एप बनाया। इसे सबने पसंद किया। उसके बाद से अब तक नौ एप बना चुका हूं। यदि सीखने का जज्बा है तो आप कुछ भी सीख सकते हैं। अब तो आपके पास इंटरनेट भी है। इसका खूब इस्तेमाल करें। हालांकि मुझे लगता है कियह सोचना कि छोटे शहर का हूं इसलिए उतनी सुविधा नहीं आत्मविश्वास भी अपेक्षाकृत कम है,सही नहीं है। यह भ्रम अब टूट रहा है। मैं आगे डेवलपर के रूप में ऐसे उपयोगी एप बनाना चाहता हूं, जिससे समाज और देश के लिए योगदान दिया जा सके। याद रखें, सबसे अधिक महत्व यह रखता है कि आपके भीतर प्रतिभा है। आपके माता-पिता का साथ है। मोबाइल फोन का उपयोगी चीजों में इस्तेमाल करें, केवल मनोरंजन के लिए नहीं।मनोरंजन अपनी जगह है लेकिन आपका हर कदम लक्ष्य की दिशा में हो। मैं शतरंज भी खेलता हूं और राज्य स्तर खेल चुका हूं। मेरे मन से हमेशाएक ही आवाज आती है कि अभी और ज्यादा मेहनत करनी है।

हमारी उम्र नहीं, काम देखें

अवि शर्मा

उम्र :12 साल, इंदौर (मध्य

प्रदेश)

पुरस्कार श्रेणी : शिक्षा

अक्सर लोग छोटी उम्र में बच्चों के कार्य देखकर चौंक जाते हैं। मेरे साथ भी यही होता है। पर मुझे लगता है कि यह सही नहीं है। हमेशा कार्यदेखना चाहिए। मैं अपने दोस्तों से भी यही कहना चाहता हूं। आपकी उम्र चाहे जितनी हो आपको लगता है कि आपकी किसी कार्य में रुचि है तोआपको वह काम जरूर करना चाहिए। बालमुखी रामायण जिसके लिए मुझे बाल पुरस्कार मिला है। वह संपूर्ण रामायण का सार है। यह छंदों मेंलिखा गया है जिसमें कुल ढाई सौ छंद हैं। ये छंद मैंने सात दिन में तैयार किए हैं। मुझे बचपन से ही धार्मिक और प्रेरक विषयों में दिलचस्पीरही है। गीता में मैंने मुंबई यूनिवर्सिटी से डिप्लोमा किया है। जब लाकडाउन में रामायण देखा था तभी खयाल आया कि रामायण तो घर-घरहोना चाहिए। इसलिए छंद लिखने का विचार आया। बड़ी हंसी आई थी जब प्रधानमंत्री ने पूछा था कि आपके भीतर बचपन बचा है क्या? मैं तोकहता हूं मैं भी बच्चों जैसी हरकतें करता हूं। घर पर डांट भी खाता हूं दूसरे बच्चों की तरह। कोई विशेष नहीं हूं। बस अपने काम को मनोयोग सेकरता हूं। पिछले चार साल से मैं मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर भी कार्य कर रहा हूं। अपने दोस्तों से कहना चाहता हूं कि आप हमेशा बड़ेलक्ष्य रखें। गेम खेलना पसंद है तो गेम बनाने के बारे में भी सोचें।

मदद करना है बहादूरी

शिवांगी काले

उम्र : 6 साल, जलगांव (महाराष्ट्र)

पुरस्कार श्रेणी : बहादुरी

बाल शक्ति पुरस्कार के लिए चुनी जाने वाली शिवांगी काले पूरी घटना बताते हुए उन दिनों में खो जाती हैं। अगले ही पल एक बड़ी बात कहती हैंकि किसी की मदद करना बहादुरी का काम है। शिवांगी की मां गुलबख्श काले (इंडियन नेवी से रिटायर्ड आफिसर) कहती हैं, ‘शिवांगी घटना केदिन पांच साल की थी। उसकी सूझबूझ ने मुझे और अपनी दो वर्षीया छोटी बहन को करंट लगने के बाद हुई किसी अनहोनी से बचाया।‘गुलबख्श काले के मुताबिक, पिछले साल जनवरी में एक सुबह पति दफ्तर चले गए। वह दोनों बेटियों के लिए अल्युमिनियम की बाल्टी में नहाने के लिए राड लगाकर पानी गर्म कर रही थीं। उन्होंने अनजाने में राड लगी बाल्टी को पकड़ लिया। उन्हें जब करंट लगा तो उनकी चीख निकल गयी। छोटी बेटी को लगा कि मम्मी नाटक कर रही हैं। वह उनके पास हंसते हुए दौड़ी पर शिवांगी ने थोड़ा ऊपर लगे प्लग के स्विच कोबंद करने का सोचा। वह दौड़कर स्टूल लायीं और स्विच आफ कर दिया। बिटिया की इस सूझबूझ ने मां को हैरान कर दिया। उसे बाल शक्ति पुरस्कार से नवाजा गया। गुलबख्श के मुताबिक, यदि उस दिन प्लग समय पर बंद नहीं होता तो कुछ भी अनहोनी हो सकती थी। इसलिए बच्चों को रोजमर्रा से जुड़ी उपयोगी जानकारी जरूर देनी चाहिए। इससे उनका ही नहीं, सबको लाभ होता है।

प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार : साल 2018 से आरंभ प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार में बहादुरी पुरस्कार भी शामिल किया गया है। इस साल के लिए कुल 29 बच्चों को पुरस्कृत किया गया। इसमें नवाचार (7), सामाजिक सेवा (4), शैक्षिक (1), खेल (8), कला और संस्कृति (6) और वीरता (3) श्रेणियों में अपनी असाधारणउपलब्धियों के लिए चुना गया। महिला और बाल विकास मंत्रालय की तरफ से यह पुरस्कार दिया जाता है। हर विजेता को एक पदक, एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार और प्रमाण पत्र दिया जाता है।

पहली बार ब्लाकचेन तकनीक से पुरस्कार : इस वर्ष पहली बार प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (पीएमआरबीपी) ब्लाकचेन तकनीक के माध्यम से प्रदान किए गए। पुरस्कृत बच्चों को डिजिटल प्रमाण पत्र देने के लिए आइआइटी कानपुर द्वारा विकसित ब्लाकचेन संचालित तकनीक का उपयोग किया गया। आपको बता दें कि डिजिटल प्रमाणप्रत्र को डिजिटल वालेट में स्टोर किया जाता है। ब्लाकचेन एक उभरती हुई तकनीक है, जो विकेंद्रीकरण के सिद्धांत पर काम करती है। इससे डाटा को सुरक्षित रखने में मदद मिलती है। इस तकनीक का उपयोग कई क्षेत्रों में पहले से ही किया जा रहा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.