जानिए, कैसे दिवालिया होने की कगार पर पहुंची गईं कई बिलजी कंपनियां
बैंकों व बिजली कंपनियों के साथ सरकार की भी बढ़ी मुसीबत। 34 कंपनियों पर बकाया हैं 1.77 लाख करोड़ रुपये। कर्ज वसूली को बैंकों की छह माह की मोहलत पूरी।
नई दिल्ली (जयप्रकाश रंजन)। देश के बैंकिंग सिस्टम के फंसे कर्ज (एनपीए) के कचरे को साफ करने की भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की मुहिम कितनी सफल होगी यह तो आगे पता चलेगा, लेकिन फिलहाल यह समस्या और उलझती जा रही है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बैंकों का कर्ज नहीं चुकाने वाली बिजली कंपनियों को और राहत देने से मना कर दिया है।
कोर्ट के इस फैसले के बाद डेढ़ दर्जन से ज्यादा बिजली कंपनियों को दिवालिया घोषित करने के लिए नेशनल कंपनी लॉ टिब्यूनल (एनसीएलटी) में मामले दायर किए जा सकते हैं। वैसे कोर्ट में 34 कंपनियां गई थीं। केंद्र सरकार पूरे मामले पर नजर बनाए हुए है। मामले के हल के लिए सरकार, बैंकों व आरबीआइ के बीच विचार विमर्श शुरू हो चुका है।
क्या है मामला
आरबीआइ ने 12 फरवरी, 2018 को सख्त निर्देश दिया था कि जो भी कंपनी 180 दिनों तक कर्ज नहीं चुकाती है, उनके खिलाफ नए इंसॉल्वेंसी व बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) के तहत दिवालिया प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। इस नियम के दायरे में कई क्षेत्रों के साथ ही बिजली क्षेत्र की 34 कंपनियां भी आ गईं।
इनमें से अधिकांश कंपनियों के प्रोजेक्ट कोयला व गैस नहीं मिलने या उत्पादित बिजली के खरीदार नहीं मिलने से अधूरे पड़े हैं। 40 हजार मेगावाट क्षमता की इन कंपनियों पर बैंकों का 1.77 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है। आरबीआइ के दिशा निर्देश के खिलाफ उत्तर प्रदेश की कुछ बिजली कंपनियों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय से राहत की गुहार लगाई थी। 34 में से 26 कंपनियां कोर्ट पहुंची थीं। इनमें से तीन उत्तर प्रदेश की थीं, जिन पर 14000 करोड़ रुपये का कर्ज बाकी है। सरकार व बैंकों को भी उम्मीद थी कि कोर्ट बिजली क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए राहत दे देगा।
160 दिनों की मोहलत अभी भी
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने साफ कर दिया है कि बिजली कंपनियों को आरबीआइ के नियम से अलग नहीं रखा जा सकता, लेकिन सरकार चाहे तो आरबीआइ एक्ट की धारा 7 के तहत केंद्रीय बैंक से बात कर सकती है। यानी केंद्र सरकार चाहे तो विशेष निर्देश दे सकती है। इस मामले में केंद्र पहले ही कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में विशेष समित बना चुकी है। कोर्ट ने समिति को कहा है कि वह दो माह यानी 60 दिनों के भीतर इस बारे में फैसला करे। इस तरह से देखा जाए तो सरकार, आरबीआइ व बैंकों के पास 60 दिनों का समय है जिसमें वे बिजली कंपनियों पर बकाया कर्ज की वसूली को लेकर बीच का रास्ता निकाल सकते हैं।
वित्त मंत्रलय के सूत्रों के मुताबिक, आगे का रास्ता आरबीआइ के रुख और कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट से तय होगा। एक अन्य उपाय यह हो सकता है कि केंद्र मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाए, जहां पहले से ही एनपीए को लेकर समग्र तौर पर सुनवाई चल रही है। माना जा रहा है कि उसमें यह मामला भी उठाया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो सरकार व बैंक सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक इंतजार कर सकते हैं।
बाकी 20 कंपनियों पर भी कार्रवाई
बैंकों का कर्ज नहीं चुकाने वाली इन 34 बिजली कंपनियों में से सात ऐसी है जिनके खिलाफ कर्ज नहीं चुकाने के मामले पहले से ही एनसीएलटी में हैं। इन कंपनियों की स्थिति पर विचार करने के लिए भारतीय स्टेट बैंक की अगुवाई में एक समिति बनी थी। समिति से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इनमें से सात-आठ अन्य बिजली कंपनियां ऐसी हैं जिन्हें अगर और मदद दी जाए तो उन्हें दिवालिया प्रक्रिया के तहत ले जाने की जरूरत नहीं होगी। इसके लिए समाधान नाम से एक योजना शुरू की गई है। इस तरह 34 में से 14-15 कंपनियों को निकाल दिया जाए तो शेष बची 19-20 बिजली कंपनियों के मामले में ही दिवालिया प्रक्रिया एनसीएलटी में शुरू करने की जरूरत होगी।
ये प्रोजेक्ट फंसे
जिंदल इंडिया थर्मल, केएसके महानदी, लैंको अनपारा, लैंको विदर्भ, प्रयागराज पावर, रतन इंडिया पावर, आरकेएम पावरजेन, एसकेएस पावर, अवंता पावर (कोरबा), एस्सार पावर (झारखंड), एस्सार पावर (महान), जीएमआर (छत्तीसगढ़), जीएमआर वरोरा एनर्जी, जेपी पावर (बीना), जेपी पावर (निगरी)