धान व गेहूं की फसल के बीच आलू की खेती के प्रचलन ने बढ़ाया दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण
मौसम विज्ञानियों का कहना है कि फसल अवशेष में आग लगने की घटनाओं में हुई बढ़ोतरी के पीछे सबसे बड़ा कारण धान व गेहूं की फसल के बीच आलू की खेती का प्रचलन है। जिससे दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।
नई दिल्ली [गौतम कुमार मिश्र]। धान की कटाई के बाद खेत में बचे फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर जारी कोशिशों के बीच एक बुरी खबर कृषि विज्ञानियों को परेशान कर रही है। यह बुरी खबर पंजाब से आ रही है। पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के विज्ञानियों का कहना है कि इस वर्ष सेटेलाइट से संस्थान को उपलब्ध कराई गई तस्वीरों से इस बात के साफ-साफ संकेत मिल रहे हैं कि पिछले वर्षों के मुकाबले इस वर्ष पंजाब में फसल अवशेष में आग लगाने की घटनाएं बढ़ी हैं। आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी सितंबर के आखिरी सप्ताह से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह के बीच विशेष तौर से देखी जा रही है। विज्ञानियों का कहना है कि फसल अवशेष में आग लगने की घटनाओं में हुई बढ़ोतरी के पीछे सबसे बड़ा कारण धान व गेहूं की फसल के बीच आलू की खेती का प्रचलन है। पंजाब में धान-गेहूं के बीच आलू की खेती का प्रचलन इन दिनों जोर पकड़ रहा है।
दरअसल अभी तक विज्ञानी यह मानकर चल रहे थे कि फसल अवशेष में आग लगाने का मुख्य कारण फसल अवशेष प्रबंधन के लिए किसानों के पास पर्याप्त वक्त का अभाव है। इस समस्या को देखते हुए संस्थान ने कम समय में तैयार होने वाली धान की किस्मों पर शोध करना शुरू किया। पूसा 1509 व कुछ किस्में संस्थान की ओर से जारी की गई। ये किस्में परंपरागत किस्मों की तुलना में डेढ़ महीने पूर्व तैयार हो जाती हैं। आमतौर पर सितंबर के आखिरी सप्ताह तक इनकी कटाई हो जाती है। अब जो नया प्रचलन सामने आया है उसमें किसान इस डेढ़ महीने के समय का उपयोग फसल प्रबंधन के बजाय आलू की खेती में करने लगे हैं। किसान अब धान की कटाई के बाद खेत को खाली रखने या फसल अवशेष प्रबंधन के बजाय खेत का इस्तेमाल आलू की ऐसी किस्मों की खेती में करते हैं जो नवंबर के आखिरी सप्ताह तक काफी हद तक तैयार हो जाए।
विज्ञानियों के मुताबिक इस समय आलू का भाव बाजार में अच्छा होता है। इसे देखते हुए किसान कच्चे आलू की आपूर्ति बाजार में करना शुरू कर देते हैं। आलू की फसल के बाद किसान एक बार फिर आनन फानन में गेहूं की तैयारियों में जुट जाता है। दिसंबर में से लेकर जनवरी तक किसान अपने खेत में गेहूं की खेती में जुट जाते हैं।
डॉ. एके सिंह (निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) का कहना है कि कम समय में तैयार होने वाली धान की किस्मों के विकास के पीछे तमाम तरह के कारण थे। कम समय में धान की फसल तैयार होने का सीधा सीधा अर्थ सिंचाई की बचत, देखरेख में आसानी, उत्पादन लागत का कम होना जैसे तमाम बातें थीं। इसके अलावा हमारा उद्देश्य यह भी था कि इससे पंजाब व आसपास के राज्यों में धान की कटाई के बाद फसल अवशेष प्रबंधन में समय की कमी की समस्या भी दूर होगी। धान व गेहूं की फसल के बीच किसान को फसल अवशेष प्रबंधन में पर्याप्त समय मिलेगा। इस बात को देखते हुए संस्थान ने पूसा डिकंपोजर का भी विकास किया। लेकिन अब धान व गेहूं के बीच आलू की खेती के प्रचलन को लेकर हो रही जल्दबाजी चिंता का विषय है। इस संबध में हम क्या बेहतर से बेहतर कर सकते हैं, इसपर विचार किया जा रहा है।
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