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कैंब्रिज से आई डरावनी खबर, सूर्य की रोशनी पर भी पड़ रही प्रदूषण की काली छाया

इस अध्ययन के मुताबिक, पिछले कुछ सालों से दिल्ली में सर्दियों के दौरान स्मॉग की मोटी परत छा रही है। यह परत लंबे समय तक छाई रहती है। इससे दृश्यता भी कम हो जाती है।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 12 Sep 2018 10:02 AM (IST)Updated: Wed, 12 Sep 2018 03:29 PM (IST)
कैंब्रिज से आई डरावनी खबर, सूर्य की रोशनी पर भी पड़ रही प्रदूषण की काली छाया
कैंब्रिज से आई डरावनी खबर, सूर्य की रोशनी पर भी पड़ रही प्रदूषण की काली छाया

नई दिल्ली (संजीव गुप्ता)। दिल्ली-एनसीआर का बढ़ता वायु प्रदूषण अब सूर्य को भी अपनी चपेट में लेने लगा है। प्रदूषण की काली छाया से सूर्य की रोशनी इस क्षेत्र में कम पहुंच रही है। इस रोशनी की कमी से सोलर पैनल भी क्षमता से कम बिजली पैदा कर पा रहे हैं।

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कैंब्रिज स्थित मैसाचुसेटस प्रौद्योगिकी संस्थान (एमआइटी) की 2016 और 2017 के दौरान किए गए अध्ययन को हाल ही में एनर्जी एंड एनवायरमेंट साइंस जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इसमें एमआइटी विज्ञानियों ने निष्कर्ष के समर्थन में रोचक एवं वैज्ञानिक तथ्य पेश किए हैं।

इस अध्ययन के मुताबिक, पिछले कुछ सालों से दिल्ली में सर्दियों के दौरान स्मॉग की मोटी परत छा रही है। यह परत लंबे समय तक छाई रहती है। इससे दृश्यता भी कम हो जाती है, जिससे इस क्षेत्र तक पहुंचने वाली सूर्य की रोशनी भी हर साल नौ फीसद तक कम हो रही है। सूर्य की किरणों के कम आने से करीब 40 किलोवाट प्रति घंटा प्रति वर्ग मीटर बिजली कम उत्पन्न हो पा रही है।

सर्दियों की इस स्थिति के दौरान इस अध्ययन में शामिल विज्ञानियों ने धरती पर पहुंचने वाले सोलर रेडिएशन के साथ हवा में मौजूद पीएम 2.5 का भी आकलन किया। इससे पता चला कि दिल्ली में लगे सोलर पैनलों की उत्पादन क्षमता में भी हर साल 12 फीसद की दर से कमी आ रही है।

यह आकलन विभिन्न परियोजनाओं की प्लानिंग के लिए काफी जरूरी माना गया है। यदि परियोजनाओं की प्लानिंग करते समय प्रदूषण के कारण सिस्टम की क्षमता पर पड़ रहे असर का ठीक से आकलन नहीं किया गया तो लागत की तुलना में मिलने वाला रिटर्न गलत साबित हो सकता है।

विज्ञानियों ने अध्ययन में वायु प्रदूषण की इस काली छाया के प्रभाव को सोलर पावर सिस्टम से संबंधित तमाम योजनाओं की प्रोजेक्ट रिपोर्ट के लिए अनिवार्य बताया गया है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो इसकी वजह से सौर ऊर्जा का उत्पादन घटता जाएगा। इससे सोलर सिस्टम की विश्वसनीयता कम हो सकती है जो भविष्य में खतरा साबित होगी।


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