सालभर वायु प्रदूषण के खिलाफ चली जंग, फिर भी दिल्ली-NCR रहा बेहाल
अध्ययन बता रहे हैं कि दिल्ली-एनसीआर में स्थिति इस साल अधिक खतरनाक रही है।
नई दिल्ली (संजीव गुप्ता)। पर्यावरण के लिहाज से यह साल बीते वर्ष से अधिक सुर्खियों में रहा। गत वर्ष की भांति इस साल राजधानी स्मॉग चैंबर न बने, इसके लिए साल की शुरुआत के साथ ही बैठकों का दौर शुरू हो गया। एक्शन प्लान भी बनाए जाने लगे, लेकिन तमाम सरकारी व गैर सरकारी दावों से परे दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा बद से बदतर होती गई। चाहे वह वाहनों से निकलने वाला धुआं हो या सड़क पर उड़ने वाली धूल, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म कणों की बढ़ती संख्या ने आबोहवा को ढाई गुणा तक जहरीला कर दिया है।
चिंताजनक यह है कि पहले से प्रदूषित और जहरीली हवा में कैंसर कारक तत्व भी तेजी से बढ़ रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की शोध रिपोर्ट में सामने आया है कि दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा में पोलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाईड्रोकार्बन, डायोक्सीन, बैंजीन और पेस्टीसाइड की मात्रा काफी खतरनाक स्तर पर पहुंच रही है।
सीपीसीबी ने इन सभी प्रदूषक तत्वों को कार्सेजैनिक अर्थात कैंसरजन्य की श्रेणी में रखा है। शायद यही वजह है कि दिल्ली-एनसीआर की जहरीली होती हवा को लेकर संसद भी गंभीरता जता चुकी है। वहीं केंद्र सरकार का थिंक टैंक नीति आयोग भी अब गंभीर हो गया है। आयोग ने वर्ष 2017-20 के अपने तीन वर्षीय एजेंडे में इस दिशा में पांच सूत्रीय फॉर्मूला भी पेश किया है।
ग्रेप बना, 20 नए मॉनिटरिंग स्टेशन हुए शुरू
वातावरण में प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 का इंडेक्स 61 से 90 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर या पीएम 10 का इंडेक्स 101 से 250 के बीच होगा तो यह स्थिति सामान्य मानी जाएगी। इससे अधिक होने पर सीपीसीबी ने प्रदूषण के चार अलग-अलग स्तरों के हिसाब से ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) तैयार किया है।
सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बाद जनवरी 2017 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रलय ने ग्रेप को अधिसूचित किया था। 17 अक्टूबर से 2017 से पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण-संरक्षण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने इसे समूचे दिल्ली-एनसीआर में लागू कर दिया है। यह 15 मार्च 2018 तक लागू रहेगा।
इसके अलावा इस वर्ष दिल्ली में 20 नए एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन भी शुरू किए गए हैं। यह बात अलग है कि पुख्ता व्यवस्था नहीं होने के कारण उक्त दोनों का ही अभी तक कोई फायदा सामने नहीं आया है।
दिल्ली सरकार का लापरवाह रवैया
इस साल फिर आठ नवंबर को दिल्ली में स्मॉग इमरजेंसी की स्थिति बनी और हफ्ते भर तक बनी रही, लेकिन दिल्ली सरकार इससे निपटने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुई। न तो ऑड इवेन ही लागू किया जा सका, न सार्वजनिक परिवहन में सुधार हो पाया और न ही ग्रेप के दूसरे मानक लागू हो पाए।
हर स्तर पर हर मानक का उल्लंघन देखने को मिला। दिल्ली सरकार बस पराली पर ही अटकी रही। सड़कों पर हेलीकॉप्टर से पानी के छिड़काव की भी बातें हुईं, मगर कुछ किया नहीं गया।
इस स्थिति पर पीएमओ और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने न सिर्फ समीक्षा बैठक की, बल्कि इस पर भी मंथन किया कि अगर दिल्ली सरकार दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य का ख्याल नहीं रख पाती है और अपने कर्तव्यों का निवर्हन करने में नाकाम रहती है तो क्या किया जाए?
दिल्ली सरकार से इस बाबत तमाम अधिकार छीनने पर भी चर्चा हुई। ईपीसीए भी ग्रेप के उल्लंघन की दिशा में दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट में घसीटने मन बना चुका है।
सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों के लिए बनाया जा रहा विस्तृत एक्शन प्लान
सीपीसीबी ने राजधानी के सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों के लिए विस्तृत योजना तैयार कर ली है। सीपीसीबी अधिकारियों के मुताबिक पहले केवल आनंद विहार, पंजाबी बाग और डीटीयू जैसे इलाके ही सर्वाधिक वायु प्रदूषण वाले थे, लेकिन धीरे-धीरे पीतमपुरा, दिल्ली विश्वविद्यालय, पूसा, लोधी रोड, मथुरा रोड, आया नगर, नजफगढ़, ओखला, नेशनल स्टेडियम, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, शादीपुर और धीरपुर इत्यादि जगहों पर भी प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर सामान्य से कहीं ज्यादा पहुंच रहा है। हर जगह के प्रदूषण की वजह भी अलग है। मसलन, कहीं की वजहें औद्योगिक इकाइयां, टूटी सड़कें, भवन निर्माण कार्य हैं तो कहीं की कूड़ा-कचरा, कोयला और लकड़ियां जलाना इसीलिए हर इलाके के लिए कार्ययोजना भी अलग बनाई गई है।
इस वर्ष और घातक हुई प्राणवायु
सीपीसीबी के अनुसार इस बार दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण आपात स्थिति की समयावधि पिछले बार से बेशक कम रही लेकिन उसका स्तर कहीं अधिक खतरनाक रहा है। दोनों साल के आंकड़ों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर सीपीसीबी के अपर निदेशक डॉ. दीपांकर साहा ने बताया कि 2016 में प्रदूषण ने पिछले सभी रिकार्ड तोड़ दिए थे।
अब अध्ययन बता रहे हैं कि स्थिति इस साल अधिक खतरनाक रही है। फिर चाहे यह तुलना पीएम 2.5 की हो या फिर मिक्सिंग हाइट और हवा की गति की, इस साल दिल्लीवासियों ने प्रदूषण का अधिक गंभीर चरण झेला है। 2016 में 30 अक्टूबर से 7 नवंबर तक पीएम 2.5 की मात्र 197 से 709 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रही। इस साल 7 से 12 नवंबर तक यह 357 से 611 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के बीच रही।