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दिल्ली सीरियल ब्लास्टः 11 साल बाद भी चार आतंकी पुलिस की पहुंच से दूर

कमांडर के मारे जाने के बाद सीरियल ब्लास्ट के आरोपी व पाक आतंकी जिनका कोड नाम अबू अल कामा, अबू जाहिद, राशिद मंसूर व साजिद सलफी था, कश्मीर छोड़कर पाकिस्तान भाग गए।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 17 Feb 2017 08:26 AM (IST)Updated: Fri, 17 Feb 2017 08:35 AM (IST)
दिल्ली सीरियल ब्लास्टः 11 साल बाद भी चार आतंकी पुलिस की पहुंच से दूर
दिल्ली सीरियल ब्लास्टः 11 साल बाद भी चार आतंकी पुलिस की पहुंच से दूर

नई दिल्ली (राकेश कुमार सिंह)। देश की राजधानी दिल्ली में 11 साल बाद सीरियल ब्लास्ट के मामले में अदालत अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने तीन आरोपियों में से दो को बरी करते हुए तारिक अहमद डार को दोषी माना है। तारिक को 10 साल की सजा सुनाई गई है। हालांकि, तारिक पहले ही 13 साल की सजा काट चुका है।

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बता दें कि 2005 में दिवाली से एक दिन पहले हुए इन धमाकों में 60 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इन धमाकों के पीछे आतंकी संगठन लश्कर-ए-तोएबा का हाथ था। वहीं, वर्ष 2005 में दिल्ली में सीरियल बम ब्लास्ट मामले में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल लश्कर के चार पाकिस्तानी मूल के आतंकियों को अब तक नहीं पकड़ पाई है। अदालत ने मोहम्मद हुसैन फजली व मोहम्मद रफीक शाह को किन सुबूतों के अभाव में बरी किया है, स्पेशल सेल के अधिकारी इस मंथन में जुट गए हैं।

29 अक्टूबर 2005 को धनतेरस की शाम करीब छह बजे राजधानी में एक के बाद तीन जगह बम धमाके हुए थे। पहाड़गंज व सरोजनी नगर मार्केट में हुए बम धमाके में 67 लोग मारे गए और 220 लोग घायल हो गए थे। सरोजनी नगर में गोल गप्पे की दुकान के पास लश्कर आतंकी ने बम रखा था। उसके बगल में जूस की दुकान थी।

दोनों दुकानों पर महिलाओं व बच्चों की ज्यादा भीड़ थी। गोल गप्पे की दुकान के पास गैस सिलेंडर थे, बम फटने से सिलेंडर भी फट गया था। इससे वहां सबसे अधिक लोग मारे गए थे। छह टूटी चौक, मेन बाजार, पहाड़गंज में नौ लोगों की मौत हुई थी। तीसरा बम ओखला डिपो जाने वाली डीटीसी की बस में रखा गया था।

चालक कुलदीप की नजर बम पर पड़ने पर उसने बस को रोक कर सवारियों को उतार दिया था। बम को बस से निकालकर उसे सड़क किनारे पेड़ के पास रखकर जब वह लौट रहा था तभी बम फट गया। हादसे में चालक की आंखों की रोशनी चली गई थी।

तीनों घटनाओं में सरोजनी नगर, पहाड़गंज व कालकाजी थाने में एफआइआर दर्ज की गईं। तीनों केसों को जांच के लिए स्पेशल सेल में ट्रांसफर किया गया। सेल को जांच में पता चला कि लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने वारदात को अंजाम दिया है। स्पेशल सेल ने नवंबर 2005 को तारिक अहमद डार, मोहम्मद हुसैन फजली उर्फ जावेद व मोहम्मद रफीक शाह को दबोचा। तीनों जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं।

तारिक ने अबू उजेफा के साथ मिलकर साजिश रची थी। जनवरी 2006 में स्पेशल सेल ने श्रीनगर के पटन इलाके में लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर व सीरियल ब्लास्ट के मुख्य साजिशकर्ता अबू उजेफा को आर्मी व जम्मू-कश्मीर एसओजी के साथ मिलकर मुठभेड़ में मार गिराया।

कमांडर के मारे जाने के बाद सीरियल ब्लास्ट के आरोपी व पाक आतंकी जिनका कोड नाम अबू अल कामा, अबू जाहिद, राशिद मंसूर व साजिद सलफी था, कश्मीर छोड़कर पाकिस्तान भाग गए। उनके बारे में स्पेशल सेल को कोई सुबूत नहीं मिल रहा है।

आतंकी वारदात के लिए दी गई थी मोटी रकम

जांच में स्पेशल सेल को यह जानकारी मिली कि तारिक अहमद, फारुख अहमद बटलू व गुलाम अहमद खान को आतंकी घटनाओं के लिए मोटी रकम की फंडिंग हुई थी। लिहाजा स्पेशल सेल ने वर्ष 2005 में ही इन पर एक और केस दर्ज किया था।

तारिक को आतंकी घटना को अंजाम देने के लिए 84 लाख मिले थे, जिनमें वह 12 लाख ही खर्च कर पाया था। इस मामले में कोर्ट फारुख अहमद बटलू व गुलाम अहमद खान को दोषी करार दे चुकी है। सीरियल ब्लास्ट मामले में अभियोजन ने 200 लोगों को गवाह बनाया।


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