Pollution ALERT! लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रही जहरीली हवा, चौंका देगा मौत का ये आंकड़ा
Pollution ALERT! एक अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते प्रत्येक वर्ष 70 लाख लोगों की जान चली जाती है। इनमें 6 लाख का आंकड़ा बच्चों का है। भारत समेत दुनियाभर में तकरीबन 30 करोड़ बच्चे वायु प्रदूषण के चलते जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं।
नई दिल्ली, जागरण आनलाइन डेस्क। मानसून के विदा होने के साथ ही हवा का रुख बदलते ही दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में वायु प्रदूषण में इजाफा होना शुरू हो गया है। दिल्ली-एनसीआर में पिछले डेढ़ दशक के दौरान किसी महामारी की तरह फैलने वाला वायु प्रदूषण लगातार जानलेवा साबित होने लगा है। वायु प्रदूषण के चलते अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर, निमोनिया और किडनी संबंधी बीमारियां होती हैं, जो कभी-कभार जानलेवा भी हो जाती है। वायु प्रदूषण के चलते असमय मौत और महिलाओं में गर्भपात की समस्या भी सामने लगी है। कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान दिल्ली-एनसीआर में मौतों का आंकड़ा तुलनात्मक रूप से ज्यादा रहा। इसके पीछे वायु प्रदूषण भी बड़ी वजह है। डाक्टरों का भी मानना है कि वायु प्रदूषण के चलते लोगों को इम्यून कमजोर हो जाता है, ऐसे में अगर कोरोना वायरस आक्रमण करे तो लड़ाई थोड़ी मुश्किल हो जाती है।
ग्रीनपीस दक्षिण पूर्व एशिया द्वारा वायु गुणवत्ता विश्लेषण में अनुमान लगाया गया है कि देश की राजधानी दिल्ली में पीएम-2.5 के प्रदूषण के कारण प्रत्येक 10 लाख की जनसंख्या पर 18,000 लोगों की जान गई। अध्ययन में यह भी कहा गया कि पीएम-2.5 के प्रदूषण की वजह से दिल्ली 2020 में करीब 54,000 लोगों की जान चली गई थी। यह आंकड़े शुरुआत में देखने अविश्वनीय लग सकते हैं, लेकिन हकीकत के बेहद करीब हैं।
वायु प्रदूषण से देश-दुनिया का बुरा हाल
एक अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण के चलते प्रत्येक वर्ष 70 लाख लोगों की जान चली जाती है। इनमें 6 लाख का आंकड़ा बच्चों का है। भारत समेत दुनियाभर में तकरीबन 30 करोड़ बच्चे वायु प्रदूषण के चलते जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। कुल मिलाकर देश-दुनिया में 6 अरब से ज्यादा लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं।
पयार्वरण और मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत डेविड आर.बायड के अनुसार, लोगों को स्वच्छ हवा में सांस लेने का मूल अधिकार है और वायु प्रदूषण स्वस्थ पर्यावरण में सांस लेने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के तहत 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक होने पर वायु प्रदूषण महिलाओे के गर्भपात के 29 फीसद से ज्यादा मामलों में जिम्मेदार है। वहीं , चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज की तिआनजिया गुआन ने कहा कि गर्भपात के कारण महिलाओं की मानसिक, शारीरिक और आíथक स्थिति पर गंभीर असर पड़ता है। गुआन ने कहा कि प्रसव बाद अवसाद, बाद के गर्भधारण में मृत्यु दर बढ़ने और गर्भावस्था के दौरान खर्च बढ़ने जैसी अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।