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Bihar Election 2020 Result: 1000 किलोमीटर दूर दिल्ली में बैठे नेताओं की धड़कनें हुईं तेज

Bihar Election 2020 Result एक्जिट पोल में महागठबंधन को बढ़त मिलने की खबरें आते ही सत्ता से कोसों दूर चल रहे इन नेताओं के चेहरे पर भी चमक आने लगी है। वहीं अन्य दलों में बेचैनी भी है।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 02:43 PM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2020 03:30 PM (IST)
Bihar Election 2020 Result: 1000 किलोमीटर दूर दिल्ली में बैठे नेताओं की धड़कनें हुईं तेज
कांग्रेस प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल चूंकि बिहार के भी प्रभारी हैं, लिहाजा उनकी साख उनकी भी दांव पर है।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता।  Bihar Election 2020 Result: बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम  मंगलवार को आना है, लेकिन नेताओं की धड़कनें दिल्ली में तेज हो गई हैं। खासकर कांग्रेसी नेता तो इन दिनों ज्यादा ही बैचेन हैं। एक्जिट पोल में महागठबंधन को बढ़त मिलने की खबरें आते ही सत्ता से कोसों दूर चल रहे इन नेताओं के चेहरे पर भी चमक आने लगी है। इसके पीछे सोच यह कि अगर बिहार की सत्ता में हिस्सेदारी मिली तो दिल्ली में भी अनुकूल माहौल बनने लगेगा। दिल्ली में बिहार के रहने वालों की संख्या बड़ी मात्र में है। सत्ता तक पहुंचने में ये मददगार साबित हो सकते हैं। दिल्ली कांग्रेस प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल चूंकि बिहार के भी प्रभारी हैं, लिहाजा इन चुनावों में साख उनकी भी दांव पर लगी हुई है। महागठबंधन की जीत हुई तो उनका कद बढ़ेगा और वे दिल्ली में भी निश्चित तौर पर कुछ प्रयोग करना चाहेंगे। बहरहाल, सांसें सभी की थमी हुईं हैं और बेसब्री से इंतजार है बिहार चुनाव के परिणाम का। देखिए, कितने सपने पूरे होते हैं और कितने टूटकर बिखरते हैं।

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नेताजी को याद आई नैतिक जिम्मेदारी

सत्ता का नशा कहें या इसकी माया, एक बार इसका सुख ले लेने वाला फिर इसके बिना नहीं रह पाता। अब दिल्ली में कांग्रेस के पूर्वांचली नेताओं को ही ले लीजिए। बिहार चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए पहले पार्टी के बुलावे का इंतजार करते रहे, नहीं मिला तो अपनी नैतिक जिम्मेदारी बताते हुए खुद ही निकल लिए। जी हां, दिल्ली में कांग्रेस के एक पूर्वांचली नेता पूर्व सांसद कीर्ति आजाद को तो पार्टी ने स्टार प्रचारक बनाकर बिहार भेज दिया, लेकिन पूर्व सांसद महाबल मिश्र को यह सौभाग्य नहीं मिला। पार्टी ने मौका नहीं दिया तो नेताजी खुद से बिहार जा पहुंचे। पूछने पर बोले, बहुत लोग बुला रहे थे, इसलिए जाना पड़ा। अब पार्टी न कहे तब भी पार्टी के उम्मीदवारों का साथ देना जरूरी होता है। नेताजी भले जो तर्क दें, लेकिन सच्चाई तो यह भी है कि अपना वजूद बनाए रखना जरूरी है। सियासी भविष्य तो वजूद से ही जुड़ा है न! इसीलिए बिहार चुनाव संपन्न हो जाने के बाद छठ पूजा को लेकर भी नेताजी सक्रिय होने लगे हैं।

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