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Mother's Day: मां से जुड़े किस्से याद करके मदर्स डे मना रहे हैं लोग, आप भी पढिए

बच्चों से दूर कोरोना से जंग लड़ रही कुछ मां और करवटें लेकर चिंता में कट रहा बच्चों का समय। बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी होती है मां।

By Neel RajputEdited By: Published: Sun, 10 May 2020 01:19 PM (IST)Updated: Sun, 10 May 2020 01:19 PM (IST)
Mother's Day: मां से जुड़े किस्से याद करके मदर्स डे मना रहे हैं लोग, आप भी पढिए
Mother's Day: मां से जुड़े किस्से याद करके मदर्स डे मना रहे हैं लोग, आप भी पढिए

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। वक्त के नुमाइंदे भी एक ठौर खड़े होकर ना जाने आज इतना क्यों मुस्कुरा रहे हैं, मानों इस महामारी को फैलाने में जैसे इन्हीं की साजिश हो। बच्चों से दूर कोरोना से जंग लड़ रही कुछ मां और करवटें लेकर चिंता में कट रहा बच्चों का समय। बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी होती है मां। कुछ इसी तरह की कहानी लॉकडाउन के चलते यमुनापार के घरों में कैद बच्चों की जुबानी सुनने को मिल रही है। आइए सुनते है उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी।

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भगवान का दूसरा रूप होती है मां

रुपाली दुआ का कहना है कि भगवान सभी जगह नहीं हो सकते, इसलिए उन्होंने मां को बनाया है। एक मां ही है जो अपने बच्चों के चेहरे को देखकर उनकी परेशानियां परख लेती है। इतने अरसे बाद लॉकडाउन के चलते मां के साथ समय बिताने का अवसर प्राप्त हुआ। मां रेणु दुआ एक कुशल गृहणी के साथ एक अच्छी अधिवक्ता भी हैं। मेरे स्कूल से कॉलेज तक का सफर खत्म होते ही मां के यह वाक्य कानों में गूंजने लगे कि पढ़ाई के साथ घर का काम भी जरूरी है,रे राम पता नही ससुराल में जाकर कैसे घर संभालेगी ,और मैं मुस्कुरा देती। लेकिन आज लॉकडाउन ने तो जैसे मेरी मां की इच्छा पूरी कर दी। लॉकडाउन के शुरूआती दिनों से ही पकवान बनाने का सिलसिला शुरू हुआ, उस दिन मेरा बनाया सूजी का हलवा खाकर स्वाद और संतुष्टि भरी प्रसन्नता उनकी आंखों से झलक रही थी, मेरे लिए वह जिंदगी का सबसे सुखद अनुभव था। मां ने हमारे संयुक्त परिवार के प्रति अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाई और मुझे हमेशा ही सबके प्रति उनका अदभुत स्नेह दिखा। हम दोनों बहनों को जीवन में आने वाली हर मुश्किलों का सामना करने के लिए प्रेरित करती रहती हैं। आप सब भी मातृ दिवस की तरह ही प्रतिदिन अपनी मां को भरपूर आनंद, स्नेह व सम्मान दें ताकि एक पेड़ की तरह हमें हमेशा उनकी छांव मिलती रहे, क्योंकि मां वास्तव में भगवान का ही रूप है, जो सर्वथा पूजनीय हैं।

मां से सीख लिया सिलाई, बुनाई, कढ़ाई

करतार नगर की रहने वाली शानू कहती हैं कि परिवार में एक मां ही है जिसके साथ मैं हर बात साझा कर लेती हूं और वो पलक झपकते ही मेरी हर समस्या का निवारण कर देती है। वो मां नहीं दोस्त है मेरी, स्कूल व कॉलेज की पढ़ाई के दौरान मां बबीता के साथ घर पर कम समय ही मिल पाता है। वो एक गृहणी हैं और सुबह से लेकर शाम तक परिवार के सदस्यों की देख- रेख में ही अपना सारा समय देती हैं।

आज लॉकडाउन के चलते परिवार के साथ समय बिताने का समय मिल रहा है। अब घर में ही पढ़ाई के साथ मां के कामकाज में हाथ बंटा रही हूं। रोजाना मां से गृहस्थी चलाने के तौर तरीके भी सीख रही हूं। मां से सिलाई, बुनाई, कढ़ाई सीखने का अवसर मिला। अब खुद से ही अपने लिए सलवार-सूट सिल लेती हूं। मां का बेहतर स्वास्थ्य बना रहे इसके लिए उनके साथ सुबह में योग अभ्यास भी कर रही हूं।

घर का गूगल है मां

उत्कर्ष उपाध्याय का कहना है कि मां मात्र जीवन जीने की एक आशा और हर परिस्थितियों मे हौसले के साथ लड़ने का साहस होती है। मेरी माता मंजू योगेंद्र उपाध्याय एक कुशल गृहणी होने के साथ-साथ सामाजिक कार्यों में भी योगदान देती हैं, जोकि मेरे लिए प्रेरणादायी व गौरवपूर्ण है। घर के लिए मां एक दम गूगल है अगर उनसे घर में कुछ मांगा जाता है तो वह तुरंत निकाल कर दे देती हैं। इस कोरोना काल में अपने घर को तो वो पूर्व की भांति कुशलतापूर्वक चला ही रही हैं। इस बीच मुझे भी मां से घर में रहने का तरीका सीखने को मिला है कि घर में किस तरह रहा जाता है और कैसे काम किया जाता है। लॉकडाउन में नौकरीपेशा लोगों को भले ही राहत मिली हो परंतु एक मां पूरे वर्ष कार्य करती रहती है, चाहे कोई भी परिस्थिति क्यों न हो। लॉकडाउन के चलते मां से हर छोटा-बड़ा काम मुझे सीखने को मिला है।

मां के आशीर्वाद से ही मिली हैं उपलब्धियां

वेस्ट विनोद नगर के रहने वाले आशीष रावत कहते हैं कि मां का स्थान सर्वोपरि होता है। मां के आशीर्वाद से ही आज मैं बड़ी से बड़ी सफलता को आसानी से प्राप्त कर पा रहा हूं। बचपन से लेकर अब तक परिवार में सबसे अहम रोल मां यशोदा देवी का ही रहा है। मुझे याद है जब मैं बीमार पड़ा तो मां की देखभाल ने मुझे ठीक किया। मुझे कभी मां के साथ रहने का अवसर नहीं मिला, लेकिन इस लॉकडाउन के चलते मैं अपना पूरा समय मां के आंचल में रहकर बिता रहा हूं। मेरा मानना है कि मां के सम्मान का एक दिन नहीं होता। मां का सम्मान हम सबको साल के 365 दिन करना चाहिए। आज भी गणित के किसी सवाल में उलझ जाता हूं तो सिर्फ मां ही होती है जो उस सवाल को समझाकर मेरी समस्या दूर करती है। मां के कामकाज को देखते हुए आज उनके काम में हाथ बंटा पा रहा हूं, उनसे रोजाना नए-नए व्यंजन बनाना सीख रहा हूं। मां हमेशा से ही मेरे लिए रक्षक का काम कर रही हैं।

मां की डांट में बसता है प्यार

न्यू चौहानपुर की रहने वाली राधिका ने मदर्स डे पर बताया कि मां मेरे लिए बहुत जरूरी है इसलिए नहीं कि वो मेरे लिए खाना बनाती या फिर मेरे कपड़े धोती है, बल्कि इसलिए कि वो हमेशा मुझे बेहतर भविष्य बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है। उनकी डांट में भी प्यार बसता है। परिवार में अन्य सदस्यों के मुकाबले मुझे मां से ज्यादा प्यार मिलता है। मां मेरी खुशी के लिए बहुत कुछ करती है, लेकिन डांटती भी बहुत है जब मेरी गलती होती है। लेकिन कोई बात नहीं, मेरे भले के लिए डांटती है मां। लॉकडाउन के चलते आज उनके साथ समय बिता पा रहा हूं। उससे गृहस्थी सीखने को भी मिल रही है। मां को प्यार करने के लिए हम सबको मातृ दिवस या अन्य दिन का इंतजार नहीं करना चाहिए हर दिन अपनी मां को अपना स्नेह देना चाहिए।

धरती पर कोई रब है तो वो है मां

लक्ष्मी नगर के रहने वाले सचिन ने अपनी मां को एक गीत माध्यम से तोहफा दिया है। उन्होंने कहा कि मां के प्यार की ताकत ईश्वर से भी बढक़र मानी गई है। मां वो है जो हमें उंगली पकडक़र चलना सिखाती है, हर सही गलत को समझाती है, गलती होने पर डांटती और डराती है पर हमारा हाथ और साथ कभी नहीं छोड़ती। यूं तो हर दिन मां को सम्मान देने का दिन है पर मई के महीने में आने वाला यह मातृ दिवस हर मां को उसके खास होने का अहसास कराता है। अपनी मां दर्शना कुमारी को मैंने यूट्यूब चैनल पर अपने गीत के माध्यम से तोहफा दिया है। लॉकडाउन के चलते अपने घर पर ही इस गाने को रिकॉर्ड किया है। जब मेरी मां ने यह गीत सुना तो वह भावुक हो उठी। वैसे तो पहले मैं घर पर बहुत कम रहता था लेकिन इस लॉकडाउन ने मुझे फिर से मां के करीब ला दिया।

श्रीमदभागवत गीता की तरह है मां

भजनपुरा के रहने वाले भुवनेश सिंघल मां को श्रीमदभागवत गीता की तरह बताया है। उन्होंने कहा कि मां वो अनुभूति है जिसके प्रति भावों को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, शब्दों में नहीं उतारा जा सकता। मां श्रीमद्भागवत गीता की तरह वो पुस्तक है जिसे आप जितना भी पढऩे की कोशिश करेंगे, उतने ही नए अर्थ सामने प्रकट होते चले जाएंगे। मां के आंचल में परम सात्विक और सनातन आनंद का संचार सदा होता रहता है। बस आवश्यकता है तो उसे आत्मसात करने की। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में मौजूद जीवों में मां ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है। मां न केवल मनुष्यों के लिए बल्कि सम्पूर्ण जीव मात्र के लिए वंदनीय है। मां मात्र एक शब्द नहीं है वह पुत्र के लिए वो जागृत मंत्र है।

मां से ही है मेरा अस्तित्व

तनमय अग्रवाल का कहना है कि मां एक ऐसा शब्द है जो हमेशा ही याद किया जाता है। चाहे बच्चा हो, जवान हो या फिर कोई बुजुर्ग, जब कोई किसी तकलीफ में होता है तो उसे मां ही याद आती है। इसी कड़ी में एक मैं भी हूं मुझे जब दिक्कत होती है तो अपनी मां की याद आती है। मानों मां से ही मेरा अस्तित्व है, मां शब्द देखने में जितना छोटा सा है लेकिन इसका मेरी ङ्क्षजदगी में सबसे ज्यादा महत्व है। आज लॉकडाउन के चलते मां के साथ ज्यादा समय बिता रहा हूं, उनकी हर दुख व खुशी में शामिल हो रहा हूं। हमेशा ही अलग-अलग प्रकार के भोजन सीखने की ललक लगी रहती थी, लॉकडाउन के चलते आज वो भी पूरी हो गई। मां से रोजाना अगल-अलग व्यंजन सीख रहा हूं और बदले में उन्हें सुबह योग अभ्यास भी करवाता हूं। जितने दिन घर में उतने दिन उनकी सेवा करने का मन है इसलिए घर के कामकाज में उनका हाथ बंटा रहा हूं।

मां की आवाज हर चिंता से कर देती है मुक्त

मानल जेटली अपना एक किस्सा सुनाते हुए कहा कि रविवार का दिन था और मैं बस सो कर उठा ही था, बाहर आया तो पता चला की लॉकडाउन की अवधि बढ़ चुकी है। मैं बहुत परेशान था क्योंकि अब और समय घर में रहना होगा। निराश हुआ और मैं चाय की प्याली टेबल पर रखने के बाद जैसे ही अपने कमरे की तरफ जाने लगा तभी मां ने आवाज लगायी और मुझे बुलाया। मैं पहले से ही बहुत परेशान और हताश था। एक मन किया कि कह दूं कि बाद में आकर मिलता हूं फिर रुक गया सोचा मां ही तो है। मां की आवाज हर चिंता को दूर कर देती है। फिर मां के साथ कुछ समय बैठा और उनसे खूब बात की। उन्होंने अपने समय के किस्से सुनाएं। इसी बीच उनसे नए-नए प्रकार के भोजन बनाना सीखे।

जीवन में हर पहलू समझाने का काम करती है मां

सरिता भाटी ने अपनी मां को लेकर कुछ किस्से साझा करते हुए कहा कि मेरे हर काम में मां ढाल बनकर तैयार हो जाती है, बिगड़ते काम को एक पल में सुधार लेती है। आज भी बेहतर कल के लिए मां खुद सीढिय़ां तैयार कर रही हैं। जीवन के तौर तरीके सिखाने में खुद शिक्षक बन जाती है मां सुखवती देवी। आज जो भी हूं उन्हीं के आशीर्वाद से हूं। जीवन में हर पहलू को समझाने का मां काम करती है। बचपन से लेकर अब तक मां को परिवार में सबकी सेवा करते हुए देखा है। जब हम छोटे थे तो उनके सिर पर बहुत सी जिम्मेदारियां थीं और आज भी हैं। लॉकडाउन के चलते आज करीब 46 दिनों से मांं के साथ समय बिता रही हूं। उनकी परेशानियों को समझ घर के काम काज में उनका हाथ बंटा रही हूं। रोजाना उनसे कुछ न कुछ नया सीखने को मिल रहा है।


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