जटिल कूल्हा प्रत्यारोपण के छह माह बाद मरीज चलने में हुआ सक्षम
बीमारी के कारण मरीज की गर्दन रीढ़ और कूल्हे की हड्डियां जुड़ कर एक ठोस ब्लाक बन चुकी है। इसकी वजह से हड्डियों का लचीलापन ख़त्म हो गया है। मरीज की सर्जरी करने वाले डॉ अनंत कुमार तिवारी बताया कि एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस गठिया के जटिल रूपों में से एक है।
नई दिल्ली, राहुल चौहान। एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस बीमारी से पीड़ित होने के कारण दिल्ली में रहने वाले 34 साल के सुनील कुमार छह महीने से असहाय दर्द की वजह से बिस्तर पर थे। वह खड़े होने में भी सक्षम नहीं थे। साथ ही खाना-पीना, टायलेट भी बिस्तर पर ही लेटकर करने को मजबूर थे। जब दर्द असहनीय हो गया तो 23 जनवरी को स्वजन उनको सर गंगाराम अस्पताल के आपातकालीन विभाग में लेकर पहुंचे।
जांच में पता चला कि बीमारी के कारण मरीज की गर्दन, रीढ़ और कूल्हे की हड्डियां जुड़ कर एक ठोस ब्लाक बन चुकी है। इसकी वजह से हड्डियों का लचीलापन खत्म हो गया है। मरीज की सर्जरी करने वाले डॉ अनंत कुमार तिवारी बताया कि एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस गठिया के जटिल रूपों में से एक है। इलाज न होने पर शरीर के सभी जोड़ आपस में जुड़ने लग जाते हैं। इससे हर जोड़ का लचीलापन खत्म होने की वजह से असहाय दर्द होता है। ऐसा ही इस मरीज के साथ भी हुआ। इसलिए मरीज को चलने-फिरने की स्थिति में लाने के लिए लिए दोनों कूल्हों को प्रत्यारोपित करने की योजना बनाई गई।
डॉक्टर ने बताया कि इसमें सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि कूल्हे की हड्डी जांघ की हड्डी से जुडी हुई थी। सबसे पहले इसको काट कर अलग किया गया। ब्लाक बनने के कारण कूल्हे की स्थिति का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल था। इसलिए सी-आर्म एक्स-रे के द्वारा उस जगह पर एक पिन लगाया गया, जहां कूल्हा जुड़ सकता था। वहां पर साकेट की जगह बना कर नया कूल्हा डाला गया।
नए कूल्हे के आसपास की हड्डियों एवं मांसपेशियों को काटकर उसमें लचीलापन लाया गया। इस सारी प्रक्रिया में छह घंटे का समय लगा। पहले कूल्हे की सर्जरी 25 और दूसरे कूल्हे की सर्जरी 27 जनवरी को की गयी। अब धीरे-धीरे दर्द कम होने के साथ-साथ न सिर्फ मरीज बैठ कर खाना खा रहा है, बल्कि छह महीने में पहली बार कुछ कदम चल पा रहा है। डॉक्टर ने बताया कि अनुमान है कि भारत में लगभग 40 लाख लोग एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस से पीड़ित हैं।