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विरोधियों को हुई अजब बीमारी, अब तो सपने में भी डराते हैं मोदीजी

संसद में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान आंख तो मारी युवराज ने, लेकिन शामत बन आई है कार्यकर्ताओं की।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 23 Jul 2018 01:13 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jul 2018 01:13 PM (IST)
विरोधियों को हुई अजब बीमारी, अब तो सपने में भी डराते हैं मोदीजी
विरोधियों को हुई अजब बीमारी, अब तो सपने में भी डराते हैं मोदीजी

नई दिल्ली (जेएनएन)। संसद में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान आंख तो मारी युवराज ने, लेकिन शामत बन आई है कार्यकर्ताओं की। पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से भी युवराज की इस हरकत पर जवाब देते नहीं बन रहा। एक दिन पहले तक जहां पार्टी कार्यकर्ता फ्रांस के राष्ट्रपति के बयान को लेकर भी युवराज की पीठ थपथपा रहे थे अब इस मामले में उन्हें खासी किरकिरी ङोलनी पड़ रही है। फ्रांस के राष्ट्रपति ने युवराज के बयान से खुद को एकदम अलग कर लिया। आलम यह है कि कहीं भी संसद के इस घटनाक्रम की चर्चा चलती है तो पार्टी कार्यकर्ता वहां से नजर बचाकर निकलने में ही भलाई समझते हैं। अब तो कार्यकर्ता दबी जुबान में यहां तक कह जाते हैं कि युवराज का कुछ नहीं हो सकता।

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हर बात में मोदीजी को ले आते हैं नेताजी

एक नेताजी के यहां काम करने वाले चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी की मानें तो नेताजी को एक ऐसी बीमारी हो गई है कि वे जब तक चार बार मोदी जी को उल्टा सीधा न कह लें। सुबह की चाय नहीं पीते हैं। घर पर कोई मिलने आता है तो उससे भी बात-बात में मोदी जी को बीच में ले आते हैं। उसके अनुसार एक बार नेता जी को किसी से बात करते हुए सुना था कि रात में सपने में भी मोदी आ गए। सपने में जब नेताजी मोदी से मिलने गए कि हमें काम करने दो, जनता के काम रुके हुए हैं तो मोदी जी ने कहा कि तुम्हें काम नहीं करने दूंगा। 

आम हो गए खास

अब आम लोग खास हो गए हैं। अब उन्हें लग्जरी कार चाहिए, वीआइपी नंबर चाहिए, बंगला भी चाहिए और वे सभी सुख सुविधाएं भी चाहिए जिन्हें लेकर वे कभी सत्ता में बैठे नेताओं की मजाक बनाते थे। चाय की दुकान पर बैठा बुजुर्ग सुखिया टकटकी लगाए रविवार के अखबार में छपी एक खबर को पढ़ कुछ इस तरह बोले जा रहा था। उसे किसी मंत्री द्वारा सरकारी पैसे से 20 लाख की कार खरीदने को लेकर नाराजगी नहीं थी। न ही कार का वीआइपी नंबर मांगने को लेकर नाराजगी थी। उसे इस बात को लेकर नाराजगी थी कि लोग बदल कैसे जाते हैं? जो लोग सरकारी सुख सुविधाएं न लेने की बात कह कर जनता के लिए काम करने की बात करते थे। अब वे किस तरह सुख सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं। अब उनमें पुराने वाले नेता क्यों नहीं दिखते हैं? सुखिया बोल रहा था कि इतने में चाय वाला रामू भी बोल पड़ा कि चाचा क्यों चक्कर में पड़े हो, अब आम लोग खास हो गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ाया उत्साह तो चुनाव आयोग ने तेज की धड़कनें

सुप्रीम कोर्ट से उपराज्यपाल को लगे कई झटकों से आम आदमी पार्टी का उत्साह कई गुणा बढ़ गया। लगा कि अब तो गाड़ी चल पड़ी, लेकिन चुनाव आयोग की सख्ती ने मानो उबलते दूध के उफान पर पानी के छींटे मार दिए। लाभ का पद मामले में 20 विधायकों की सदस्यता पर अब भी तलवार लटकी हुई है। हालांकि इन विधायकों ने अपने बचाव में हाई कोर्ट जाने की तैयारी भी कर ली है, लेकिन चुनाव आयोग के फैसले को दरकिनार नहीं किया जा सकता। मामले की पेचीदगी से खुद पार्टी नेता भी अंजान नहीं हैं। इसीलिए उत्साह पर अब तनाव भारी पड़ रहा है।

सता रही कुर्सी जाने की चिंता

एक व्यक्ति एक पद के नियम को लागू करने की सुगबुगाहट से दिल्ली भाजपा में कई नेताओं के होश उड़े हुए हैं। उन्हें अपनी और अपने चहेतों की कुर्सी जाने की चिंता सता रही है। वह किसी भी सूरत में अपना पद नहीं गंवाना चाहते हैं। इसलिए इसे बचाने की कोशिश में जुट गए हैं। बड़े नेताओं के दरबार में परिक्रमा लगाने से लेकर अपने कामकाज व जनता में पकड़ की दुहाई देते नहीं थक रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि चुनावी साल में यदि पद हाथ से फिसल गया तो कार्यकर्ताओं के बीच उनकी पूछ भी कम होने लगेगी। यह स्थिति उनके सियासी भविष्य के लिए घातक साबित हो सकता है। इसलिए वह हरहाल में अपना पद बचाए रखना चाहते हैं। दरअसल पार्टी में संगठनात्मक फेरबदल की कवायद चल रही है। खाली पद भरे जा रहे हैं तो उन नेताओं पर गाज गिरने की चर्चा है जिनके पास एक से ज्यादा पद हैं। यदि किसी पदाधिकारी का कोई परिजन नगर निगम में भी कोई पद संभाल रहा है तो उसे भी संगठन का पद छोड़ना होगा। इस तरह की कवायद पहले भी हुई थी। कई नेताओं के पद भी चले गए थे, लेकिन कुछ लोग अपनी पहुंच व रसूख का फायदा उठाकर अबतक पद पर बने हुए हैं। अब देखना है कि इस बार वह अपना पद बचा पाते हैं या नहीं?

ऐसे कैसे कर पाएंगे न्याय

हाल ही में दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) की कमान संभालने वाले एक वरिष्ठ डॉक्टर दिल्ली के डॉक्टरों के संगठन में सक्रिय हो गए हैं और कार्यकारणी में जगह पक्की कर ली। अगले साल वह संगठन के मुखिया होंगे। तब वह डॉक्टरों के विपक्ष में उठने वाली हर आवाज के खिलाफ उनका बचाव करते नजर आएंगे। काउंसिल की जिम्मेदारी इलाज में लापरवाही की शिकायत करने वाले मरीजों की फरियाद सुनना और उन्हें न्याय दिलाना है। जबकि संगठन का काम ठीक इसके विपरीत डॉक्टरों की हित की रक्षा करना है। ऐसे में यह सवाल उठाए जा रहे हैं कि वह डॉक्टर साहब संगठन की कुर्सी पर बैठकर मरीजों की हित का ख्याल कैसे रख पाएंगे?


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