दिल्ली के इस दुकान में है एक से बढ़कर एक कैमरे
1950 के दशक की कैमरा दुकान दिल्ली के चांदनी चौक के कूचां चौधरी कैमरा मार्केट में है। यह बाजार आज कैमरे से जुड़ी चीजों के लिए एशिया का सबसे बड़ा बाजार माना जाता है।
नई दिल्ली, [हंसराज]। लम्हों को थाम लेने की ललक, प्रकृति के सौंदर्य को दिल के करीब सजा लेने की तलब, कुछ भी खास हो उसे संजोकर मन में कैद कर लेने की बेसब्री। तभी तो आप चाहें तो एक क्लिक में आसमां ठहर जाता है...आपके लिए। हम बात कर रहे हैं कैमरे की दुनिया की। यूं तो तकनीकी की सीढ़ियों पर दौड़ती जिंदगी में हर किसी के पास आसानी से कैमरा मिल जाएगा। आपको खरीदना भी हो तो आसानी से बढ़िया दुकान सर्च कर आप अपने मन माफिक खरीद लेंगे। लेकिन कैमरों की दुनिया का विंटेज देखना हो। जहां आज भी दुर्लभ कैमरे तो हैं ही बड़े पुराने उनके खरीदार भी हैं।
1950 के दशक की कैमरा दुकान दिल्ली के चांदनी चौक के कूचां चौधरी कैमरा मार्केट में है। चंद दुकानों के साथ शुरू हुआ यह बाजार आज कैमरे से जुड़ी चीजों के लिए एशिया का सबसे बड़ा बाजार माना जाता है। यहां कैमरा और कैमरे से जुड़े सभी सामान की तकरीबन 250 से ज्यादा दुकानें हैं। कुछ दुकानें ऐसी भी हैं जो मार्केट के निर्माण काल से ही हैं, उन्हीं में से एक है वर्ष 1950 में स्थापित ‘सेठी स्टूडियो’।
तीसरी पीढ़ी संभाल रही है दुकान
सात दशक पुराने सेठी स्टूडियो को जिम्मेदारी अब स्व. रामचंद्र सेठी के पुत्र और पोत्र ने बखूबी संभाल ली है। कभी एक साधारण सा दिखने- लगने वाला ‘सेठी स्टूडियो’ आज ‘ए सेठी संस’ बन गया है और इस कैमरा मार्केट की धमक भारत की दहलीज तक ही सीमित नहीं है बल्कि एशिया की सबसे बड़ी मार्केट होने का तमगा भी इसे हासिल है।
यह सब यूं ही चंद दिन या पुरानी दुकान हो जाने भर से हासिल नहीं हो गया। इसके पीछे तीन पीढ़ियों की लगन-कड़ी मेहनत और समर्पण है। फिलहाल ए सेठी संस को पुत्र विनय कुमार और पौत्र मोहित और मनहर सेठी संभाल रहे हैं। दुकान संचालकों के मुताबिक कैमरा बनाने वाली सभी कंपनियों की फ्लैश लाइट, लेंस, गोडॉक्स, रॉड, डिजी फोट, क्वाला फोटो, डिजी टेक, ट्राइपॉड और लेटेस्ट सेल्फी स्टिक सरीखे सामान यहां मिलते हैं।
कई यादगार स्मृतियों की गवाह
जेहन में जुड़ी दुकान की ढेरों यादों की झोली से कुछेक संस्मरणों को पलटते हए विनय कुमार सेठी बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के फोटोग्राफी के बेहद शौकीन थे। जब वे प्रधानमंत्री बने भी नहीं थे, उससे पहले ही हमारी दुकान पर अक्सर आया करते थे। आपको भी याद होगा कि पहले किस तरह तस्वीरों को रील से निकलवाने यानी धुलवाया जाता था। अब तो यह सब चलन में नहीं रहा, चूंकि उस वक्त चुनिंदा ही फाटोग्राफी
की दुकानें हुआ करती थीं तो दुकान पर बहुत सारी प्रभुत्व हस्तियों से लेकर सामान्य लोग भी अपनी यादों की रील धुलवाने आते थे।
दिल्ली के पर्यटन स्थलों पर विदेशी पर्यटकों के आने का सिलसिला हमेशा ही लगा रहा तो वे भी खूब आया करते थे। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किला की ऐतिहासिक झांकियां और झलकियां भी खूब कवर की हैं।
कैमरों की धरोहर
वक्त और तकनीक की दुनिया से नजर मिलाते हुए भले दुकान ने सभी तरह के कैमरों को अपने यहां रखा है लेकिन डिजीटल की इस दौड़ में विंटेज कैमरों को बखूबी सहेज कर रखा गया है। 1950-70 के दशक में इस्तेमाल हुए हस्तनिर्मित लकड़ी फ्रेम कैमरा, प्लेट कैमरा, रोली कोड कैमरा, रोली फ्लैक्स कैमरा और ट्वीन लैंस कैमरा सरीखे विंटेज कैमरे यहां आने वाले ग्राहकों के लिए अद्भुत और अतुलनीय तो हैं ही। वे इस सेठी
संस को कैमरों की धरोहर के सरीखे ही मानते हैं।
मोहित सेठी बताते हैं कि वो दौर था जब सीमित साधनों में फोटोग्राफी करनी पड़ती थी। तब फोटोग्राफी एक कला होती थी और फोटोग्राफर के लिए आनंद के पल। अब यह महज तकनीक रह गई है। डिजीटल मोबाइल कैमरे के बाद तो हर व्यक्ति फोटोग्राफर बन गया है। बता दें कि सेठी स्टूडियों में डिजिटल और हाइटेक कमैरों के दौर में भी विंटेज कैमरे मौजूद हैं।