अब दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार व छात्रों की याचिका पर निजी स्कूलों की एक्शन कमेटी को नोटिस जारी कर मांगा जवाब
निजी स्कूलों को छात्रों से वार्षिक और विकास शुल्क वसूलने का आदेश देने वाली एकल पीठ के फैसले पर रोक लगाने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इन्कार कर दिया है। एकल पीठ ने दिल्ली सरकार के आदेश को निरस्त करते हुए स्कूलों को शुल्क वसूलने की अनुमति दी थी।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। निजी स्कूलों को छात्रों से वार्षिक और विकास शुल्क वसूलने का आदेश देने वाली एकल पीठ के फैसले पर रोक लगाने से दिल्ली हाई कोर्ट ने इन्कार कर दिया है। एकल पीठ ने बीते दिनों वार्षिक व विकास शुल्क वसूलने पर रोक लगाने के दिल्ली सरकार के आदेश को निरस्त करते हुए स्कूलों को शुल्क वसूलने की अनुमति दी थी। 31 मई के एकल पीठ के इस फैसले को दिल्ली सरकार, एक गैरसरकारी संगठन व कुछ छात्रों ने चुनौती दी थी। सोमवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति रेखा पल्ली व न्यायमूर्ति अमित बसंल की अवकाशकालीन पीठ ने 450 निजी स्कूलों का प्रतिनिधित्व करने वाली संघ एक्शन कमेटी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
मामले में अगली सुनवाई 10 जुलाई को होगी। दिल्ली सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने दलील दी कि एकल पीठ के फैसले से अभिभावकों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि आकलन के अनुसार स्कूलों द्वारा लिया जा रहा 60 फीसद ट्यूशन फीस शिक्षकों के वेतन और खर्च के लिए पर्याप्त है। हालांकि, स्कूलों की कमेटी की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने इन दलीलों को खारिज किया और कहा कि एकल पीठ का फैसला ठीक है और इसमें बदलाव नहीं किया जाना चाहिए।
दिल्ली सरकार ने दलील दी कि पिछले वर्ष अप्रैल व अगस्त माह में महामारी के दौरान आर्थिक समस्या को देखते हुए यह आदेश व्यापक जनहित में लिया गया था। शिक्षा निदेशालय ने कहा है कि शुल्क वसूल करना ही आय बढ़ाने का एकमात्र स्त्रोत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारतीय स्कूलों को लेकर दिया गया फैसला दिल्ली पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि दोनों राज्यों की कानूनी स्थिति अलग है। 31 मई को न्यायमूर्ति जयंत नाथ की पीठ ने दिल्ली सरकार के आदेश को निरस्त करते हुए कहा था कि सरकार के इस आदेश से स्कूलों का कामकाज प्रभावित होगा। पीठ ने अनुमति दी थी कि निजी स्कूल छात्रों से शैक्षणिक सत्र 2020-21 का वार्षिक व विकास शुल्क वसूल सकते हैं।
हालांकि, पीठ ने कहा था कि स्कूल शुल्क में छात्रों को 15 फीसद तक छूट दें। पीठ ने कहा था कि सरकार के शिक्षा निदेशालय को स्कूलों के फीस तय करने व वसूलने में दखल देने का अधिकार नहीं है। अदालत ने शिक्षा निदेशालय के 18 अप्रैल 2020 और 28 अगस्त 2020 को जारी दोनों आदेशों को निरस्त कर दिया।