दिल्ली में हर गर्भवती महिला को कोरोना जांच कराना अनिवार्य नहीं, सरकार ने HC में दिया जवाब
पीठ ने दिल्ली सरकार द्वारा दाखिल जवाब को रिकॉर्ड पर लेते हुए कहा कि सरकार द्वारा पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं ऐसे में इस मामले में आगे कोई निर्देश देने की आवश्यकता है।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। प्रसव या फिर तत्काल इलाज के लिए अस्पताल जाने वाली गर्भवती महिलाओं की कोरोना जांच के संबंध में दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट को बताया कि प्रत्येक गर्भवती महिला को कोरोना जांच कराना अनिवार्य नहीं है। दिल्ली सरकार ने कहा कि उन गर्भवती महिलाओं को कोरोना जांच करानी होगी, जो या तो कोरोना संक्रमित या संदिग्ध के संपर्क में आई हो।
मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ के समक्ष दाखिल ताजा शपथ पत्र में दिल्ली सरकार ने कहा कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के दिशानिर्देश के तहत अगर कोई गर्भवती महिला कोरोरा जांच के मानदंड के आसपास आता है तो उसे जांच कराना अनिवार्य है। हालांकि, आइसीएमआर ने कहा है कि उसकी जांच में कोई देरी नहीं होनी चाहिए।
पीठ ने दिल्ली सरकार द्वारा दाखिल जवाब को रिकॉर्ड पर लेते हुए कहा कि सरकार द्वारा पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं ऐसे में इस मामले में आगे कोई निर्देश देने की आवश्यकता है। उक्त टिप्पणियों के साथ मुख्य पीठ ने जनहित याचिका का निपटारा कर दिया।
हाई कोर्ट ने की थी सरकार की खिंचाई
इससे पहले पीठ ने गर्भवती महिलाओं की कोरोना जांच की अनिवार्यता स्पष्ट नहीं करने पर दिल्ली सरकार की खिंचाई की थी। एक अधिवक्ता द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही थी। याचिकाकर्ता गर्भवती महिलाओं की कोरोना जांच की रिपोर्ट को प्राथमिकता पर देने के संबंध में निर्देश देने की मांग की थी। पिछली तारीख पर पीठ ने कहा था कि डिलेवरी के लिए जाने वाले गर्भवती महिला कोरोना जांच और इसकी रिपोर्ट के लिए पांच से छह दिन का इंतजार नहीं कर सकती।
मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने कहा कि वास्तविक समस्या नौकरीशाही दु:स्वप्न में तब्दील हो गई है। पीठ ने कहा कि अगर कोराना जांच अनिवार्य है तो नमूना एकत्र करना व रिपोर्ट जारी करने का काम कम से कम समय होना चाहिए। मुख्य पीठ ने कहा कि गर्भवती महिलाओं की कोरोना जांच और जल्द परिणाम घोषित करने की मांग को लेकर जनहित याचिका दायर होने के बाद से चार से पांच बार सरकार को मौका दिया गया, लेकिन उसने स्थिति स्पष्ट नहीं की।
पीठ ने पूछा कि स्थिति स्पष्ट करने के लिए कितने दिन इंतजार करना पड़ेगा। पीठ ने यहां तक कहा कि मामले में पेश होने वाला संबंधित अधिकारी या तो भ्रमित है या फिर वह यह समझने में अक्षम है कि गर्भवती महिला डिलेवरी से 48 घंटे पहले अस्पताल नहीं जाती है। पीठ ने कहा कि जब एक गर्भवती महिला डिलेवरी के लिए अस्पताल जाती है तो वह रिपोर्ट के लिए 48 घंटे तक का इंतजार नहीं कर सकती।
कोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी
पीठ ने कहा कि आपके सचिवों को समझना होगा कि गर्भवती महिलाएं डिलेवरी से 48 घंटे पहले अस्पताल नहीं जाती हैं। पीठ ने कहा कि आपकी स्थिति रिपोर्ट के हिसाब से गर्भवती महिला को परिवार के सदस्यों के बिना कोरोना जांच की रिपोर्ट आने तक आइसोलेशन में रखा जाएगा। पीठ ने कहा आखिर हम किस समाज में रह रहे हैं। पीठ ने कहा कि यह भी स्पष्ट नहीं है कि बिना लक्षण वाली गर्भवती महिला की जांच की जरूरत है या नहीं। पीठ ने रिकॉर्ड पर लिया कि पूर्व में दिल्ली सरकार ने कहा था कि सभी गर्भवती महिलाओं को कोरोना जांच करानी होगी, लेकिन सुनवाई के दौरान कहा कि बिना लक्षण वाली महिलाओं को जांच की जरूरत नहीं है। पीठ ने इस पर दिल्ली सरकार को इस पर स्थिति स्पष्ट करने को कहा। याचिका पर अगली सुनवाई 15 जुलाई को होगी।