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इलेक्ट्रिक गाड़ी की कठिन डगर: बाजार तैयार लेकिन ग्राउंड तैयारी जीरो, अधर में लटकी योजना

दिल्ली में इलेक्ट्रिक बसें चलाने का लक्ष्य भी अधर में ही नजर आ रहा है। ई-वाहनों की चार्जिंग को लेकर अभी तक कोई नीतिगत व्यवस्था नहीं की जा सकी है।

By Amit MishraEdited By: Published: Sat, 21 Apr 2018 01:37 PM (IST)Updated: Sun, 22 Apr 2018 10:03 AM (IST)
इलेक्ट्रिक गाड़ी की कठिन डगर: बाजार तैयार लेकिन ग्राउंड तैयारी जीरो, अधर में लटकी योजना
इलेक्ट्रिक गाड़ी की कठिन डगर: बाजार तैयार लेकिन ग्राउंड तैयारी जीरो, अधर में लटकी योजना

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली में ई-वाहनों को बढ़ावा देने की चर्चा तो खूब हो रही है, लेकिन इसे लेकर न तो कोई स्पष्ट नीति बनी है और न ही कार्यप्रणाली। आलम यह है कि साल दर साल दिल्ली में ई-वाहनों की खरीद बढ़ रही है। लेकिन इनके परिचालन और रखरखाव संबंधी पहलुओं पर बहुत हद तक उलझन वाली स्थिति बनी हुई है।

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दिल्ली में इलेक्ट्रिक बसें चलाने का लक्ष्य भी अधर में ही नजर आ रहा है। ई-वाहनों की चार्जिंग को लेकर अभी तक कोई नीतिगत व्यवस्था नहीं की जा सकी है। सभी ई-वाहनों को घरेलू बिजली कनेक्शन से ही चार्ज किया जा रहा है। यहां तक कि कमर्शियल रूप से चल रहे ई-रिक्शा को भी घरों में चार्ज किया जा रहा है। इन वाहनों की पार्किंग को लेकर भी कुछ स्पष्ट नहीं है। ई-रिक्शा जगह-जगह जाम का पर्याय भी बन रहे हैं।

बसों के परिचालन पर रिपोर्ट नहीं

दिल्ली में ई-बसें खरीदने की बात तो हो रही है, मगर इन बसों के परिचालन को लेकर कोई ग्राउंड रिपोर्ट तैयार नहीं की गई है। यह बसें किन रूटों पर चलेंगी, इनकी चार्जिंग और पार्किंग कहां होगी, क्या इनके लिए अलग से कोई कॉरिडोर होगा या मौजूदा सड़कों पर ही जाम में फंसेंगी, इन ई-वाहनों से बढ़ने वाली बिजली की अतिरिक्त मांग कैसे पूरी होगी तथा इनमें किराए की दर क्या होगी इत्यादि सभी प्रश्न अभी अनुत्तरित हैं।

सब्सिडी केवल ई-रिक्शा के लिए

कहने को दिल्ली सरकार ने ई-वाहनों को बढ़ावा देने के लिए एक कोष भी बना रखा है, लेकिन इससे केवल ई-रिक्शा की खरीद पर ही 30 हजार रुपये की सब्सिडी दी जाती है। अन्य ई-वाहनों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

सीएसई ने भी जताया संदेह

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने भी 'डाउन टू अर्थ' के ताजा अंक में ई-वाहनों की स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट दी है। इस रिपोर्ट में 2030 तक देश भर में 60 फीसद तक ई-वाहनों को सड़क पर ले आने के सरकारी लक्ष्य की प्राप्ति में संदेह जताया गया है। रिपोर्ट में स्पष्ट नीति और कार्यप्रणाली को समय की मांग बताया गया है।

ई-वाहनों से नहीं होता कार्बन उत्सर्जन

ई-वाहनों (बैट्री रिक्शा, बसें, कारें, स्कूटर) से अभिप्राय उन वाहनों से है, जिन्हें चलाने के लिए ईंधन की नहीं, बिजली की जरूरत होती है। ऐसे हर वाहन में निर्धारित क्षमता वाली बैट्री होती है, जिसे बिजली से चार्ज करके तय किलोमीटर तक चला सकते हैं। यह कोई धुआं नहीं छोड़ते। ई-वाहनों से कार्बन का उत्सर्जन भी नहीं होता।

फिलहाल दिल्ली की स्थिति

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार 2015 में दिल्ली में 6,756 ई-वाहन बिके। 2016 में यह संख्या बढ़कर 39,651 पहुंच गई। 2017 में यह आंकड़ा और बढ़कर 55,467 पर जा पहुंचा। 2018 में 16 जनवरी तक ही 3,159 वाहन बिक गए। देश भर में बिक रहे ई-वाहनों का एक तिहाई हिस्सा दिल्ली का है।

पुख्ता नीति व व्यवस्था आवश्यक 

पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण-संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष भूरेलाल का कहना है कि इलेक्ट्रिक बसें पर्यावरण के अनुकूल तो होती हैं, मगर इनके सफलतापूर्वक परिचालन के लिए एक पुख्ता नीति व व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है, जबकि दिल्ली सरकार की ई-बसें खरीदने व ई-वाहनों को बढ़ावा देने की घोषणा हवा-हवाई ज्यादा नजर आ रही है।

जवाब और निदान खोजना होगा

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव ए.सुधाकर ने कहा कि ई-बसें दिल्ली का प्रदूषण घटाने में मददगार होंगे, इसमें संदेह नहीं पर इनकी कीमत ही नहीं, इनका रखरखाव भी खासा महंगा है। इन्हें बेहतर रखरखाव के साथ ही चलाया जा सकता है। दो पहिया और चार पहिया ई-वाहनों को भी बढ़ावा देना होगा। इनसे जुड़े हर पहलू का पहले जवाब और निदान खोजना होगा।  

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