Ground Water Pollution: देश में 98 प्रतिशत जगहों पर भूजल में नाइट्रेट प्रदूषण, दिल्ली के नजफगढ़ में हालात खराब
Nitrate pollution in groundwater सीपीसीबी के जरिए हासिल आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि 2020 -21 में निगरानी वाले स्टेशनों की कुल संख्या को काफी कम कर दिया गया। पहले कुल 1241 निगरानी स्टेशन थे। इनमें 196 स्टेशनों की कमी करके 2020-21 में कुल 1045 स्टेशन हो गए।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। खेतों में रासायनिक खाद के बढ़ते इस्तेमाल और सीवेज व ठोस कचरे के कुप्रबंधन से स्वच्छ भूजल पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। नेशनल वाटर क्वालिटी मानिटरिंग प्रोग्राम के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के ताजा आंकड़े चौंकाने वाले हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक 98 प्रतिशत निगरानी स्टेशनों पर भूजल में नाइट्रेट प्रदूषण पाया गया है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के मुताबिक पानी में 45 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक की मात्रा जहरीली मानी जाती है। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) काे यह जानकारी सीपीसीबी से सूचना के अधिकार के तहत मिली है।
पहले के मुकाबले कम हुए निगरानी स्टेशन
सीपीसीबी के जरिए हासिल आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि 2020 -21 में निगरानी वाले स्टेशनों की कुल संख्या को काफी कम कर दिया गया। पहले कुल 1241 निगरानी स्टेशन थे। इनमें 196 स्टेशनों की कमी करके 2020-21 में कुल 1045 स्टेशन हो गए। इनमें से भी सिर्फ 883 लोकेशन को मानिटर किया गया। नाइट्रेट प्रदूषण से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में राजस्थान, गुजरात, पंजाब, पश्चिमबंगाल, उड़ीसा, बिहार, असम, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना जैसे प्रधान कृषि राज्य शामिल हैं।
दो दशक में 52 प्रतिशत बढ़ा नाइट्रेट प्रदूषण
दो दशकों यानी 2000-01 से 2020-21 के दौरान नाइट्रेट प्रदूषण में 52 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। सर्वाधिक प्रभावित जिलों में केरल का मलप्पम, आंध्र प्रदेश का गुंतूर, गुजरात का बनासकांठा, जामनगर, जयपुर और भरतनगर व गोवा में उत्तरी गोवा, हरियाणा में हिसार, कर्नाटक में मैसूर, मध्य प्रदेश में बैतूल, महाराष्ट्र में धुले और नागपुर, पंजाब में मुक्तसर, उत्तर प्रदेश में हमीरपुर, बांदा, झांसी व पश्चिम बंगाल में पुरुलिया और अन्य शामिल हैं।
पहले यह था प्रदूषण का आंकड़ा
केंद्रीय जल बोर्ड के आंकड़ों के विश्लेषण में यह भी पाया गया कि वर्ष 2000 में देश में 36 जगहों पर नाइट्रेट प्रदूषण 500 एमजी प्रति लीटर से लेकर 2500 एमजी प्रति लीटर अधिक था, जबकि 2020-21 में 500 एमजी प्रति लीटर से लेकर 3348 एमजी प्रति लीटर तक वाले स्थान 67 हो गए।
कुछ तथ्य
- केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा के चरखी दादरी में दादरी तहसील, झज्जर में बहादुरगढ़ हिसार का अग्रोहा, आदमपुर, हिसार सर्वाधिक प्रभावित। इनमें 500 एमजी प्रति लीटर से 1314 एमजी प्रति लीटर तक नाइट्रेट की मौजूदगी।
- राजस्थान के चुरू में रतनगढ़ और सुजानगढ़, जयपुर में दुदू, जोधपुर में लूनी और मंदौर, सीकर में फतेहपुर, भरतपुर में नागर, उदयपुर में गिरवा, नागपुर जिले में डिडवाना प्रभावित।
- दिल्ली में नजफगढ़ और पंजाब में सतलज वाला इलाका उच्च नाइट्रेट प्रदूषण से प्रभावित।
38 करोड़ हैं जद में, हालिया शोध में पुष्टि
मार्च, 2022 में भारत के भू-जल में नाइट्रेट प्रदूषण की स्थिति को अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के जर्नल एसीएस पब्लिकेशंस में प्रकाशित शोधपत्र प्रिडिक्टिंग रीजनल स्केल एलिवेटेड ग्राउंड वाटर नाइट्रेट कंटेमिनेशन रिस्क यूजिंग मशीन लर्निंग आन नैचुरल एंड ह्यमून इंडयूस्ड फैक्टर्स में भी प्रमाणित किया गया है। इसमें बताया गया है कि भू-जल में नाइट्रेट कई स्रोतों से पहुंच सकता है। इसमें वातावरणीय, शहरी सीवेज का कुप्रबंधन, गंदे पानी के उपचार को लेकर लगाया गया प्लांट की खराब देखरेख और सेप्टिक सिस्टम हो सकते हैं। हालांकि, प्रमुखता से पर्यावरण में नाइट्रेट की उपलब्धता कृषि में इस्तेमाल किए जा रहे रासायनिक खाद, जानवरों के खाद और फसलों को लगाने के दौरान होती है। शोध पत्र के मशीन लर्निंग डाटा सेट का अनुमान बताता है कि भारत के 37 प्रतिशत एरिएल एक्सटेंट और 38 करोड़ लोग नाइट्रेट प्रदूषण के जद में हैं।
इसे साफ करना नामुमकिन
सीएसई के पर्यावरण विशेषज्ञ डा बसु बताते हैं कि यह प्रदूषण मानव जनित है। वह इस बारे में आगाह भी करते हैं कि भू-जल में एक बार नाइट्रेट प्रदूषण हुआ तो उसका साफ होना लगभग नामुमिकन है।
नाइट्रेट प्रदूषण से क्या हो सकती है समस्या
आल इंडिया इंडियन मेडिसिन ग्रेजुएट एसोसिएशन के सदस्य डा. आजाद कुमार बताते हैं कि नाइट्रेट जल या भोजन के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। यह मुंह और आंतों में स्थित जीवाणुओं द्वारा नाइट्राइट में बदल जाता है जो पूरी तरह से आक्सीकारक होता है। यह खून में मौजूद हीमोग्लोबिन में लौह के फैरस को फैरिक में बदल देता है, जिस कारण हीमोग्लोबिन मैथमोग्लोबिन में बदल जाता है।
ऐसी स्थिति में हीमोग्लोबिन अपनी आक्सीजन परिवहन की शक्ति खो देता है जिससे सांस की समस्या हो सकती है। शरीर भी नीला पड़ सकता है, जो कि बच्चों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस अवस्था को ब्लू बेबी सिंड्रोम भी कहा जाता है। नाइट्रेट की अधिकता कई समस्याएं खड़ी कर सकती है। मसलन पाचन-तंत्र, लिंफोमा, मूत्राशय और डिंबग्रंथि के कैंसर जैसे मामले आ सकते हैं।