आर्ट आफ लिविंग का तर्क, एनजीटी को संवैधानिक मामले में सुनवाई का अधिकार नहीं
एओएल का कहना था कि 2000-2015 के दौरान की गूगल की अनेक सेटेलाइट तस्वीरें उपलब्ध हैं, लेकिन समिति ने केवल उस तस्वीर को आधार बनाया जो मानसून के चरम दिनों में ली गई थी।
नई दिल्ली [जेएनएन]। आध्यात्मिकगुरु श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट आफ लिविंग ने एनजीटी के समक्ष कहा है कि धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों पर रोक नहीं लगाई जा सकती। यह आयोजन 'गरिमा के साथ रहने' के संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का हिस्सा हैं।
यह तर्क पिछले साल यमुना तट पर आयोजित सांस्कृतिक समारोह में एनजीटी द्वारा जुर्माना लगाए जाने के मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया। एओएल की ओर से पेश याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस तरह के आयोजनों को संविधान के अनुच्छेद 21 में दर्ज जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण के तहत गारंटी प्रदान की गई है। ट्रिब्यूनल ने इस अधिकार को बाधित किया है।
याचिकाकर्ताओं ने संविधान के अन्य कई अनुच्छेदों का भी उल्लेख करते हुए कहा कि कुंभ, छठ अथवा एओएल के विश्र्व सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन करना उनका अधिकार है। पर्यावरण के नाम पर इन आयोजनों पर औचित्यपूर्ण अंकुश ही लगाए जा सकते हैं। संवैधानिक अधिकारों से जुड़े मामलों में केवल सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्टो में ही विचार हो सकता है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक्ट 2010 एनजीटी को इस तरह का अधिकार नहीं देता। एनजीटी के आदेश के खिलाफ आर्ट आफ लिविंग की ओर से याचिकाएं प्राजन्य चौधरी, अनिल कपूर व आनंद माथुर की ओर से दाखिल की गई थीं। एओएल के वकील अनिरुद्ध शर्मा ने कहा कि संविधान व्यक्तियों को विश्व सांस्कृतिक उत्सव जैसे आयोजन करने का अधिकार प्रदान करता है। हालांकि एओएल की ओर से याचिका वकील पीयूष सिंह तथा नितेश रंजन की ओर से दाखिल की गई थी।
दो नवंबर को होगी सुनवाई
मामले की अगली सुनवाई दो नवंबर को होगी। पिछली सुनवाई में एओएल ने जल संसाधन मंत्रालय के सचिव शशि शेखर की अध्यक्षता वाली समिति की ओर से पेश सेटेलाइट इमेज पर यह कहते हुए संदेह जताया था कि उपग्रह से ली गई तस्वीरों से यमुना के किनारे पर्यावरण को हुई क्षति का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता। समिति ने 28 जुलाई को दी रिपोर्ट में गूगल की 15 सितंबर, 2015 की सेटेलाइट तस्वीर के आधार पर आयोजन के बाद यमुना तट की स्थिति की तुलना की थी।
एओएल का कहना था कि 2000-2015 के दौरान की गूगल की अनेक सेटेलाइट तस्वीरें उपलब्ध हैं, लेकिन समिति ने केवल उस तस्वीर को आधार बनाया जो मानसून के चरम दिनों में ली गई थी। ऐसे में उस तस्वीर को आधार बनाना कई सवाल खड़े करता है। विशेषज्ञ समिति ने स्वयं 28 नवंबर 2016 की रिपोर्ट में स्वीकार किया था कि आयोजन से पहले उसे आयोजन स्थल की स्थिति के बारे में कुछ पता नहीं था।
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