आंखों के इलाज के लिए कारगर है यह 500 साल पुरानी नेत्रप्रकाशिका, 100 से अधिक बीमारियों का इलाज
एक ग्रंथ नेत्रप्रकाशिका सामने आया है, जिसमें आंखों की 100 से ज्यादा बीमारियों एवं उसके इलाज की जानकारी बताई गई है।
नई दिल्ली, [संजीव कुमार मिश्र]। ज्यादातर बीमारियों के इलाज के लिए वर्तमान में हम विदेशी शोधों एवं तकनीकों पर निर्भर हैं। पर, देश में ही सदियों पुराने ऐसे कई ग्रंथ, पांडुलिपियां हैं, जिनमें जटिल बीमारियों के इलाज की जानकारी है। ऐसी ही एक पांडुलिपि नेत्रप्रकाशिका है, जिसमें आंखों की 100 से ज्यादा बीमारियों एवं उसके इलाज की जानकारी बताई गई है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में है जानकारी
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आइजीएनसीए) अब इस अनमोल पांडुलिपि का न केवल डिजिटलीकरण करेगी बल्कि हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद भी कराएगी। इससे नेत्रप्रकाशिका डॉक्टरों को आंखों की बीमारियों के इलाज की नई राह दिखाएगा।
मरीजों और डॉक्टरों को होगा फायदा
इसके डिजिटल होने से शोधार्थी व डॉक्टर आने वाले दिनों में इसकी मदद से शोध भी कर सकेंगे। नेत्रप्रकाशिका को नन्दिकेश्वर ने लिखा है। इसे 1440 में लिखा गया था। संस्कृत भाषा में लिखे इस ग्रंथ के कुल 14 अध्याय हैं, जिसमें से एक अध्याय त्रिवेन्द्रम और दूसरा तैंजोर स्थित लाइब्रेरी में है। यह ताम्र पत्र, पेपर पर लिखा गया है।डिजिटलीकरण होने के बाद हिंदी एवं अंग्रेजी में इसका अनुवाद भी होगा। इसमें दिल्ली स्थित चौधरी ब्रम्हप्रकाश चरक आयुर्वेद संस्थान की भी मदद ली जा रही है।
50 लाख से ज्यादा
आइजीएनसीए अधिकारी कहते हैं कि भारत की प्राचीन संस्कृति इन हस्तलिखित ग्रंथों, पाण्डुलिपियों में आज भी जीवित है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में इनकी संख्या 50 लाख से ज्यादा है। इन्हें ताम्रपत्र, भोजपत्र, सांची पत्र, वस्त्र, काष्ठ, हस्त व यंत्र विनिर्मित कागज समेत मिट्टी पर लिखा गया है।
इन बीमारियों की जानकारी
ग्रंथ में अश्रु श्रवण, विसर्पक, पाण्डू (सूखना) दाह(जलना), पूय (पीप मवाद) वमन, श्वेतनेत्र वातमय, कृष्णनेत्र, ह़स्वपुष्पं, रक्तस्त्राव,महास्त्राव, जलस्त्राव, कफस्त्राव, दिवांध, निशान्ध, ग्रीष्मकोप, खुजली, जलन इत्यादि की जानकारी है।
अधिकारी का पक्ष
जिनके पास पांडुलिपि है, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ऐसे व्यक्तियों, संस्थाओं से मिल रहा है। हम इनका डिजिटलीकरण कर रहे हैं। इनकी मूल प्रति भी संरक्षित की जा रही है। इनसे शोधार्थियों को बहुत फायदा होगा।
डॉ. रमेश सी गौड़, कलानिधि हेड, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र