बाल मुंडवा, सिर पर राम लिख अयोध्या पहुंचे थे जय प्रकाश, राम मंदिर निर्माण शुरू होने पर जताई खुशी
युवा अवस्था में श्रीराम जन्मभूमि पर खड़े विवादित ढांचे के पास दिसंबर 1992 में उत्तरी दिल्ली के महापौर जय प्रकाश बाल मुंडवा और सिर पर रोली से राम लिख अयोध्या पहुंचे थे।
नई दिल्ली, निहाल सिंह। युवा अवस्था में श्रीराम जन्मभूमि पर खड़े विवादित ढांचे के पास दिसंबर 1992 में उत्तरी दिल्ली के महापौर जय प्रकाश बाल मुंडवा और सिर पर रोली से राम लिख अयोध्या पहुंचे थे। उनका सपना उस भूमि पर राम मंदिर बनने का था, जो जल्द पूरा होने जा रहा है। युवा अवस्था में देखा गया सपना पूरा हो जाए तो इससे बड़ी बात क्या होगी। जय प्रकाश का कहना है कि प्रभु श्रीराम की कृपा से अब उनका सपना पूरा हो रहा है। श्रीराम मंदिर के लिए कांग्रेस और दूसरे दल जिस प्रकार से राजनीति कर रहे थे, उससे नहीं लगता था कि हमारी पीढ़ी इस ऐतिहासिक दिन की गवाह बन पाएगी। अब हमारे सामने ही श्रीराम जन्मभूमि पर निर्माण होने जा रहा है, यह अपने आप में गौरव की बात है।
जय प्रकाश अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि में हुई कारसेवा में 15 युवाओं के दल का नेतृत्व कर रहे थे। उनका कहना है कि वे उस समय 22 वर्ष के थे और कारसेवा के लिए दिल्ली से ट्रेन के माध्यम से 2 दिसंबर, 1992 को फैजाबाद पहुंचे थे। वहां से पैदल ही वह समूह के साथ अयोध्या पहुंच गए। छह दिसंबर को जय प्रकाश श्रीराम जन्मभूमि पर खड़े विवादित ढांचे के नजदीक तक पहुंच गये। वहां बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात था, लेकिन जब कूच का आह्वान हुआ तो बिना किसी चिंता के अन्य कारसेवकों के साथ वह ढांचे तक पहुंच गये।
उन्होंने बताया कि चूंकि श्रीराम मंदिर आंदोलन में उनके साथ उनकी टीम में शामिल कुल 15 युवक अपने बाल मुंडवाकर और सिर पर रोली से राम लिखकर पहुंचे थे। ऐसे में वे सबके आकर्षण के केंद्र में थे। युवाओं का यह दल अलग से ही पहचान में आ रहा था। कारसेवकों की सेवा में श्रद्धाभाव से जुट रहे थे लोग उन्होंने बताया कि वह जय श्रीराम के नारे लगाते हुए जा रहे थे। लोगों में कारसेवा को लेकर इतना उल्लास था कि रास्ते में पड़ने वाले गांव के लोगों ने जगह-जगह भोजन और पानी की व्यवस्था कर रखी थी।
लोग श्रद्धाभाव से कारसेवकों की सेवा में जुट रहे थे। वे अयोध्या में पहुंचने के बाद मानस भवन में रुके थे। 15 दिन तक भूमिगत रहा था युवाओं का दल जयप्रकाश के अनुसार, उनके दल का फोटो उस समय समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ, जिसके बाद पुलिस ने उन्हें ढूंढने का अभियान चला दिया। हालांकि, वे लोग पुलिस की पकड़ में नहीं आएं और वहां से निकलने में सफल रहे। इसके बाद वे 15 दिन तक एक जगह पर भूमिगत रहे। जयप्रकाश बताते हैं कि वह जब वापस दिल्ली लौटे तो परिवार से लेकर रिश्तेदारों ने उन्हें शाबासी दी और गर्व महसूस किया।