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यमुना में प्रदूषण व अमोनिया की मात्रा कैसे होगी खत्म, विशेषज्ञ ने बताया उपाय

पानीपत सोनीपत करनाल समेत अन्य इलाकों से औद्योगिक इकाइयों से गंदा पानी सीधे नदी में गिर रहा है। इस वजह से दोनों राज्यों में तू-तू मैं-मैं वाले हालात हैं और इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 20 Jan 2021 01:33 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jan 2021 04:05 PM (IST)
यमुना में प्रदूषण व अमोनिया की मात्रा कैसे होगी खत्म, विशेषज्ञ ने बताया उपाय
दूषित पानी निकलता है और नदी में मिलता है।

नई दिल्ली। यमुना में अमोनिया की मात्रा औद्योगिक इकाइयों से होने वाले प्रदूषण की तरफ इशारा करती है। इसका मतलब है कि औद्योगिक इकाइयों का गंदा पानी सीधे यमुना में गिर रहा है। दिल्ली जल बोर्ड पीने के पानी की आर्पूित के लिए यमुना से जिस जगह से पानी लेता है वह हिस्सा हरियाणा में आता है। ऐसे में यदि अमोनिया बढ़ने की वजह से जलार्पूित प्रभावित होती है तो स्वाभाविक रूप से इसके लिए हरियाणा की तरफ से बढ़ता प्रदूषण जिम्मेदार है।

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पानीपत, सोनीपत, करनाल समेत अन्य इलाकों से औद्योगिक इकाइयों से गंदा पानी सीधे नदी में गिर रहा है। इस वजह से दोनों राज्यों में तू-तू, मैं-मैं वाले हालात हैं और इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। जैसे ही यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ती है जल बोर्ड द्वारा पानी की आर्पूित प्रभावित होने लगती है।

यह हर साल का मर्ज है। सर्दियों में यह समस्या थोड़ी भयावह हो जाती है क्योंकि हवा की गति कम हो जाती है। हवा भारी होकर नीचे बैठ जाती है। इससे पानी में आक्सीजन संबंधी प्रक्रिया भी प्रभावित होती है, क्योंकि पानी में आक्सीजन की मात्रा शुद्धता का मापक है। स्वाभाविक है जब आक्सीजन की मात्रा कम होगी तो प्रदूषण बढ़ेगा ही। सर्दियों में यह बड़ा मसला हो जाता है।

कागजों पर ही है जीरो लिक्विड डिस्चार्ज

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इसके लिए समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी करता रहता है। जिसमें एμलुऐंट ट्रीटमेंट प्लांट लगाने, औद्योगिक इकाइयों को जीरो लिक्विड डिस्चार्ज बनाने की बात कही गई। इसका मतलब

है कि औद्योगिक इकाई से कचराम और दूषित पानी निकलकर यमुना में ना गिरे। लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा हो नहीं रहा है। इसका अंदाजा यमुना निगरानी समिति की एक रिपोर्ट से लगा सकते हैं।

रिपोर्ट इसी वर्ष 16 जनवरी को जारी की गई। जिसमें कहा गया है कि पानीपत के पास एक औद्योगिक इकाई है। कागज पर तो यह औद्योगिक इकाई जीरो लिक्विड डिस्चार्ज है लेकिन जब अधिकारियों ने मौका मुआयना किया तो पाया कि इकाई की दीवार में एक बड़ा छेद है, जिससे दूषित पानी निकलता है और नदी में मिलता है। यह तो सिर्फ एक जगह की बात है। ऐसी स्थिति कई इलाकों में मिल जाएगी।

औद्योगिक इकाइयों से निकला दूषित पानी यमुना में जहर घोल रहा है। लाकडाउन में जब औद्योगिक इकाइयां बंद थीं तो यमुना का पानी साफ हो गया था। असल समस्या औद्योगिक कचरे से ही है, जिस पर अभी तक खास ध्यान नहीं दिया गया, क्योंकि सीवेज तो अभी भी यमुना में गिर ही रहा है। औद्योगिक इकाइयों से यमुना में गिरने वाले कचरे पर रोक लगाने के लिए सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। यही हाल हरनंदी का भी है। गाजियाबाद में औद्योगिक इकाइयों की भरमार है। कई कालोनियों में घर-घर काम होता है। इनसे जो दूषित पानी निकलता है वो नदी में गिरता है।

सिर्फ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से नहीं बनेगी बात

यमुना का स्वच्छ होना बहुत जरूरी है। जब कोई सरकार यह कहती है कि किसी निश्चित समयसीमा में यमुना को स्वच्छ कर देगी तो उसे गंभीरता से इस पर अमल भी करना चाहिए। जब तक यमुना का अपना बहाव नहीं होगा तब तक नदी की स्थिति सही नहीं हो सकती है। सिर्फ एसटीपी यानी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाकर यमुना को साफ नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा संभव होता तो दिल्ली में 44 एसटीपी हैं। कुछ तो असर दिखना ही चाहिए।

यमुना में प्रदूषण कम करने के लिए यमुना निगरानी समिति गठित की गई। लेकिन कमेटी को सिर्फ निगरानी का अधिकार है। यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए जो थोड़ा बहुत काम हुआ है उसमें यमुना निगरानी समिति की महत्वपूर्ण भूमिका है। समिति ने एसटीपी बनाने, नाले सही करने, बहता हुआ पानी की व्यवस्था आदि पर निर्देश दिया है। बाढ़ क्षेत्र को लेकर कुछ काम धरातल पर नजर आता है। इसलिए कमेटी से कुछ आशा बनती है।

(मनोज मिश्र, प्रमुख, यमुना जिए अभियान से संवाददाता संजीव कुमार मिश्र से बातचीत पर आधारित।)

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