Delhi: संगमरमर से चमकने लगी पौने 400 साल पुरानी गुरु-शिष्य की दरगाह, ये है इसका इतिहास
दरगाह के मुतावल्ली के अनुसार जामा मस्जिद के गेट-2 के पास दोनों संतों की दरगाह बनी हुई हैं जिसका ऐतिहासिक महत्व भी है। एक हरे रंग की मजार है जो हरे भरे शाह की है और दूसरी लाल रंग की दरगाह है जो हजरत सूफी सरमद शहीद की है।
नई दिल्ली [राहुल सिंह]। पुरानी दिल्ली में करीब पौने 400 साल पहले ऐतिहासिक जामा मस्जिद और लाल किले के बीच बनी दो सूफी संतों की दरगाह इन दिनों संगमरमर के पत्थरों से चमक रही है। ऐतिहासिक हरे भरे शाह और उनके शिष्य हजरत सूफी सरमद शहीद साहब की दरगाह का अनलॉक-3 के दौरान जीर्णोद्धार कराया गया है। पिछले कई सालों में हुई बारिश और आंधी-तूफान के कारण दरगाह की दीवारें क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिन्हें दरगाह में आने वाले श्रद्धालुओं ने वक्फ बोर्ड की अनुमति के बाद संगमरमर के पत्थरों से सही कराया गया है।
दरगाह के मुतावल्ली के अनुसार, जामा मस्जिद के गेट-2 के पास दोनों संतों की दरगाह बनी हुई हैं, जिसका ऐतिहासिक महत्व भी है। एक हरे रंग की मजार है, जो हरे भरे शाह की है और दूसरी लाल रंग की दरगाह है, जो हजरत सूफी सरमद शहीद की है। दोनों दरगाहों के बीच में एक नीम का पेड़ है, जो आज भी हरा भरा है। उन्होंने बताया कि यह दरगाह आंधी तूफान के कारण कई बार क्षतिग्रस्त हो गई थी।
दरगाह का किया गया था 2011 में जीर्णोद्धार
वर्ष 2011 में दोनों दरगाह का जीर्णोद्धार किया गया था, जिसके बाद दोनों दरगाहों को हरे और लाल रंग दिये गए थे। इसके बाद वर्ष 2015 में भी क्षतिग्रस्त होने के बाद दरगाह को सफेद रंगों का कर दिया गया था, जिनपर केवल चादर अलग-अलग रंग की चढ़ाई जाती है। वहीं, अब अनलॉक-3 में भी क्षतिग्रस्त होने के बाद दरगाह को संगमरमर के पत्थर से बनवाया गया है, जो देखने में बेहद खूबसूरत लग रही है। लोग अब दोनों पर लाल और हरे रंग की चादर, प्रसाद, फूल व अन्य सामान चढ़ाते हैं।
ये है इतिहास
मुगल शासक औरंगजेब के कार्यकाल के दौरान दो सूफी संत हुए थे, जिनके नाम सैयद अब्दुल काशीम उर्फ हरे भरे शाह (गुरु) और उनके शिष्य हजरत सूफी सरमद शहीद शहीद थे। एक बार औरंगजेब जामा मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए आए तो उन्होंने दोनों संतों को बिना कपड़े पहनने हुए देखा। इसके बाद उन्होंने कहा कि वह पास में रखे कंबल को क्यों नहीं ओढ़ते है। इस पर दोनों संतों ने कहा कि वह उनके पाप छिपाकर बैठे हैं।
इस पर औरंगजेब भड़क गया और उसने कंबल हटाकर देखा तो उसके अपने लोग के कटे हुए सिर उसे दिखे, जिसके बाद उसने दोनों संतों से कलमा पढ़वाया, जिसमें से शिष्य ने आधा कलमा पढ़ा तो उसने उसे लाल किले पर बुलवाया और संत सूफी सरमद का सिर कलम करा दिया, जिसके बाद वह अपना सिर हाथ में लेकर जामा मस्जिद तक पहुंचा, जहां उसके गुरु हरे भरे शाह ने उसके शरीर को शांत कराया। इसके बाद दोनों की एक ही जगह पर दरगाह बनाई गई। जहां लोग आज भी दुआं करते हैं।
हरे भरे दरगाह के मुतावल्ली सैयद नबी अहमद ने बताया कि आंधी तूफान में दरगाह क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसके बाद से श्रद्धालुओं की मदद से इसका जीर्णोद्धार कराया गया है। इसमें संगमरमर का पत्थर लगाया गया है। वहीं, देश के अलग-अलग हिस्से से आने वाले लोग दरगाह की खूबसूरती की तारीफ कर रहे हैं, जो दिल्ली के लिए अच्छी बात है।
Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो