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जिंदगी के मनोबल का वैक्सी: उम्मीदों के तारे, चले मन के चांद की ओर

कोरोना संक्रमण रूपी वैश्विक महामारी के इस संकट में हम आज और भविष्य को लेकर चिंतित हैं। इससे निपटने के छोटे-छोटे तनाव विमुक्त नुस्खे हमारे आसपास ही हैं पर हम गौर नहीं कर रहे।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 28 May 2020 11:25 PM (IST)Updated: Fri, 29 May 2020 07:05 AM (IST)
जिंदगी के मनोबल का वैक्सी: उम्मीदों के तारे, चले मन के चांद की ओर
जिंदगी के मनोबल का वैक्सी: उम्मीदों के तारे, चले मन के चांद की ओर

नई दिल्ली [मनु त्यागी]। दिमाग की ग्रंथियों को ज्यादा खिंचाव देने की जरूरत नहीं है। और न ही मन को उदासी के बोझ तले दबाने की जरूरत। मन के हारे हार है और मन के जीते जीत, फिर काहे की फिक्र करें जब सब कुछ हो जाना है ठीक। कोरोना संक्रमण रूपी वैश्विक महामारी के इस संकट में हम आज और भविष्य को लेकर चिंतित हैं। इससे निपटने के छोटे-छोटे तनाव विमुक्त नुस्खे हमारे आसपास ही हैं, पर हम गौर नहीं कर रहे। इस मनो शक्तिरूपी नुस्खे को सात मनोवैज्ञानिकों ने सात किताबों के माध्यम से पाठकों तक पहुंचाया है। इन किताबों में लॉकडाउन के पहले दिन यानी 24 मार्च से 1 मई तक की लोगों की हर समस्या, हर उम्र वर्ग की मनोस्थिति का विश्लेषण किया गया है।

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मनोवैज्ञानिकों ने ऑनलाइन सर्वे व लोगों से फोन पर बातचीत कर जो अनुभव प्राप्त किए उन्हें किताब में जिंदगी को हिम्मत देने वाले वैक्सीन रूपी डोज की तरह अक्षत कर दिया है। मनोवैज्ञानिक जितेंद्र नागपाल के अनुसार हम घर में बुजुर्गों की अक्सर अनदेखी कर देते हैं, लेकिन ये घर की वो दरख्त हैं जो ऐसे संकट में जैविक बूटी बन इन हालातों से उबरने और मनोबल बनाए रखने की हिम्मत देते हैं।

परिवार के सदस्यों को अपने अनुभवों से बहुत कुछ दे सकते हैं। इसी को ध्यान में रखकर एक किताब लिखी गई है वल्नरबल इन ऑटम। यदि ऐसी महामारी में घर में आर्थिक दिक्कतें आ रही हैं, परिवार में किसी की नौकरी पर संकट है तो हमें बुजुर्गों के हाथों में कमान दे देनी चाहिए। इससे उनकी भी हिम्मत बंधेगी, आज की पीढ़ी के लिए आगे का रास्ता भी निकलेगा, क्योंकि इनकी उम्र, जीवन के बहुत से अनुभवों से गुजरकर मजबूत लाठी बनी है। परिवार ऐसे वक्त में बेहद अहम कूंजी और पूंजी है। इन सातों किताबों में इस विषय पर भी एक किताब है।

बुजुर्गों के पास है अनुभव की हिम्मत

नेशनल बुक ट्रस्ट की ओर से इस प्रोजेक्ट को देखने वाले कुमार विक्रम के मुताबिक इन सातों किताबों में दिव्यांगों व महिलाओं का ऐसी परिस्थिति से जूझना, कोरोना योद्धा, ऐसे परिवार जहां कोरोना संक्रमित हुए, इन परिवारों के मानसिक मनोबल को कैसे स्वस्थ रखा जा सकता है, क्या चुनौतियां आती हैं इस पर भी किताबें हैं। किस तरह उम्मीदों के तारे...मन के चांद की ओर हिम्मत बांधे बढ़ते जाते हैं।

मनोवैज्ञानिक अपराजिता दीक्षित के मुताबिक, इस अध्ययन और लेखन के दौरान सबसे अच्छी बात यह निकल कर आई कि लॉकडाउन जैसे-जैसे बढ़ता गया, वैसे-वैसे बहुत सारे मकान घर बनते गए और जो एकल परिवार थे वो कुटुंब बन गए। यह बहुत सकारात्मक संकेत रहा। इस एकल से कुटुंब बनने की कहानी ने वर्तमान और भविष्य के लिए जिस ऊर्जा का संचय किया है निश्चित ही ऐसे कोरोना काल पर यह हिम्मत भारी पड़ती है। बशर्ते लोग अपनों से अपनी बात कहते रहें। हमारा मनोविज्ञान इसकी पुष्टि करता है। और यह किताबें उसी का प्रमाण हैं।

रमेश पोखरियाल ने बताया इस वक्त की अहम पूंजी

लॉकडाउन के पहले दिन से ही प्रोजेक्ट पर जुटे हमारे सातों मनोवैज्ञानिक कभी आपस में बैठकर कहीं नहीं मिले और सभी ने सात किताबों को मिलकर ऑनलाइन कान्फ्रेंस के माध्यम से ही सफल बना दिया और मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने भी इन किताबों से ई-संस्करण लांचिंग के दौरान इस प्रोजेक्ट की सरहाना की और हर किसी के लिए अहम पूंजी बताया।


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