Muzaffarpur Shelter Home Assault Case: जुर्माना लगाने के खिलाफ ब्रजेश ठाकुर की याचिका का CBI ने किया विरोध
सीबीआइ की तरफ से पेश हुए विशेष लोक अभियोजक राजेश कुमार ने कहा कि ठाकुर पर लगाया गया जुर्माना सही है और न्यायहित में है और ठाकुर उक्त धनराशि का भुगतान करने के लिए बाध्य है।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। बिहार के मुजफ्फरपुर बालिका गृह में दुष्कर्म व यौन उत्पीड़न के चर्चित मामले में लगाए गए 32.20 लाख रुपये जुर्माना राशि निलंबित करने की सजायाफ्ता ब्रजेश ठाकुर की मांग वाली याचिका का केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ) ने विरोध किया है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ के समक्ष दाखिल जवाब में सीबीआइ ने कहा कि ठाकुर पर जुर्माना लगाने से कोई पक्षपात नहीं होगा क्योंकि उसे दुष्कर्म, यौन उत्पीड़न, षड़यंत्र जैसे कई संगीन आरोप में दोषी करार दिया गया है।
सीबीआइ की तरफ से पेश हुए विशेष लोक अभियोजक राजेश कुमार ने कहा कि ठाकुर पर लगाया गया जुर्माना सही है और न्यायहित में है और ठाकुर उक्त धनराशि का भुगतान करने के लिए बाध्य है। सुनवाई के दौरान सीबीआइ का जवाब रिकॉर्ड पर नहीं होने पर पीठ ने सीबीआइ अधिवक्ता को इसे पीठ के समक्ष 15 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई पर पेश करने का निर्देश दिया।
सजायाफ्ता ब्रजेश ठाकुर व सह-दोषी बाल कल्याण कमेटी के तत्कालीन चेयरमैन दिलीप वर्मा ने दिल्ली के साकेत कोर्ट द्वारा 20 जनवरी 2020 को दोषी ठहराए जाने और 11 फरवरी 2020 को सजा सुनाने के फैसले को चुनौती दी है। ठाकुर ने उसे दोषी ठहराने एवं अंतिम सांस तक के लिए उम्रकैद की सजा सुनाने के 20 जनवरी 2020 के अदालत के फैसले को रद करने की मांग की है। निचली अदालत ने ब्रजेश ठाकुर समेत 19 लोग को दोषी करार दिया था और ब्रजेश ठाकुर पर 32.20 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था।
अधिवक्ता निशांक मत्तो के माध्यम से दायर चुनौती याचिका में ब्रजेश ठाकुर ने दलील दी है कि साकेत कोर्ट ने उसके मामले में जल्दबाजी में सुनवाई की और यह उसके निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन है। उसने दावा किया कि उसके खिलाफ निचली अदालत ने पक्षपात पूर्ण तरीके से सजा का फैसला सुनाया और उसके आवेदन को बिना दिमाग लगाए ही खारिज कर दिया गया।
ठाकुर ने कहा दुष्कर्म के मामले में पाेटेंसी टेस्ट मूलभूत तथ्यों में से एक है, लेकिन बिहार पुलिस से लेकर सीबीआइ ने उसकी का पोटेंसी टेस्ट नहीं कराया। याचिका में कहा गया कि निचली अदालत यह तथ्य देखने में नाकाम रही कि दुष्कर्म के मामले में अभियोजन को सबसे यह स्थापित करना अनिवार्य है कि आरोपित पोटेंट (जनन-क्षम) है और उक्त आरोप को करने की क्षमता रखता है। उसने निचली अदालत का फैसला अवैध, गलत, दोषपूर्ण बताते हुए रद करने की मांग की है।
सात महीने की नियमित सुनवाई के बाद दिल्ली की साकेत कोर्ट ने 20 जनवरी 2020 को ब्रजेश ठाकुर को पोक्सो की धारा-6, दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म की धारा में दोषी करार दिया था। ब्रजेश के अलावा कुल 19 दोषियों को अदालत ने सजा सुनाई थी।
Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो