धर्म का बंधन तोड़ जिंदगी भर साथ रहे, मरने के बाद आड़े आया पति का धर्म
कई दिन मंदिरों के धक्के खाने के बाद बंगाली समाज के सहयोग से मुस्लिम पति ने पत्नी का किया श्राद्ध। 20 वर्ष पहले दोनों ने बिना धर्म बदले विवाह किया था।
नई दिल्ली (जेएनएन)। जात-बिरादरी और धार्मिक बंधनों को तोड़ने के लिए लाख जागरूकता अभियान चल रहे हैं, बावजूद सच्चाई यही है कि देश की राजधानी में भी धार्मिक कुरीतियां इस कदर जड़ें जमाई हुई हैं कि उन पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा। यही वजह है कि 20 साल पहले मुस्लिम से प्रेम विवाह करने वाली महिला की मौत के बाद उसकी अंतिम इच्छा पूरी करने में धर्म आड़े आने लगा। मुस्लिम से शादी करने की वजह से दिल्ली के मंदिरों ने उसका श्राद्ध करने से मना कर दिया था। हालांकि अब दिल्ली के ही बंगाली समाज के सहयोग से मुस्लिम पति ने बेटी के साथ पत्नी का अंतिम संस्कार कर दिया है।
मुस्लिम पति इम्तियाजुर रहमान ने रविवार को बंगाली समाज के सहयोग से चितरंजन पार्क में देशबंधु चितरंजन मेमोरियल सोसायटी के परिसर में अपनी हिंदू पत्नी का श्राद्ध कर दिया है। इस दौरान उनकी बेटी इहिनी अंबरीन और परिवार के कुछ सदस्य व दोस्त मौजूद रहे। इम्तियाजुर रहमान पत्नी का श्राद्ध कराने के लिए कई दिनों से दिल्ली के मंदिरों के चक्कर काट रहे थ। दरअसल उनकी पत्नी की अंतिम इच्छा थी कि मरने के बाद उनका हिंदू रीती-रिवाज से श्राद्ध किया जाए।
इम्तियाजुर रहमान पिछले हफ्ते पत्नी का श्राद्ध मंदिर में कराने के लिए भटक रहे थे। मंदिर समिति ने उनकी हिंदू पत्नी का अंतिम संस्कार करने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था। श्राद्ध में शामिल हुए एक व्यक्ति ने कहा कि काली मंदिर समाज द्वारा अनुमति न दिए जाने से वह काफी हताश थे। हालांकि बंगाली समाज की संस्था ने उनकी पत्नी की अंतिम इच्छा को पूरा करने में मदद की।
मालूम हो कि कोलकाता के रहने वाले रहमान की पत्नी की मौत बीते दिनों मल्टी आर्गन फेलियर के कारण दिल्ली में हो गई थी। रहमान ने 20 वर्ष पहले स्पेशल मैरिज एक्ट के अनुसार विवाह किया था। रहमान ने पत्नी का अंतिम संस्कार भी दिल्ली के निगम बोध घाट में हिंदू संस्कारों के अनुसार किया था, लेकिन परिवार श्राद्ध नहीं कर पा रहा था।
रहमान ने चितरंजन पार्क में काली मंदिर सोसाइटी में 12 अगस्त को श्राद्ध करने का समय लिया था, लेकिन बाद में उन्हें मंदिर समाज ने बताया कि उनकी बुकिंग को रद्द कर दिया गया है। मंदिर की तरफ से बताया गया कि मुस्लिम से शादी करने के बाद महिला को अब हिंदू नहीं माना जा सकता। क्योंकि महिला अपने ससुराल वालों के उपनाम और प्रणाली को अपनाती है और उस समाज का हिस्सा बन जाती है।