बेटे को गंवाने वाले अंकित सक्सेना के पिता को देश का सलाम, इस तरह बांटी मोहब्बत
अंकित के परिजनों ने बताया कि इफ्तार के लिए किसी को न्यौता नहीं दिया गया था। लोग खुद ब खुद हमारे आयोजन से जुड़ते चले गए। मेरठ, मुजफ्फरनगर, लखनऊ तक से लोग जुटे।
नई दिल्ली (जेएनएन)। दिल्ली के रघुबीर नगर इलाके में प्रेम प्रसंग में अंकित सक्सेना की हत्या के तीन महीने बाद उनके पिता यशपाल सक्सेना ने इफ्तार का आयोजन कर समाज में आपसी प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया। इफ्तार के आयोजन में अंकित की स्मृति में बने ट्रस्ट और अंकित के दोस्त अजहर व इनके पिता इजहार आलम का अहम योगदान रहा। इस आयोजन में मोहल्ले के सभी लोगों ने अपने स्तर पर योगदान दिया और कहा कि हम सभी आपसी प्रेम व सद्भाव से ही जीवन व्यतीत कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे।
करीब तीन महीने पहले रघुबीर नगर की जिस गली में अंकित की मौत पर मातम पसरा था, रविवार को नजारा कुछ और ही था। गली में हर जगह खुशी छाई थी, लोग इफ्तार के आयोजन की तैयारियों में पूरी तरह मशगूल थे। खुद अंकित के पिता इसमें लगे थे। मोहल्ले की औरतें फल काटने से लेकर सूखे मेवे को प्लेटों में सजाने में जुटी थीं। अंकित के फ्लैट के ठीक सामने स्थित फ्लैट में पैर रखने की भी जगह नहीं थी।
यहां तैयारियों का दौर सुबह से ही चल रहा था। शाम को जैसे ही घड़ी में पौने सात का वक्त हुआ, वैसे ही इफ्तार के लिए सजी प्लेटें परोसने का कार्य अंकित के यू-ट्यूब चैनल आवारा ब्वॉयज से जुड़े उसके दोस्तों ने संभाल लिया। अंकित की मौत के बाद आवारा ब्वॉयज चैनल उसके दोस्त ही संभाल रहे हैं। जिस जगह अंकित की हत्या हुई थी, वहां उसकी तस्वीरों का कोलाज लगाया गया था। अंकित के पिता ने कहा कि इंसानियत से बड़ा कोई मजहब नहीं है। इसकी सबसे बड़ी मिसाल मेरा मोहल्ला है जहां अंकित की मौत के बाद सभी मेरा ख्याल रख रहे हैं।
दूर-दूर से आए लोग
अंकित के परिजनों ने बताया कि इफ्तार के लिए किसी को न्यौता नहीं दिया गया था। लोग खुद ब खुद हमारे आयोजन से जुड़ते चले गए। मेरठ, मुजफ्फरनगर, लखनऊ तक से लोग जुटे। नोएडा, ओखला, नजफगढ़, द्वारका, राजौरी गार्डन सहित अनेक इलाकों से लोग आए। यहां पहुंचने वालों में सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर भी शामिल थे।
बाढ़ की तरह लोग आए और फिर चले भी गए
‘परिवार का इकलौता कमाने वाला जब दुनिया से ही चला जाए तो किसी पर क्या बीतेगी, इसे बयां कर पाना मुश्किल है। पिछले तीन महीने से मैं किस परिस्थिति में जी रहा हूं यह मैं ही जानता हूं। यह तो मेरे पड़ोसी हैं, गली वाले हैं, जो दुख की हर घड़ी में मेरे साथ खड़े हैं। अंकित की मौत के बाद बड़े-बड़े लोग आए, बड़ी-बड़ी बातें कहीं, दिलासा दिलाया, लेकिन तीन महीने बाद यह कहने में तनिक भी हिचक नहीं है कि अधिकांश बातें अब तक खोखली साबित हो रही है।’
अंकित के पिता बताते हैं कि घटना के समय लोगों का रेला लगा रहा। लेकिन, जैसे बाढ़ का पानी एकाएक आता है और फिर फैल जाता है, उसी तरह लोग भी आए और चले गए। अब तो हमदर्दी के बोल भी कहीं से सुनने को नहीं मिलते। यह तो मीडिया है जिसने अभी तक हमलोगों का साथ दिया है। अंकित के पिता बताते हैं कि सरकार की ओर से अभी तक उन्हें किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिली है।
परिवार का गुजारा पड़ोसियों व मोहल्ले वालों के सहयोग से हो रहा है। ये लोग ऐसे हैं, जो मेरी हर जरूरत का खयाल रखते हैं। यहां तक कि ये मुझे अकेलापन भी महसूस नहीं होने देते। अंकित के सभी दोस्त रोजाना मुझसे मिलने आते हैं। हमलोगों ने अंकित के नाम से सोशल मीडिया पर मुहिम चला रखी है। इसमें न सिर्फ देश बल्कि विदेश से भी लोगों का साथ मिल रहा है। अमेरिका, यूरोप, पूर्वी एशियाई देशों के कई लोग हमसे जुड़े हैं और हमसे एकजुटता जता रहे हैं।