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आधुनिक विपदाओं में घिरा लालकिले का मुगलकालीन बाजार, दुकानदार पहले कोरोना अब किसान आंदोलन से परेशान

मुगलकालीन बाजार को छत्ता बाजार कहते हैं इसमें 43 दुकानें हैं। इन पर मुख्य रूप से हस्तशिल्प के उत्पाद बिकते हैं जो राजस्थान गुजरात उत्तर प्रदेश बंगाल ओडिसा व आंध्र प्रदेश समेत अन्य राज्यों से आते हैं ।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 29 Jul 2021 06:45 AM (IST)Updated: Thu, 29 Jul 2021 08:27 AM (IST)
आधुनिक विपदाओं में घिरा लालकिले का मुगलकालीन बाजार, दुकानदार पहले कोरोना अब किसान आंदोलन से परेशान
कोरोना महामारी के साथ ही कृषि कानून विरोधी आंदोलनकारियों के उपद्रव ने दुकानों पर लगवाए ताले

नई दिल्ली [नेमिष हेमंत। ऐतिहासिक लालकिला के भीतर 373 साल पुराना एक बाजार है, जो डेढ़ वर्ष से वैश्विक महामारी कोरोना के साथ ही कृषि कानून विरोधी आंदोलनकारियों के उपद्रव की मार झेल रहा है। जंतर-मंतर पर फिर से आंदोलनकारी जमे हैं तो स्वतंत्र दिवस के आयोजन के नजदीक आने से पहले ही इसे फिर से बंद करा दिया गया है। आगे इसे कब खुलने की अनुमति मिलेगी, इस सवाल काे लेकर यहां के दुकानदार शून्य में खो जाते हैं। वैसे, भी जुलाई के पहले सप्ताह तक यह 26 जनवरी को हुए हिंसा के बाद से ही बंद चल रहा था। एक माह पहले ही खुला था कि अब फिर से ताले लटक गए हैं।

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मुगलकालीन बाजार के छत्ता बाजार में हैं 43 दुकानें

इस मुगलकालीन बाजार को छत्ता बाजार कहते हैं, इसमें 43 दुकानें हैं। इन पर मुख्य रूप से हस्तशिल्प के उत्पाद बिकते हैं जो राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बंगाल, ओडिसा व आंध्र प्रदेश समेत अन्य राज्यों से आते हैं। यहां के दुकानदार गर्व से कहते हैं कि इसे देश का पहला हस्तशिल्प बाजार भी कह सकते हैं, जो विभिन्न देशों से आने वाले पर्यटकों को "अविश्वसनीय भारत' की झांकी दिखाता है।

देश-विदेश के व्यापारी आते थे खरीब बेच करने

मुगलकाल में इसे बाजार-ए-मुसक्कफ (ढका हुआ बाजार) कहते थे। जहां देश-विदेश से उत्कृष्ट सामान बेचने व्यापारी आते थे। इनके खरीदार भी कोई आम लोग नहीं बल्कि शाही परिवार की महिलाएं और युवतियां होती थी। आजादी के बाद इस बाजार का रखरखाव दिल्ली नगर निगम करता था। वर्ष 2006 से यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के अधीन आ गया। एक मंजिला यह बाजार करीब 230 फीट लंबा और 13 फीट चौड़ा है। अष्टकोणीय आकार के इस बाजार में 16 गुंबद हैं। इसे यह मौजूदा आकार और रंग रूप अंग्रेजों ने कोई 130 पहले दी है। दो साल पहले एएसआइ ने इसके मुगलिया रूप को निखारा है। यह देखने में काफी आकर्षक है, लेकिन नियमित बंदी से फिलहाल बेजार है। खास बात कि राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस पर कोई एक सप्ताह तथा स्वतंत्रता दिवस पर करीब 15 दिनों के लिए यह बाजार प्रतिवर्ष बंद होता है। लालकिला की प्राचीर से प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं।

128 साल पुरानी दुकान

लालकिला बाजार दुकानदार एसोसिएशन के प्रधान आसिम हुसैन की दुकान भी 128 साल पुरानी है, वह कहते हैं कि लालकिला और उन लोगों ने कई चुनौतियां देखी, लेकिन ऐसा कालखंड उनके सामने कभी नहीं आया। जब पिछले वर्ष कोरोना ने देश में दस्तक दी थी तब राष्ट्रव्यापी लाकडाउन से पहले ही 15 मार्च से उनका बाजार बंद हो गया था, क्योंकि कोरोना संक्रमण के मद्​देनजर एएसआइ ने अपनी सारी इमारतों को इस दिन से बंद कर दिया था। जब देश में लंबे लाकडाउन के बाद अनलाक का दौर चला तो चार माह की बंदी के बाद आठ जुलाई को यह बाजार खुला। फिर स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों के मद्​देनजर एक अगस्त को यह बाजार बंद हुआ और 16 अगस्त से खुला।

किसान आंदोलन की आंच में झुलस रहा बाजार

इसके बाद गणतंत्र दिवस के आयोजन के लिए 19 जनवरी को बंद हुआ। यहां के दुकानदारों को लगा कि 26 जनवरी को राजपथ पर परेड के बाद उनकेे बाजारों को खोल दिया जाएगा, लेकिन कृषि कानून विरोधी आंदोलनकारियों ने लालकिले को निशाना क्या बनाया, इनकी रोजीरोटी पर बन आईं। हमले में लालकिले को भी नुकसान पहुंचा। जिसके कारण तब एएसआइ ने लाल किला खोलने की योजना स्थगित कर दी। इसके बाद कोरोना लहर मेें फिर सभी ऐतिहासिक इमारतें बंद कर दी गईं। आखिरकार पिछले माह 14 जून को यह बाजार खुला। अभी खुले एक माह भी नहीं हुए कि 20 जुलाई से फिर से बंद कर दिया गया है।

कब खुलेगा पता नहीं

आसिम हुसैन कहते हैं कि अगर कृषि कानून विरोधी यह आंदोलन नहीं होता तो यह बंदी कोई एक अगस्त से 15 दिनों के लिए रहती। अब आगे यह कब खुलेगा यह वह दावे से नहीं कह सकते हैं। दुकानदार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष मनीष कहते हैं कि देखा जाए तो डेढ़ वर्ष में अधिकतर दिन यह बाजार बंद ही है। इसके कारण उनके साथ ही इनसे देशभर से जुड़े सैकड़ों हस्तशिल्प कारीगरों के सामने आर्थिक संकट गहरा गया है। वे लोग दुकानों के कर्मचारी को अपनी जेब से वेतन दे रहे हैं, लेकिन यह कब तक संभव रहेगा, इसके बारे में वह कुछ नहीं कह सकते हैं।


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