सड़क हादसों में सबसे ज्यादा राहगीरों की मौत, रिपोर्ट में है कई चौंकाने वाली बातें
सड़क पार करने के दौरान बच्चे और किशोर भी हादसों के शिकार हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में दस साल से कम उम्र के 39 बच्चों और 10 से 18 साल के 52 किशोरों की मौतें हुईं।
नई दिल्ली, जेएनएन। राहगीरों के लिए राजधानी की सड़कें असुरक्षित हैं। इन सड़कों पर हर साल सैकड़ों की संख्या में राहगीरों की मौत होती है। यातायात पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल सड़क हादसों में मरने वालों में 40 से 45 फीसद राहगीर होते हैं। इनमें बुजुर्गों के साथ दस साल से कम उम्र के बच्चे भी होते हैं। यातायात पुलिस की 2017 की रिपोर्ट में राहगीरों की मौत के कारणों पर भी प्रकाश डाला गया है। इसमें बताया गया है कि राजधानी में जेब्रा क्रांसिंग, फुट ओवरब्रिज और सबवे की भारी कमी है।
अव्यवस्थित हो चुके फुटपाथ
इसके अलावा राहगीरों के चलने के लिए बनाए गए फुटपाथ अव्यवस्थित हो चुके हैं। कई जगहों पर दुकानदारों का अतिक्रमण हो चुका है तो कुछ जगहें उबड़ खाबड़ हो चुकी हैं। इसकी वजह से राहगीर सड़क पर चलते हैं और काल के ग्रास बन जाते हैं। रिपोर्ट यह भी बताती है कि इन हादसों में कई बार राहगीरों की भी गलती होती है, जो सड़क सुरक्षा नियमों का पालन नहीं करते हैं। जहां कहीं पर जेब्रा क्रांसिंग है या फुट ओवरब्रिज हैं उनका इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
टक्कर में कार सवार की मौत
नेल्सन मंडेला मार्ग पर बुधवार देर रात तेज रफ्तार होंडा सिटी कार डिवाइडर पर चढ़ने के बाद पेड़ से जा टकराई। इसमें कार चला रहे सुनील यादव की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि कार भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। डीसीपी देवेंद्र आर्य ने बताया कि नांगलोई के रहने वाले सुनील यादव बुधवार देर रात अपनी होंडा सिटी कार से अकेले घर लौट रहे थे।
नेल्सन मंडेला मार्ग पर उनकी कार अनियंत्रित होकर डिवाइडर पर चढ़ने के बाद पेड़ से टकरा गई। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि कार के परखचे उड़ गए और सुनील की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। पुलिस ने काफी मशक्कत के बाद सुनील के शव को कार से बाहर निकाला। पुलिस ने उनके परिजनों को सूचित करने के साथ ही शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है।
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चों का मन काफी चंचल होता है। यह त्वरित और सही निर्णय नहीं ले सकते हैं। यह स्थिति उनके सड़क पार करने पर भी लागू होती है, इसलिए जरूरी है कि 10 साल से कम उम्र के बच्चों को अभिभावक अकेले सड़क पार न करने दें। यही स्थिति बुजुर्गों के साथ भी होती है। उनकी मानसिक शारीरिक अवस्था त्वरित और सटीक निर्णय लेने वाली नहीं होती है, इसलिए भी उन्हें अकेले सड़क पार नहीं करना चाहिए।
डॉ. हिमांशु कुमार, मनोचिकित्सक, इहबास
16 सालों में भी नहीं बदली तस्वीर
सड़क हादसों पर यातायात पुलिस हर साल रिपोर्ट तैयार करती है। 2001 से 2017 के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि सड़क हादसों में मरने वालों में राहगीरों के अनुपात में कोई खास अंतर नहीं आया है। साल 2001 में राहगीरों का अनुपात 50.16 फीसद था, जबकि 2017 में यह 44.31 फीसद था। यह अनुपात सबसे कम 2013 में 41.15 फीसद रहा। हर रिपोर्ट में खामियों और अव्यवस्था का जिक्र किया गया। इस रिपोर्ट के आधार पर राजधानी में नई सड़कें बनीं। कुछ जगहों पर लालबत्ती को हटाया गया, लेकिन नतीजों में अप्रत्याशित कमी नहीं आई।
बच्चे और किशोर भी आ रहे चपेट में
सड़क पार करने के दौरान बच्चे और किशोर भी हादसों के शिकार हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में दस साल से कम उम्र के 39 बच्चों और 10 से 18 साल के 52 किशोरों की भी सड़क पार करते हुए मौतें हुईं। 2016 में यह आंकड़ा क्रमश: 48 और 50 था। विशेषज्ञों की मानें तो बच्चों में खतरों को भांपने की क्षमता कम होती है। इसी वजह से सड़क पार करने के दौरान जो मानसिक संयोजन होना चाहिए, वह उनके पास नहीं होता है।
इसके अलावा कई बार वाहन चालकों की लापरवाही से भी कई मासूम शिकार बन जाते हैं। गत एक नवंबर को हर्ष विहार इलाके में गली में खेल रहे एक सात साल के मासूम को कार चालक ने कुचल दिया। इसमें उसकी मौत हो गई। कार चालक ने घटना के वक्त कान में इयरफोन लगा रखा था।