नियमों के पहाड़ तले दबे उद्यमी और व्यापारी, छूट के बावजूद नहीं खुल सकीं ज्यादातर औद्योगिक इकाइयां
उद्यमियों के मुताबिक एक नियम यह बना दिया गया कि या तो कामगारों को फैक्ट्री में ही रखा जाए या फिर उन्हें घर से फैक्ट्री तक लाने-ले जाने के लिए परिवहन व्यवस्था की जाए।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। लॉकडाउन-3 में उद्योग शुरू करने की छूट उद्यमियों-व्यापारियों के लिए बेमानी ही साबित हुई। दिल्ली-एनसीआर में कहीं भी 10-15 फीसद से अधिक औद्योगिक इकाइयां शुरू नहीं हो सकीं। वजह, छूट के नाम पर नियमों का पहाड़। मास्क, सैनिटाइजर और शारीरिक दूरी के पालन तक तो स्वीकार्य था, लेकिन उद्यमी को ही कार्रवाई के कठघरे में खड़ा कर मानो पिछले दरवाजे से छूट वापस भी ले ली गई। इसमें कोई संदेह नहीं कि इन हालातों के लिए स्थानीय पुलिस-प्रशासन ही जिम्मेदार रहा है।
अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने के लिए गृह मंत्रालय ने एक मई को गाइडलाइंस जारी की थी। उद्यमियों ने पूरी तैयारी कर ली थी। लेकिन, स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने इन नियम-कायदों को और सख्त बनाते हुए कुछ शर्तें अतिरिक्त लगा दीं।
उद्यमियों के मुताबिक, एक नियम यह बना दिया गया कि या तो कामगारों को फैक्ट्री में ही रखा जाए या फिर उन्हें घर से फैक्ट्री तक लाने-ले जाने के लिए परिवहन व्यवस्था की जाए। दूसरा नियम यह कि अगर किसी कामगार को कोरोना संक्रमण हो जाता है तो पूरी फैक्ट्री सील की जाएगी और उद्यमी पर जुर्माना होगा, सो अलग। इस तरह के नियमों ने उद्यमियों के उत्साह पर पूरी तरह से पानी फेर दिया। इसी सबका नतीजा रहा कि लॉकडाउन-4 आ गया जबकि 80 से 85 फीसद उद्योग आज भी बंद ही पड़े हैं।
पुलिस-प्रशासन के इस रवैये से कामगारों की वह उम्मीद भी टूटने लगी कि जल्द ही उन्हें काम मिलना शुरू हो जाएगा। इस उम्मीद के टूटने के साथ ही कामगारों ने घर वापसी की राह पकड़ ली। आलम यह है कि पिछले एक पखवाड़े में दिल्ली-एनसीआर से लाखों कामगार घर की राह पकड़ चुके हैं।
उद्यमियों की एक शिकायत यह भी है कि जब उद्योग धंधे चलाने की अनुमति नहीं थी तो उन पर कामगारों को घर बैठे-बैठे भी वेतन देने के लिए दबाव बनाया गया। अब जबकि उद्योग-धंधे शुरू किए जा सकते थे तो पुलिस-प्रशासन ने हालात ऐसे बना दिए कि कामगार रुकने को ही तैयार नहीं हैं। बिना कामगारों के तो लॉकडाउन-4 में भी ज्यादातर उद्योग- धंधे चालू होने के बावजूद रफ्तार नहीं पकड़ पाएंगे।
उद्यमियों के मुताबिक फैक्ट्री न चलने के कारण
- तरह-तरह के दिशा-निर्देशों के कारण उद्यमियों में भय
- प्रत्येक विभाग के अपने नियम जैसे नगर निगम, डीएसआइआइडीसी, डीएम, पुलिस, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, अग्निशमन विभाग इत्यादि
- कामगारों की कमी
- दिल्ली के सभी बॉर्डर सील
- सभी थोक बाजारों का बंद होना
- आर्थिक परेशानी
उद्यमियों के सुझाव
- सभी विभाग मिलकर एक संयुक्त बैठक कर उद्यमियों को सहयोग का विश्वास दिलाएं
- बचे हुए कामगारों को रोकने के प्रयास किए जाएं
- दिल्ली में प्रवेश के सभी बॉर्डर पूरी तरह से खोले जाएं
- सरकार द्वारा रोजाना नए-नए आदेश न जारी किए जाएं
नरेला औद्योगिक क्षेत्र के चेेयरमैन बसंत सोमानी ने बताया कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उद्यमियों-व्यापारियों को प्रोत्साहित करना चाहिए, उन्हें सहयोग देना चाहिए। लेकिन हकीकत में उन्हें हर स्तर पर डराया और अपरोक्ष रूप से उत्पीड़ित किया गया। यही वजह रही कि जो थोड़ी बहुत औद्योगिक इकाइयां चलीं भी, वे या तो मास्क, सैनिटाइजर बनाने से जुड़ी थीं या फिर खाद्य वस्तुओं से जुड़ी।
दिल्ली सरकार में श्रम एवं रोजगार मंत्री गोपाल राय ने कहा कि केंद्र ने जो सिस्टम बनाया उसको और व्यावहारिक बनाना चाहिए था। केंद्र की ओर से गाइडलाइंस तो जारी हो जाती हैं, लेकिन उससे पैदा होने वाली दिक्कतों का अंदाजा उसे नहीं होता है। बावजूद इसके दिल्ली सरकार अपने स्तर पर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का हर संभव प्रयास कर रही है। उद्योग-धंधों की बेहतरी को भी जल्द ही कुछ और निर्णय लिए जाने की संभावना है।