महिलाओं के लिए खुशखबरी, इस कैब में सफर करने पर मिलेगी सुरक्षा की फुल गारंटी
शैलजा कहती हैं कि कैब सर्विस में हर आयु वर्ग की महिला चालक हैं। भविष्य में अहमदाबाद मुंबई जयपुर जैसे शहरों में भी इसकी सेवा शुरू करने जा रहे हैं।
नई दिल्ली [मनु त्यागी]। सोनिया ने जैसे ही आत्मविश्वास के साथ गा़ड़ी की स्टेयरिंग संभाली, जिंदगी और परिवार दोनों ने गति पकड़ ली। कार में पीछे की सीट पर बैठी सवारी भी बेहद विश्वास के साथ अखबार पढ़ते हुए इत्मीनान से सफर करती हैं। ये है देश की पहली मोबाइल एप्लीकेशन आधारित महिलाओं की कैब। दिल्ली निवासी 34 वर्षीय शैलजा मित्तल को यह जरूरत तब महसूस हुई जब एक दिन उनकी बेटी को स्कूल ले जाने के लिए रोज आने वाले कार चालक की जगह कोई अनजान शख्स आया।
शैलजा को संकोच हुआ और बेटी को उसके साथ नहीं भेजा, खुद स्कूल छो़ड़ने गईं। उसी दिन तय किया कि क्यों न ऐसी कैब सेवा शुरू की जाए, जिसमें सिर्फ महिला चालक हों और वह सिर्फ महिला और बच्चों के लिए ही हो? जहां सभी महफूज महसूस करें। यहीं से शुरआत हुई इस नई कैब की।
महिलाओं के संदेश
दरअसल, शैलजा महिलाओं के माध्यम से एक सशक्त संदेश देना चाहती थीं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद अच्छी भली निजी कंपनी की नौकरी छो़ड़ी और छोटे से सशक्त स्टार्ट-अप की शुुरुआत कर दी, जो दो कार से शुरू होकर दो साल में ही 17 कैब पार्टनर तक पहुंच गया है। शैलजा कहती हैं कि हमारी कार सेवा बिलकुल मां जैसी सुरक्षा देती है। जब महिलाओं के हाथ में स्टेयरिंग होगा तो सवारी सुरक्षित महसूस करेंगे।
महिला चालकों की तलाश सबसे कठिन पड़ाव था। धारणा बनी हुई है कि यदि महिला चालक है तो सफर सुरक्षित नहीं है। गाड़ी कहीं न कहीं दुर्घटनाग्रस्त होगी। वह कहती हैं कि हमने लोगों की इस मानसिकता को तो़ड़ा है। हमने सभी महिला चालकों को खुद प्रशिक्षण दिया और उनको आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भर भी बनाया है, यही हमारा लक्ष्य भी है।
महिला चालकों की बदल गई जिंदगी
महिला चालकों में किसी का कार के बाद बस जैसे बड़े वाहन चलाने का सपना है तो किसी के घर की खुशियां अब इसी कैब सेवा पर टिकी हैं। बच्चों की पढ़ाई का खर्च इसी नौकरी से है। शैलजा कहती हैं कि कैब सर्विस में हर आयु वर्ग की महिला चालक हैं। भविष्य में हम अहमदाबाद, मुंबई, जयपुर जैसे शहरों में भी इसकी सेवा शुरू करने जा रहे हैं।
गाड़ी चलाने से मिली खुशियां
बुराड़ी निवासी सोनिया सिंह बताती हैं कि मेरे बच्चे भी बेहद खुश हैं, गर्व महसूस करते हैं कि हमारी मम्मी गाड़ी चलाती हैं। अब हमारे लिए प़़ढाई से लेकर खेलने तक की सब खुशियां देती हैं। हां, कभी बच्चे पूरी तरह उन्हें समय न दे पाने से नाराज जरूर होते हैं। परिवार में भी सिर्फ पति को बताया किसी और को नहीं, क्योंकि सब वैसा सहयोग नहीं करते।
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इसी तरह कविता शर्मा, पूनम और कुंती देवी सहित बहुत सारी लड़कियों की कहानियां हैं। कविता के पिता ने गा़ड़ी चलाने के लिए मना किया तो इन्होंने कंप्यूटर की क्लास बताते हुए इस कंपनी में गाड़ी चलाने की ट्रेनिंग ली। फिर कुछ दिन के प्रशिक्षण के बाद जब नौकरी लग गई तो घर पर बताया। कहती हैं, स़़ड़क पर सभी तरह के लोग मिलते हैं, कभी लड़कों को लगता है कि हम ही आगे जाएंगे, लड़की कैसे आगे निकल सकती है और कभी ऐसे भी मिलते हैं जो उत्साह ब़़ढाते हैं, लेकिन मैं निडर होकर चलती हूं मेरा सपना है एक दिन बस भी चलाऊं।
कोई भी राह आसान नहीं होती
शैलजा कहती हैं कि हमारे साथ जु़ड़ी महिला चालकों को कई ऐसे जटिल अनुभव भी हुए तो कई बार यात्रियों से सराहना भी मिली। प्रधानमंत्री द्वारा महिला कर्मचारियों को रात में काम करने के लिए सुरक्षित माहौल देने की बात पर कहती हैं कि इससे आधी आबादी का हौसला तो ब़़ढ़ेगा, लेकिन अभी दिल्ली-एनसीआर या मेट्रो शहरों में महिलाओं को लेकर जैसा असुरक्षित माहौल है। ऐसे में हम कैब सेवा के समय को अभी तो नहीं ब़़ढाएंगे। जब सरकारी स्तर पर और पुलिस-प्रशासन की ओर से दिल्ली महफूज लगने लगेगी तब जरूर ऐसी पहल करेंगे। वैसे प्रधानमंत्री के संसद में ऐसे भाषण के बाद सकारात्मक उम्मीद जगी है।