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MCD Election 2022: दिल्ली नगर निगम में AAP की जीत और BJP के हार के ये हैं 5 कारण

MCD Election 2022 दिल्ली नगर निगम चुनाव (Delhi Municipal Corporation Election 2022) में आम आदमी पार्टी जीत गई है। भाजपा 15 साल बाद नगर निगम की सत्ता से बाहर हो गई है। AAP ने 250 सीटों में से 134 सीट और भाजपा ने 104 सीट जीती हैं।

By Jagran NewsEdited By: GeetarjunPublished: Thu, 08 Dec 2022 12:22 AM (IST)Updated: Thu, 08 Dec 2022 12:22 AM (IST)
MCD Election 2022: दिल्ली नगर निगम में AAP की जीत और BJP के हार के ये हैं 5 कारण
दिल्ली नगर निगम में AAP की जीत और BJP के हार के ये हैं 5 कारण

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। दिल्ली नगर निगम चुनाव (Delhi Municipal Corporation Election 2022) में आम आदमी पार्टी जीत गई है। भाजपा 15 साल बाद नगर निगम की सत्ता से बाहर हो गई है। AAP ने 250 सीटों में से 134 सीट और भाजपा ने 104 सीट जीती हैं। कांग्रेस ने 9 और निर्दलीय उम्मीदवार ने तीन सीटें जीती हैं।

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15 साल तक लगातार नगर निगम की सत्ता पर बने रहना और फिर बाहर हो जाना भाजपा के लिए मंथन की बात जरूर है। वहीं, आम आदमी पार्टी ने पहली बार नगर निगम में जीत हासिल की है। आइए जानते हैं दोनों पार्टियों की हार जीत के कारण।

कुल मतदाता: 1,45,50,5358

मतदान हुआ: 7320577

भाजपा को मिले : 2867472

कांग्रेस को मिले: 856593

आप को मिले: 3084957

नोटा: 57454

आप की जीत के पांच मजबूत कारण

  • दिल्ली में जनता को मिल रही बेहतर स्वास्थ्य व शिक्षा से आप के प्रति जगा विश्वास
  • दिल्ली में मिल रही मुफ्त बिजली-पानी का लाभ
  • महिलाओं के लिए निश्शुल्क बस यात्रा
  • झुग्गी बस्तियों व अनाधिकृत कालोनियों में पार्टी का मजबूत जनाधार
  • दिल्ली सरकार के काम देख कर निगम में सुधार की उम्मीद

भाजपा के हार के पांच बड़े कारण

  • भाजपा का नगर निगम में पिछले 15 वर्षों से शासन था। खराब सफाई व्यवस्था व पार्षदों के कामकाज से लोगों में नाराजगी थी। सत्ता विरोधी लहर की वजह से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।
  • अरविंद केजरीवाल की तुलना में भाजपा के पास कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं है। पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ा।
  • दिल्ली सरकार की मुफ्त बिजली व पानी योजना और महिलाओं के लिए निश्शुल्क बस यात्रा की सुविधा का भाजपा कोई काट नहीं निकाल सकी।
  • बड़े नेताओं की गुटबाजी। बड़े नेताओं की आपसी लड़ाई को रोकने में पार्टी नेतृत्व विफल रहा। टिकट बंटवारे को लेकर भी सांसदों व बड़े नेताओं में मतभेद रहा।
  • स्थानीय कार्यकर्ताओं से ज्यादा बाहरी नेताओं के चुनाव प्रचार पर पार्टी निर्भर रही। पंच परमेश्वर व मजबूत बूथ प्रबंधन का दावा सिर्फ कागजों तक सीमित रहा।

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