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सत्ता से ज्यादा बादशाहत की चिंता, दिल्ली भाजपा में जारी है आपसी खींचतान

मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बने डेढ़ वर्ष से ज्यादा समय हो गया है, लेकिन अब तक कई बड़े नेता उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर सके हैं।

By Amit MishraEdited By: Published: Fri, 20 Jul 2018 07:38 PM (IST)Updated: Sat, 21 Jul 2018 03:00 AM (IST)
सत्ता से ज्यादा बादशाहत की चिंता, दिल्ली भाजपा में जारी है आपसी खींचतान
सत्ता से ज्यादा बादशाहत की चिंता, दिल्ली भाजपा में जारी है आपसी खींचतान

नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। दिल्ली में भाजपा को मजबूत करने की जिम्मेदारी जिन कंधों पर है, वे संगठन के बजाय अपना कद बढ़ाने की जुगत में हैं। इससे पार्टी में आपसी खींचतान के साथ ही गुटबाजी भी बढ़ रही है। इसका असर संगठन के कामकाज पर भी पड़ रहा है। न तो समय पर संगठन में नियुक्तियां हो सकी हैं और न ही दिल्ली के मुद्दों पर अरविंद केजरीवाल सरकार को घेरने में पार्टी सफल हो रही है।

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पूरी नहीं हो सकी है नियुक्तियों की प्रक्रिया

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने विगत 31 जुलाई तक बूथ स्तर तक की इकाइयां गठित करने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद नेताओं की खींचतान की वजह से एक साल बीत जाने के बाद भी अब तक कई संगठनात्मक नियुक्तियों की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है। इसे लेकर पिछले महीने समीक्षा बैठक में अमित शाह ने नाराजगी भी जताई थी और आगामी 25 जुलाई तक यह काम पूरा करने की हिदायत दी थी।

एक नाम पर सर्वसम्मति नहीं

दरअसल, नेताओं की आपसी खींचतान की वजह से पदाधिकारियों की घोषणाएं टलती रही हैं। सभी बड़े नेता अपने पसंदीदा व्यक्ति को पद दिलाना चाहते हैं, जिसकी वजह से किसी एक नाम पर सर्वसम्मति नहीं बन पाती है। मुश्किल यह है कि दिल्ली भाजपा में कोई भी बड़ा नेता पार्टी को एकजुट करने को लेकर गंभीर नहीं है।

बड़े नेता पार्टी से अलग अपना एजेंडा चला रहे हैं

मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बने डेढ़ वर्ष से ज्यादा समय हो गया है, लेकिन अब तक कई बड़े नेता उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर सके हैं। यही वजह है कि ये बड़े नेता पार्टी से अलग अपना एजेंडा चला रहे हैं। इससे नेताओं के रवैये पर सवाल उठ रहा ही है, प्रदेश नेतृत्व पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।

सक्रिय नहीं दिखाई दे रहे डॉ. हर्षवर्धन

दिल्ली भाजपा में सबसे बड़ा नाम केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का है, लेकिन प्रदेश में वह पार्टी को मजबूत करने में सक्रिय नहीं दिखाई दे रहे। अपने संसदीय क्षेत्र चांदनी चौक में कभी-कभार कार्यक्रम में जरूर दिखाई देते हैैं, लेकिन प्रदेश भाजपा की सियासत से उन्होंने मोटे तौर पर खुद को दूर रखा हुआ हैै। उनके अनुभव व कद का सही इस्तेमाल दिल्ली में संगठन को मजबूत करने और कार्यकर्ताओं को जोड़ने के लिए नहीं हो पा रहा है।

पार्टी में गुटबाजी बढ़ाने का आरोप

केंद्रीय राज्य मंत्री विजय गोयल को वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी से हटाकर राजस्थान से राज्यसभा भेजा गया। बाद में उन्हें राज्यमंत्री भी बनाया गया, लेकिन दिल्ली की सियासत में उनकी सक्रियता बरकरार है। गोयल पर पार्टी में गुटबाजी को बढ़ाने का भी लगातार आरोप लगता रहा है।

कई बार नाराजगी जता चुका है तिवारी खेमा

प्रदेश के नेताओं की शिकायत है कि संगठन को विश्वास मेें लिए बगैर वह लोक अभियान के बैनर तले अक्सर कार्यक्रम आयोजित करते रहते हैं। इस तरह वह प्रदेश नेतृत्व को समय-समय पर चुनौती देते नजर आते हैं। वहीं चांदनी चौक और उत्तर-पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में उनकी सक्रियता से भी पार्टी के कई नेता असहज हैं। उत्तर-पूर्वी दिल्ली से मनोज तिवारी सांसद हैं। तिवारी खेमा गोयल के कार्यक्रमों को लेकर कई बार नाराजगी जता चुका है और संगठन की बैठकों में भी यह मामला जोर-शोर से उठ चुका है।

चर्चा में तीखी नोकझोंक

दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता का भी संगठन के साथ खास तालमेल नहीं दिखाई देता है। पिछले दिनों बैठक में अध्यक्ष के साथ उनकी तीखी नोकझोंक भी चर्चा में है। प्रदेश संगठन महामंत्री सिद्धार्थन भी नेताओं की लड़ाई रोकने में बेबस दिखाई देते हैं। प्रदेश अध्यक्ष सहित कई नेताओं से उनकी तनातनी की चर्चा अक्सर सामने आती रही है।

चुनाव में हो सकता है नुकसान 

प्रदेश भाजपा की यह स्थिति कोई नई नहीं है, ये गुटबाजी पिछले कई वर्षों से प्रदेश भाजपा में हावी है। यही कारण है कि पार्टी लगभग दो दशकों से दिल्ली की सत्ता से दूर है। यदि इस सूरत में बदलाव नहीं हुआ तो यह इसमें कोई संदेह नहीं कि अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। 


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