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मंडी हाउस: कुछ ठहरा, कुछ दौड़ता हुआ, देश-दुनिया की खबर ही नहीं

मंडी हाउस में भले ही नाटकों के शो दोपहर बाद चलते हों, लेकिन यहां के सभागार साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से गुलजार रहते हैं।

By Amit MishraEdited By: Published: Sun, 24 Sep 2017 04:18 PM (IST)Updated: Sun, 24 Sep 2017 07:22 PM (IST)
मंडी हाउस: कुछ ठहरा, कुछ दौड़ता हुआ, देश-दुनिया की खबर ही नहीं
मंडी हाउस: कुछ ठहरा, कुछ दौड़ता हुआ, देश-दुनिया की खबर ही नहीं

नई दिल्ली [अभिनव उपाध्याय]। मंडी हाउस गोलचक्कर से चारों तरफ सड़कें निकली हैं और हर सड़क की अपनी तासीर है। भगवान दास रोड पर मंडी हाउस, फिरोज शाह रोड पर नेपाल का दूतावास और रसियन सेंटर, कॉपरनिकस मार्ग पर साहित्य अकादमी व दूरदर्शन का कार्यालय, तानसेन मार्ग पर त्रिवेणी कला संगम व फिक्की सभागार, सफदर हाशमी मार्ग पर श्रीराम सेंटर और सिकंदरा रोड पर मेट्रो स्टेशन। बाकी दिल्ली की तरह इस इलाके की शाम भी ढलने के साथ-साथ जवान होती है, लेकिन उसका अंदाज कुछ जुदा होता है।

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श्रीराम सेंटर के बाहर सिगरेट और चाय-समोसे के साथ सीन, डायलाग और नाटक की चर्चा...जींस-कुर्ता, खिचड़ी दाढ़ी और चेहरे पर बेफिक्री लिए लोग आम तौर पर मिल जाते हैं। मंडी हाउस गोल चक्कर के अंदर पार्क में भीड़ और वाहनों के शोर से अनसुने कलाकार नाटक के डायलाग कुछ यूं दोहराते हैं, मानो उन्हें देश-दुनिया की खबर ही नहीं।

पर्ची में लिखे डॉयलाग से लेकर निर्देशक की झुंझलाहट और एक-एक सीन के लिए बारंबार रिटेक करते कलाकार वहां से गुजर रहे लोगों के लिए भले ही अचरज हों, लेकिन यह मुक्ताकाश उनके रंग-संसार का बेहतरीन स्थल है। श्रीराम सेंटर, कमानी सभागार और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सभागारों में चलने वाले नाटक के लिए कतारबद्ध लोग और कहीं नुक्कड़ नाटक करते तो कहीं स्केच से चित्र बनाते दृश्य, लगभग हर दिन मंडी हाउस के इलाके में दिखाई देते हैं। नृत्य, संगीत और अभिनय की पाठशालाएं यहां से गुजरने वालों को चौंकाती है, लुभाती है, भाग-दौड़ की जिंदगी में थोड़ा सुकून देती हैं।

कथक केंद्र के बाहर तबले और ढोलक की थाप के साथ घुंघरूओं की आवाज आपको खींचती है। आसपास के दफ्तरों के लोगों के लिए मंडी हाउस का स्ट्रीट फूड भी खूब लुभाता है। इलाके की रेहड़ियों-ढाबों पर समोसे, चाय, कढ़ी-चावल के दीवानों की भी कोई कमी नहीं। इनमें बॉलीवुड में एंट्री पाने के सपने पाले नौजवान या रंगमंच पर पहचान बना चुके कलाकार भी हैं। सिगरेट के धुएं के बीच ये लोग देश-दुनिया की समस्याओं को रंगमंच पर जीने, उसे दृश्य में तब्दील करने की कशमकश में खोए मिलेंगे, बहस-मुबाहिसा करते फिरेंगे।

हिमाचल में मंडी नरेश के निवास स्थान के नाम पर इस जगह का नाम बेशक मंडी हाउस पड़ा, लेकिन यहां आने वाले अलमस्त फक्कड़ों में राजसी जैसा कुछ तो बिलकुल नहीं दिखेगा। ये तो किसी और दुनिया के शहंशाह लगते हैं... उनके दिमाग में तो बस सीन, कैरेक्टर, डायलॉग हैं। आधुनिकता और परंपरा को खास तरीके से संजोये मंडी हाउस खासकर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के लिए खास तौर पर मशहूर है। नाट्य जगत में संघर्षरत अनगिनत युवा यहां दाखिला लेकर अपने सपनों को पंख देना चाहते हैं। कंधे पर झोला लटकाए किसी नई कहानी, नई कविता और नई सोच के साथ घूमते नजर आते हैं ये लोग।

बहावलपुर के राजा के भवन में स्थापित एनएसडी के छात्रों और शिक्षकों के पास तमाम रोचक किस्से हैं, राग के, रंग के और जिंदगी के। नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर, इरफान खान, नवाजुद्दीन सिद्दिकी जैसे बड़े नामों से लेकर न जाने कितने अनाम कलाकारों को यह जगह बरबस ही अपनी ओर खींचती है। ये लोग यहां यहां अक्सर आते हैं, ढाबों पर चाय की चुस्कियों और सिगरेट के कश के बीज अपना खोया-पाया सुनाते हैं, पुरानी यादें ताजा करते हैं, जमकर बतकही करते हैं।

मंडी हाउस में भले ही नाटकों के शो दोपहर बाद चलते हों, लेकिन यहां के सभागार साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से गुलजार रहते हैं। रवींद्र भवन में प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी की लाइब्रेरियों में शोधार्थी, पढ़ाकू किस्म के लोग ऐसे गुमसुम नजर आते हैं, जैसे उन्हें कुछ और की तलाश हो। कभी किताबों के बिक्री स्थल के लिए मशहूर मंडी हाउस में अब किताबें कम मिलती हैं। फुटपाथ पर बिक रहे हिंदी, अंग्रेजी उपन्यासों के अलावा एनएसडी में ही एक पुस्तक की दुकान है। उसमें भी अधिकांश किताबें नाट्य रंग कर्म से जुड़ी होती हैं।

शाम पांच बजे के बाद से यह इलाका अचानक हरकत में आ जाता है। आसपास के दफ्तरों से निकले कर्मचारी मेट्रो स्टेशन या फिर शिवाजी या तिलक ब्रिज रेलवे स्टेशनों की तरफ भागते हैं। इससे बिल्कुल जुदा नजारा मंडी हाउस के आसपास ढाबों, सड़क किनारे नजर आता है। ढलती शाम के बीच पीर की मजार के आसपास कुछ अलमस्त जोड़ों को कोई जल्दी नहीं दिखती। ढाबों-खोखों के इर्दगिर्द रंग और संस्कृति की दुनिया में रंग भरने के मंसूबे पाले इन फक्कड़ों को दिल्ली की रफ्तार से कोई लेना-देना नहीं दिखाई देता। 

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