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अब सड़कों पर नहीं दिखेंगे गड्ढे, कमाल की है Make in India की ये तकनीक; जल्दी निपटा देगी काम

देश की सड़कों पर वाहनों के बढ़ते दबाव के चलते बड़े फ्लाईओवरों और प्रमुख मार्गों का मरम्‍मत कार्य एजेंसियों और यातायात प्रबंधन के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। इस कार्य को पूरा करने में कई हफ्ते लग जाते हैं।

By Ramesh MishraEdited By: GeetarjunPublished: Fri, 26 May 2023 01:04 PM (IST)Updated: Fri, 26 May 2023 01:04 PM (IST)
अब सड़कों पर नहीं दिखेंगे गड्ढे, कमाल की है Make in India की ये तकनीक; जल्दी निपटा देगी काम
अब सड़कों पर नहीं दिखेंगे गड्ढे, कमाल की है Make in India की ये तकनीक; जल्दी निपटा देगी काम

नई दिल्‍ली, रमेश मिश्र। देश की सड़कों पर वाहनों के बढ़ते दबाव के चलते बड़े फ्लाईओवरों और प्रमुख मार्गों का मरम्‍मत कार्य एजेंसियों और यातायात प्रबंधन के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। इस कार्य को पूरा करने में कई हफ्ते लग जाते हैं। इसके चलते महानगरों का पूरा यातायात सिस्‍टम ध्‍वस्‍त हो जाता है। देश की राजधानी में तो यह बड़ी समस्‍या है।

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मरम्‍मत कार्य के दौरान दिल्‍ली में कई किलोमीटर तक लंबे जाम से लोगों को रूबरू होना पड़ता है। इसके अतिरिक्‍त प्रादेश‍िक सरकारों के समक्ष भी ग्रामीण सड़कों का रखरखाव और उन्‍हें गड्ढामुक्‍त रखना एक बड़ी समस्‍या है। देश में सड़क दुर्घटनाओं के लिए भी यह बड़े कारणों में से एक है।

ऐसे में केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) द्वारा निर्मित यह खास किस्‍म की तकनीक इन सभी समस्‍याओं के समाधान के लिए एक मील का पत्‍थर साबित हो सकती है। सीआरआरआई के एक युवा महिला विज्ञानी डा शिक्षा स्‍वरूपा कर ने इसे सीआरआरआई के लैब में तैयार किया है।

दिल्‍ली के मथुरा रोड पर सफल परीक्षण के बाद इस तकनीक का दिसंबर, 2022 में पेटेंट ग्रांट हो चुका है। इसको लेकर सीआरआरआई काफी उत्‍साहित है।

पूरी तरह मेक इन इंडिया है मशीन

यह मशीन पूरी तरह से मेक इन इंडिया है। इसको सीआरआरआई की प्रयोगशाला में तैयार किया गया है। इसके निर्माण में प्रयुक्‍त सभी कल-पुर्जे देश में निर्मित हैं। इसलिए यह पूरी तरह से स्वदेशी है। मशीन को तैयार करने में किसी विदेशी एजेंसी की मदद नहीं ली गई है। इसे भारतीय सड़कों की जरूरतों व चुनौतियों के हिसाब से तैयार किया गया है। इसका रखरखाव सस्ता है।

सीआरआरआई का दावा है कि इस मशीन से सीमित श्रमिकों के साथ कम समय में मरम्‍मत कार्य को पूरा किया जा सकता है। यह कई किलोमीटर गड्ढों को कुछ घंटों में दुरुस्‍त कर सकती है। इसकी खासियत यह है यह आकार में काफी छोटी है, इसलिए इसे एक छोटे चार पहिया वाहन के साथ एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर आसानी से स्‍थानांतरित किया जा सकता है।

इसके उलट देश में मैनुअल तरीके से सड़क मरम्‍मत का कार्य काफी जट‍िल और महंगा है। इसमें प्रयुक्‍त अधिकतर मशीनों एवं उपकरणों को आयात किया जाता है। यह मशीनें बेहद मंहगी होती है। इनमें कई मशीनों की कीमत छह करोड़ तक है। इनका रखरखाव एक बड़ी समस्‍या है।

नई तकनीक की खूब‍ियां

विज्ञानी ने बताया कि दरअसल, डामर और एग्रीग्रेट से बनी सड़कों के गड्ढे को भरने के लिए अभी तक चार चरण की प्रक्रिया अपनाई जाती है। सबसे पहले गड्ढे को साफ किया जाता है। इस काम के लिए कहीं मशीन का इस्‍तेमाल और कहीं पर श्रमिकों को लगाया जाता है। दूसरे चरण में इसमें टेक कोट लगाया जाता है। तीसरे चरण में कोलतार (बिटूमन) और गिट्टी (एग्रीग्रेट) के मिक्‍स से इसको भरा जाता है। चौथे चरण में इसे समतल किया जाता है। इन चरणों के लिए श्रमिकों के साथ कई तरह के मशीनों एवं उपकरणों की जरूरत होती है। उधर, नई तकनीक में महज एक मशीन सभी चरणों को पूरा करने में सक्षम है। इसके लिए बहुत श्रमिकों की जरूरत नहीं पड़ती है। इसे एक मशीन आपरेटर और दो श्रमिकों की सहयता से पूरा किया जा सकता है। किसी गंतव्‍य तक पहुंचाने के लिए मशीन को एक छोटे वाहन में रखकर एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर आसानी से ले जाया जा सकता है।

पर्यावरण हितैषी है यह प्रक्रिया

सड़क मरम्‍मत की यह तकनीक पर्यावरण हितैषी है। परंपरागत मरम्‍मत के कार्य में ठोस कोलतार (बिटूमन) को 160 से 180 डिग्री के तापमान में गर्म करके तरल पदार्थ में रुपांतरित किया जाता है। इस प्रक्रिया में कई तरह की जहरीली गैसें निकलती हैं, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक होती हैं। विज्ञानी ने कहा कि इसके बाद इसे गिट्टी के साथ मिक्‍स करके मरम्‍मत कार्य में उपयोग किया जाता है। सीआरआरआई की तकनीक में कोलतार को गरम करने की जरूरत नहीं पड़ती है। इसे इमल्‍शन (बिटुमन और पानी के मिश्रित रसायन) के जरिए तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में जहरीली गैसों का उत्‍सर्जन नहीं होता है।

आसान होगा सड़कों की मरम्‍मत का कार्य

युवा महिला विज्ञानी शिक्षा ने बताया कि सबसे पहले हमने भारतीय सड़कों की मरम्‍मत की प्रक्रिया, मौजूदा ढांचे और उसकी चुनौतियों का अध्‍ययन किया। एक लंबे शोध के बाद भारतीय सड़कों के जरूरत के मुताबिक एक स्‍वदेशी तकनीक को विकसित किया गया। उन्‍होंने कहा कि भारत में सड़कों की मरम्‍मत का कार्य मैनुअल होता है। यह प्रक्रिया जटिल, महंगी, श्रमसाध्‍य है। इसके अलावा सड़क मरम्‍मत के कार्य में अधिकतर अकुशल श्रमिकों को लगाया जाता है। इसका असर मरम्‍मत की गुणवत्‍ता पर पड़ता है। कई क‍िलोमीटर सड़क को दुरुस्‍त करने में कई दिन लग जाते हैं। इससे यातायात प्रबंधन अस्‍त-व्‍यस्‍त हो जाता है। इस मशीन से इन सारी समस्‍याओं का समाधन निकल सकेगा। खासकर देश में ग्रामीण सड़कों का रखरखाव एक बड़ी चुनौती है। कई बार बजट के अभाव में ग्रामीण सड़कों की मरम्‍मत का कार्य पीछे छूट जाता है। नतीजा यह होता है कि वे गड्ढों में तब्‍दील हो जाती हैं। ऐसे में यह मशीन एक वरदान साबित होगी।


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