शीला-माकन की लड़ाई में उलझा AAP-कांग्रेस गठबंधन, तो इसलिए 'लाचार' हैं राहुल गांधी
आम आदमी पार्टी (AAP) ने तो अपने सातों उम्मीदवार भी घोषित कर दिए हैं और जोर-शोर से प्रचार भी कर रही है जबकि कांग्रेस धड़ों में बंटती जा रही है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Lok Sabha Election 2019: लोकसभा चुनाव-2019 के लिए देशभर में चुनाव प्रचार धीरे-धीरे रंग पकड़ता जा रहा है। वहीं, देश की राजधानी दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों के लिए 12 मई को होने वाले मतदान में मुश्किल से सवा महीना बचा है, जबकि आम आदमी पार्टी (AAP) से गठबंधन को लेकर कांग्रेस इनकार और इकरार के फेर में ही फंसी है।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि सारी लड़ाई शीला और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन की है। राहुल दोनों में से किसी भी साथी की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहते, इसलिए बारी-बारी सबकी सुन रहे हैं।
दावेदारों के पैनल को लेकर भी बढ़ रहा असंतोष
सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी के निर्देश पर शीला ने सातों सीटों के लिए दो-दो नामों के पैनल तैयार किए हैं। AAP ने तो अपने सातों उम्मीदवार भी घोषित कर दिए हैं और जोर-शोर से प्रचार भी कर रही है, जबकि कांग्रेस धड़ों में बंटती जा रही है। अब तो ऐसा लगने लगा है कि इनकार और इकरार के इस भंवर में कहीं प्रदेश कांग्रेस बची खुची जमीन भी न गंवा बैठे।
शीला दीक्षित को प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाले ढाई महीना हो चुका है, लेकिन गठबंधन की उलझन में वह न तो आज तक भाजपा के खिलाफ आक्रामक रुख अपना सकी हैं और न ही AAP के विरोध में कुछ कर सकी हैं। पहले कार्यकर्ताओं में जो उत्साह नजर आ रहा था, अब वह भी शांत पड़ने लगा है। कार्यकर्ताओं से लेकर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं तक एक धड़ा खुले तौर पर इस गठबंधन के पक्ष में उतर आया है, जबकि एक धड़ा खुलकर इसका विरोध कर रहा है।
आलम यह है कि अनेक बड़े नेताओं ने गठबंधन नहीं होने पर चुनाव भी नहीं लड़ने के संकेत दे दिए हैं तो शीला गुट केवल एक विधानसभा चुनाव की चिंता में लगा हुआ है। विडंबना यह भी है कि पार्टी आलाकमान राहुल गांधी प्रदेश में सभी को साथ लेकर चलने की सोच रखते हैं और गठबंधन को लेकर आम राय बनाने की नीयत से तीन बार बैठक भी ले चुके हैं, लेकिन गठबंधन का समर्थन भले बढ़ गया हो, लेकिन विरोध कम नहीं हुआ है।
ये हैं संभावित दावेदार
चांदनी चौंक से कपिल सिब्बल और मंगतराम सिंघल, उत्तर पूर्वी दिल्ली से जेपी अग्रवाल और रागिनी नायक, पश्चिमी दिल्ली से महाबल मिश्रा और देवेंद्र यादव, दक्षिणी दिल्ली से रमेश कुमार और योगानंद शास्त्री, नई दिल्ली से अजय माकन और अर्चना डालमिया, पूर्वी दिल्ली से एके वालिया और अनिल चौधरी तथा उत्तर पश्चिमी दिल्ली से राजकुमार चौहान और राजेश लिलोठिया के नाम शामिल हैं। इन नामों को लेकर भी पार्टी में भारी असंतोष है।
कहा जा रहा है कि जो मंतगराम सिंघल, रागिनी नायक, अर्चना डालमिया, योगानंद शास्त्री, देवेंद्र यादव, राजेश लिलोठिया कभी उक्त लोकसभा क्षेत्रों में सक्रिय ही नहीं रहे, उनका नाम पैराशूट लीडर के रूप में पैनल में डालकर उन नेताओं की अनदेखी ही की गई है जो लगातार वहां सक्रिय रहे हैं। मसलन, उत्तर पश्चिमी सीट पर एआइसीसी सचिव तरुण कुमार की दावेदारी खासी प्रबल बताई जा रही है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो छात्र राजनीति से ही वह इस क्षेत्र के निवासी हैं और जातीय समीकरणों के मद्देनजर भी उनकी अनदेखी करना आसान नहीं है। इनकी पत्नी प्रेरणा भी दो बार यहां से पार्षद रही हैं। दूसरी ओर पैनल तक में नाम न शामिल किए जाने से पूर्व विधायक जयकिशन भी बगावत का झंडा बुलंद कर सकते हैं।
भारी पड़ सकती है शीर्ष नेताओं की नाराजगी
प्रदेश कांग्रेस में मौजूदा गुटबाजी के मद्देनजर पूर्व सांसद अजय माकन, अरविंदर सिंह लवली, सुभाष चोपड़ा और महिला कांग्रेस अध्यक्ष शर्मिष्ठा मुखर्जी सहित कई बड़े नेताओं की नाराजगी भी भविष्य में पार्टी के लिए संकट का सबब बन सकती है। आलम यह है कि प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्षों और कई जिला अध्यक्षों के संबंध भी सामान्य नहीं हैं। यहां तक कि प्रदेश प्रभारी पीसी चाको के प्रति भी प्रदेश का एक गुट अच्छा भाव नहीं रखता। इन सूरते हाल लोकसभा ही नहीं, विधानसभा चुनाव में भी विजयश्री का तिलक इतनी आसानी से लग पाना संभव नहीं लगता।
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