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FLASHBACK 2016 : साहित्य की राह में कहीं अपमान की धूप, कहीं सम्मान की छांव

पारंपरिक प्रकाशन विधा से हटकर ऑनलाइन प्रकाशन और वेबपोर्टल व साहित्यिक ब्लागों पर लिखी गई सामग्रियों की चर्चा रही।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 23 Dec 2016 11:26 AM (IST)Updated: Fri, 23 Dec 2016 07:44 PM (IST)
FLASHBACK 2016 : साहित्य की राह में कहीं अपमान की धूप, कहीं सम्मान की छांव

नई दिल्ली (अभिनव उपाध्याय)। राजधानी में वर्ष भर साहित्य, कला और संगीत के क्षेत्र में गहमा-गहमी बनी रही। विश्व पुस्तक मेला, साहित्य अकादमी पुरस्कार, विभिन्न किताबों के आगमन पर चर्चा व संगोष्ठियों का आयोजन किया गया, लेकिन इस वर्ष सबसे अधिक चर्चा दिल्ली सरकार के हिंदी अकादमी में पुरस्कार को लेकर रही। दिल्ली सरकार के अधीन हिंदी अकादमी का यह विवाद लेखकों के भाषादूत सम्मान को लेकर था।

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अकादमी ने पहले तीन लेखकों को डिजिटल माध्यम में हिंदी संगोष्ठी एवं भाषादूत सम्मान प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन बाद में यह कहकर खेद जता दिया कि उन्हें गलती से आमंत्रण चला गया था और इसे मानवीय भूल समझा जाए।

दिलचस्प यह था कि अकादमी ने 10 सितंबर को पत्र और फोन के जरिये लेखकों को सूचित किया था और सम्मान के लिए सहमति ली भी थी। जिन लेखकों को आमंत्रण भेजा गया था उनमें दिल्ली के अशोक कुमार पांडेय, उत्तर प्रदेश के नजीबाबाद के अरुण देव और इलाहाबाद के संतोष चतुर्वेदी शामिल थे। हिंदी अकादमी के इस कृत्य की चौतरफा निंदा हुई और सोशल मीडिया पर भी लोगों ने अपनी टिप्पणी की।

साहित्यकार मंगलमूर्ति ने लिखा कि हिंदी अकादमी को जिस कैंची से फीता काटना था उसने उसी से अपनी नाक काट ली, अच्छा है। पहली हिंदी अकादमी की उपाध्यक्ष ने अपनी विवशता दिखाई और मीडिया से दर्द साझा करते हुए कहा कि उन्हें कुर्सी-मेज की सुविधा के लिए भी सचिव से पूछना पड़ता है।

उपाध्यक्ष के लिए न कोई कमरा होता है न गाड़ी। भाषादूत सम्मान के लिए उनसे नाम मांगे गए थे जो उन्होंने दिए, लेकिन वह न तो चयनकर्ताओं में शामिल हैं और न ही चयन में उनकी किसी तरह की भूमिका रही है। अदीबों का सम्मान करने के लिए जानी जाने वाली अकादमी की छवि इस घटना के बाद धूमिल हुई।

इस वर्ष 16 फरवरी को वयोवृद्ध साहित्यकार रामदरश मिश्र को उनके कविता संग्रह ‘आग की हंसी’ के लिए, उर्दू में शमीम तारिक को उनकी समालोचना ‘तसव्वुफ और भक्ति’ के लिए तथा अंग्रेजी में प्रसिद्ध लेखक सायरस मिस्त्री के उपन्यास ‘क्रॉनिकल ऑफ-ए-कार्प्स बीयरर’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

साहित्यकार रामदरश मिश्र को पुरस्कार देने में देरी के लिए साहित्य अकादमी की कुछ लोगों ने आलोचना भी की। स्वयं रामदरश मिश्र ने कहा कि लोग कह रहे हैं कि काफी देर बाद यह सम्मान आपकी कृति को मिला, लेकिन वह इसमें क्या कर सकते हैं।

9 अक्टूबर को महान चिंतक दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके दर्शन और कार्यो की एक श्रृंखला ‘दीनदयाल उपाध्याय संपूर्ण वाड्मय’ का विमोचन किया। जिसमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बौद्धिक संवादों, उपदेशों, लेखों, भाषणों और उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं को शामिल किया गया है। उनके एकात्म मानववाद दर्शन के बारे में बताया गया है।

वेबपोर्टल व साहित्यिक ब्लागों पर लिखी गई सामग्रियों की चर्चा रही

साहित्यिक जगत में विशुद्ध साहित्यिक सामग्री इस वर्ष कम आई। इस बीच पारंपरिक प्रकाशन विधा से हटकर ऑनलाइन प्रकाशन और वेबपोर्टल व साहित्यिक ब्लागों पर लिखी गई सामग्रियों की चर्चा रही। ऐसा भी देखा गया कि हिंदी प्रकाशकों की किताबें पहले अंग्रेजी में अनुदित कर प्रकाशित की गईं, बाद में हिंदी में आईं।

जगरनॉट प्रकाशन से प्रियदर्शन और अन्य लेखकों की किताबें इसका उदाहरण हैं। डिजिटल माध्यम में यह किताबें अधिक बिकीं। साहित्य अकादमी ने 21 दिसंबर को 2016 के साहित्य अकादमी पुरस्कार की घोषणा भी कर दी। यह पुरस्कार हिंदी के लिए नासिरा शर्मा को उनकी कृति पारिजात के लिए दिया जाएगा। अंग्रेजी के प्रतिष्ठित प्रकाशक आक्सफोर्ड प्रेस ने हिंदी में प्रकाशन की शुरुआत की घोषणा भी इसी वर्ष की है।

दो पुस्तक मेला, किताबों की बिक्री कम

वर्ष में दो पुस्तक मेला देखने वाला यह शहर किताबों की बिक्री के मामले में उदास रहा। विश्व पुस्तक मेला में दर्शकों की संख्या तो बढ़ी, लेकिन बिक्री कम रही। दिल्ली पुस्तक मेला में न अपेक्षित दर्शक आए औरन किताबों की बिक्री हुई।

जश्न-ए-बचपन का अंतरराष्ट्रीय आयोजन

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में हर दो वर्ष पर होने वाले जश्न-ए-बचपन (नाटकों का मेला) इस वर्ष से अंतरराष्ट्रीय हो गया। आने वाले समय में यहां नाटकों का ओलंपिक आयोजित करने की घोषणा भी की गई।

राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव ने छोड़ी अमिट छाप

अक्टूबर में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव ने लोगों पर अमिट छाप छोड़ी। इस आयोजन के द्वितीय संस्करण ने भारतीय संस्कृति की विविधता को एक परिसर में दिखाने का प्रयत्न किया।


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