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श्रीलंका-तुर्की से जुड़े किडनी रैकट के तार, UP-दिल्ली के कई अस्पताल भी शामिल

मजबूरी का फायदा उठाकर किडनी-लिवर समेत अंग तस्करी करने वाले किडनी रैकेट के पूरे खेल का पर्दाफाश अब स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (SIT) करेगी।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 19 Feb 2019 10:21 AM (IST)Updated: Tue, 19 Feb 2019 10:46 AM (IST)
श्रीलंका-तुर्की से जुड़े किडनी रैकट के तार, UP-दिल्ली के कई अस्पताल भी शामिल
श्रीलंका-तुर्की से जुड़े किडनी रैकट के तार, UP-दिल्ली के कई अस्पताल भी शामिल

नई दिल्ली/कानपुर, जेएनएन। मजबूरी का फायदा उठाकर किडनी-लिवर समेत अंग तस्करी करने वाले किडनी रैकेट के पूरे खेल का पर्दाफाश अब स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (SIT) करेगी। इस रैकेट के छह शातिरों को गिरफ्तार करने वालीं एसपी साउथ रवीना त्यागी की अगुवाई में एसएसपी ने एसआइटी का गठन कर दिया है। एक टीम आरोपितों की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली रवाना भी हो गई है। वहीं, किडनी तस्करी के खेल में अब दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल का नाम भी जुड़ गया है। जिस महिला की शिकायत पर इसे पूरे रैकेट का पर्दाफाश हुआ है, उसके सभी टेस्ट इसी अस्पताल में हुए। किडनी निकालने के लिए यहीं पर ऑपरेशन होना था। इस मामले में पुष्पावती सिंहानिया रिसर्च सेंटर (पीएसआरआइ) और फोर्टिस के नाम पहले ही आ चुके हैं। वहीं रैकेट के तार श्रीलंका और तुर्की से भी जुड़ रहे हैं।

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एसएसपी अनंतदेव तिवारी ने बताया कि बर्रा में मुकदमा दर्ज कराने वाली महिला व अन्य आरोपितों की पूछताछ में पता चला है कि किडनी रैकेट में सर गंगाराम अस्पताल के भी कुछ लोग शामिल हैं। जिस महिला की शिकायत पर राजफाश हुआ, उसकी सभी जांच रिपोर्ट तैयार कर ऑपरेशन के कागजात तैयार कर लिए गए थे।

पीएसआरआइ और फोर्टिस के साथ ही वहां के भी कोआर्डिनेटर को जांच के घेरे में लिया गया है। एसआइटी में एक आइपीएस, एक पीपीएस, तीन इंस्पेक्टर समेत दस पुलिस कर्मी और एसपीओ (विशेष अभियोजन अधिकारी) को रखा गया है। अभी तक की जांच में सामने आया है कि इस गिरोह को डॉ. केतन कौशिक नाम का युवक संचालित कर रहा था। उसने इस खेल को श्रीलंका से तुर्की तक फैला रखा है। उसकी तलाश के लिए दिल्ली पुलिस की भी मदद ली जा रही है। वहीं पीएसआरआइ के कोआर्डिनेटर डॉ. सुनीता व मिथुन एवं फोर्टिस की सोनिका समेत वांछित 13 लोगों की धरपकड़ के लिए टीम दिल्ली रवाना कर दी गई है।

गंगाराम अस्पताल प्रशासन का कहना है कि प्राथमिक स्तर पर संगीता नाम की महिला डोनर का नाम अस्पताल के रिकार्ड में नहीं है। वैसे अस्पताल का जेनेटिक लैब बहुत बड़ा है। जहां दिल्ली, एनसीआर ही नहीं बल्कि देश के कई बड़े अस्पतालों से एचएलए व डीएनए जांच के लिए सैंपल लाए जाते हैं। इसलिए सिर्फ जांच के आधार पर अस्पताल को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

जांच के घेरे में दिल्ली का एक और अस्पताल
किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट के रैकेट के राजफाश के बाद जांच की आंच बड़े नामों तक पहुंच रही है। पहले दिन फोर्टिस और पीएसआरआइ का नाम सामनेू आने के बाद अब दिल्ली का एक और बड़ा अस्पताल जांच के घेरे में आ गया है। यहां के डॉक्टर का नाम पुलिस ने फर्द में दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। इस नामी डॉक्टर से जल्द ही पूछताछ की जा सकती है। उनके नाम का राजफाश गिरफ्तार शैलेश ने किया है। वह 2013 में डॉक्टर का पीए रह चुका है और और 2016 के किडनी कांड में डॉ. केएन सिंह के साथ गिरफ्तार हुआ था। शैलेश ही सभी फर्जी कागजात तैयार करता था। पुलिस ने उसके बयान दर्ज किए हैं।

अस्पतालों से मांगे गए रिकॉर्ड
पुलिस ने जांच के दायरे में आए दिल्ली के पीएसआरआइ हॉस्पिटल, फोर्टिस और सर गंगाराम अस्पताल से वर्ष 2013 से अब तक हुए किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट का आंकड़ा मांगा है।
 

रविवार को किया था राजफाश

रविवार को पुलिस ने किडनी व लिवर की खरीद फरोख्त करने वाले कोलकाता (प.बं.) के राजाराट कमर शिपतला निवासी टी राजकुमार राव उर्फ राजू, लखीमपुर खीरी के मैगलगंज शिवपुरी निवासी गौरव मिश्र, बदरपुर जैतपुर कालोनी नई दिल्ली निवासी शैलेश सक्सेना, काकोरी दशहरी मोड़ प्रेमनगर लखनऊ निवासी सबूर अहमद, पनकी गंगागंज भाग दो निवासी विक्की सिंह और विक्टोरिया स्ट्रीट लखनऊ निवासी शमशाद अली को गिरफ्तार किया था।

किडनी डोनेशन की पहचान का तरीका लचीला

किडनी रैकेट में दिल्ली एनसीआर के अस्पतालों का नाम सामने आने के बाद अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। सबसे बड़ा सवाल मरीज व किडनी डोनर के बीच आपसी रिश्तों की पहचान को लेकर है। अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम से जुड़े विशेषज्ञ बताते हैं कि किडनी दाता (डोनर) के नजदीकी रिश्तेदार होने पर अस्पताल के स्तर पर ही किडनी दान व प्रत्यारोपण की स्वीकृति दे दी जाती है। इसलिए नजदीकी रिश्तेदारों की पहचान में ही निजी अस्पतालों में फर्जीवाड़े का खेल होता है, जो पहले भी सामने आ चुका है। इसी लचीलेपन का फायदा उठाकर किडनी रैकेट चलाया जाता है। इसलिए डॉक्टर दो स्तरों पर डोनर की पहचान की व्यवस्था करने की बात कह रहे हैं।

असल में प्रत्यारोपण कार्यक्रम के संचालन के लिए दो तरह की ऑथराइजेशन कमेटी होती है। एक अस्पताल के स्तर पर व दूसरी राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के स्तर पर। यदि किडनी डोनर मरीज का नजदीकी रिश्तेदार न होकर कोई दूर का रिश्तेदार या दोस्त हो तो इसके लिए राज्य सरकार के ऑथराइजेशन कमेटी से स्वीकृति जरूरी होती है। जबकि, नजदीकी डोनर के मामले में अस्पताल की कमेटी ही स्वीकृति दे देती है। हालांकि, अस्पताल की कमेटी में भी स्वास्थ्य विभाग का एक प्रतिनिधि व एक अधिवक्ता का होना जरूरी है।

डॉक्टर कहते हैं कि इसमें मरीज व डोनर द्वारा दिए गए प्रमाण पत्र देखकर ही प्रत्यारोपण की स्वीकृति दे दी जाती है। जबकि मरीज व डोनर को आमने सामने बैठाकर उनके आपसी रिश्तों के बारे में पूछताछ होनी चाहिए। हालांकि, डॉक्टर कहते हैं कि ज्यादा सख्ती से उन मरीजों को परेशानी हो सकती है, जो किडनी रैकेट के खेल में शामिल नहीं होते हैं।

गिरोह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देश

डीजीपी मुख्यालय ने कानपुर में पकड़े गये किडनी-लिवर बेचने वाले गिरोह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का निर्देश दिया है। आइजी कानून-व्यवस्था प्रवीण कुमार त्रिपाठी ने बताया कि डीआइजी क्राइम केबी सिंह पूरे प्रकरण की मॉनिटरिंग खुद कर रहे हैं। यही नहीं उन्होंने कानपुर पुलिस से अब तक की गई कार्रवाई की रिपोर्ट भी मांगी है।

किडनी ही नहीं, इज्जत का भी सौदा

किडनी रैकेट में शामिल शातिरों के झांसे में आई कुछ महिलाओं को किडनी के साथ इज्जत भी गंवानी पड़ी। पुलिस की प्राथमिक जांच में ऐसी ही अनहोनी की शिकार हुई महिला का मामला सामने आया है। शातिरों ने बेटे की बीमारी का फायदा उठा नौकरी दिलवाने के नाम पर शोषण किया। दूसरी महिलाओं को फंसाने का दबाव बनाया। ब्लैकमेलिंग और लालच देकर किडनी ली और पैसे भी नहीं दिए। पुलिस इस महिला को गवाह बनाने की तैयारी में है। वहीं, इस प्रकार की पीड़ित महिलाओं को भी खोजा जा रहा है। बिहार की रहने वाली यह महिला शहर में नौबस्ता क्षेत्र में रहती थी। अपने बीमार बेटे के इलाज के लिए अधिक रुपयों की जरूरत थी। टी राजकुमार राव अस्पताल में नौकरी दिलाने का झांसा देकर उसे दिल्ली ले गया। 


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